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“भाग्य की गति अत्यंत विचित्र और निर्मम होती है, देवयानी! देखते ही देखते आकाश की उल्का को वह धरती का पाषाण बना के छोड़ता है!”
― ययाति [Yayati]
― ययाति [Yayati]
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