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Vishnu Sakharam Khandekar
“बच्चे बड़े होने लगे तो माँ-बाप से दूर जाने लगते हैं। प्रीति और पराक्रम दोनों युवा मन की प्रबल प्रेरणाएं हुआ करती हैं। किशोर-किशोरियों को अपने बचपन की सुरक्षित दुनिया से भुलावा देकर वे काफी दूर ले जाया करती हैं। किन्तु माँ-बाप उनकी चिन्ता करते हुए उसी पुरानी दुनिया में चक्कर काटा करते”
Vishnu Sakharam Khandekar, ययाति [Yayati]

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