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“चूँकि अलौकिक शक्तियों के साथ साथ उसमें लौकिक गुण भी थे और उनके प्रभाव से कुछ भी सोचते वक्त उसके चेहरे पर मन के भाव बड़ी उन्मुक्तता से पसर आते थे और ऐसे वक्त वह कभी अपने आप को तमतमाते हुए, कभी मुस्कुराते हुए, कभी लजाते हुए, कभी इतराते हुए और कभी मुरझाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया करती थी और चोर नजरों से उसे इधर-उधर 'किसी ने देखा तो नहीं' की टोह लेनी पड़ती थी इसलिए अंधेरे में सोचना उसने अपने लिए सर्वथा माकूल घोषित किया था।”
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
― शुद्धिपत्र / Shuddhi Patra
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