Ask the Author: Praveen Kumar Jha
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Praveen Kumar Jha
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Praveen Kumar Jha
चमनलाल दरअसल मेरा ही 'alter ego' है। मैंनें समाज को जैसा देखा है, वही कहानियों में गढ़ कर लिख दिया। यह एक डायरी है थोड़ी अविश्वनीय, कुछ रोचक, और कुछ अजीब सी कहानियों से भरी। ऐसी डायरी कुछ लोग छुपा कर भी पढ़ रहे हैं। कह रहे हैं, आपने सब कुछ नग्न कर दिया। कुछ घुमाते-फिराते, सीधा-सीधा कह दिया। चमनलाल भी वही इंसान है। आप में, हम में। सीधी बात करने वाला।
Praveen Kumar Jha
मुझे लगने लगा, हिंदी मिट रही है. बच्चे पढ़ भी नहीं पाते. सोचा, कुछ लिख दूँ. सरल और रोमांचक व्यंग्य के साथ. लोग कुछ हँसे भी, मजे भी लें, और सोचें भी. हिन्दी साहित्य उन्हें आकर्षित करें कुछ बॉलीवुड फिल्मों की तरह.
Praveen Kumar Jha
मैं व्यंग्य के तड़के के साथ सामाजिक उपन्यास लिखने की तैयारी में हूँ. पर इस प्रश्न का असल जवाब ये है कि मैं पहली किताब उनके पास भी पहुँचाना चाहता हूँ, जो हिन्दी कम पढ़ते हैं.
Praveen Kumar Jha
लेखकों को शायद पढ़ना कम और लिखना ज्यादा चाहिए. बार-बार. लघु कथाओं या ब्लॉग के रूप में. लोगों के विचार सुनने चाहिए. साहित्य ज्यादा पढ़कर आपकी अपनी मौलिकता खत्म होने का खतरा होता है. आप शैली 'कॉपी' करने लगते हैं.
Praveen Kumar Jha
लेखक बनकर आप खुल जाते हैं. वोह बातें कह डालते हैं, जो अमूमन आप व्यक्त नहीं कर पाते हैं. जैसा मेरी किताब में भी हुआ है. समाज का नग्न स्वरुप बार-बार बाहर आया है.
Praveen Kumar Jha
I talk to people, observe situations, and just write it like a diary. Words and ideas flow, and stories build up.
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