Praveen Kumar Jha
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Praveen Kumar
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एक मनोभावन कहानी यह किस्सा है, कहानी नहीं। या यह कहानी है, किस्सा नहीं। यह जानने के लिए यह किस्साग्राम जरूर पढ़ी जाए कि किस्से और कहानी में कोई फर्क नहीं होता |
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Praveen Kumar
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“मैं सोचने लगा कि कितना अंधविश्वासी व्यक्ति हूँ जो प्रेतों के चक्कर में आईसलैंड आ गया। आज भला प्रेतों को कौन मानता है? और मैं तो लाशों और मृत्यु को आए दिन अस्पताल में देखता हूँ, फिर भला क्यों ऐसे ख्याल रखता हूँ? विज्ञान-युग में गर पूरे जीवन गोता लगाओ, तो कभी किनारे पर बैठने का मन तो करता ही है। कभी विज्ञान से परे देखने का। कभी हजार वर्ष पीछे लौटने का। उन विश्वासों में जीने का, जिससे कि जीवन सुलभ हो। कौवा मुंडेर पर आकर बैठ जाए, और हम खुशी-खुशी मरने को तैयार हो जाएँ। कोई वेल्लोर-एम्स के चक्कर न लगाएँ, सेकंड ओपिनियन न लें। बस एक कौवे के मुंडेर पर बैठने का इंतजार करें। हम यह मान कर जियें कि हम अमर हैं। मर कर भी ‘हुल्डुफोक’ बन कर जियेंगे। और लोग हम पर पत्थर न फेकेंगें। हमारे ऊपर बुलडोज़र न चलाएँगें। हम मर कर भी गुमनाम न होंगे। भले ही जीवन में कुछ न किया हो, याद जरूर किए जाएँगे। और जो भी मुझसे मिलना चाहें, वो बस लकड़ी पर बना एक यंत्र लेकर मुझसे गप्पिया लें। हम अदृष्ट से दृष्ट हो जाएँ। आज के युग में भी इस जादुई दुनिया में जीते इस यूरोपीय देश के लोग शायद उनसे किस्मत वाले हैं जो मृत्यु को अंतिम सत्य मान लेते हैं। आखिर अगले दिन हवाई जहाज चली और मैं प्रेतों के देश को अलविदा कह चल पड़ा। नीचे खड़े हजारों ‘हुल्डुफोक’ मुझे हाथ दिखा रहे थे, और मैं उनको हाथ हिला रहा था। उनका शरीर नहीं नजर आ रहा था, बड़े कान और पैर अब भी साफ-साफ दिख रहे थे। क्यूट हैं ये प्रेत!”
― भूतों के देश में: आईसलैंड
― भूतों के देश में: आईसलैंड
“मारन’ है यानी किसी की तंत्र से मृत्यु करवा देना। ‘आकर्षण’ और वशीकरण’ तो इनका महत्वपूर्ण अंग है ही। ‘स्तंभन’ यानी किसी को रोक देना। इसके अतिरिक्त ‘संतिका’ यानी शांति स्थापित करना भी है। ‘उच्चाटन’ यानी घर नष्ट कर देने के भी तंत्र हैं। इनके नाम और तरीके भिन्न-भिन्न हैं। पर तंत्र काफी मिलता”
― भूतों के देश में: आईसलैंड
― भूतों के देश में: आईसलैंड
“मेरी इच्छा आईसलैंड की प्रेतिनों से मिलने की कभी थी ही नहीं। मैं तो यह जानना चाहता था कि आईसलैंड को महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे बेहतर देश क्यों कहा जाता है? यहाँ पुरूष प्रेत से शक्तिशाली प्रेतिन क्यों हैं? यहाँ आखिर महिलाओं ने अपना डंका कैसे बजवाया? और वो भी उन महिलाओं के वंशजों ने, जो कभी वाईकिंग से बलत्कृत कहे जाते रहे। यह सत्तर के दशक की बात है जब देश की सभी महिलाओं ने तय कर लिया कि उनको बराबरी चाहिए। वो सब की सब हड़ताल पर बैठ गयीं। सभी महिला शिक्षिकाओं ने पढ़ाना त्याग दिया। सभी छोटे-मोटे महिला कर्मियों ने काम रोक दिया। यहाँ तक कि गृहणियों ने भोजन पकाना बंद कर दिया। लगभग 25000 महिलाएँ रेक्ज़ाविक में जमा हुईं, और बराबरी का अधिकार मांगने लगी। संसद में, नौकरियों मे, घर में। हर जगह। पूरा आईसलैंड इन महिलाओं के हड़ताल में रूक गया। यह सिद्ध हो गया कि महिलाओं के बिना देश नहीं चल सकता। आईसलैंड को पहली महिला राष्ट्रपति मिली। हर सेक्टर में उन्हें बराबरी मिलने लगी। पुरूषों ने भी सहयोग दिया, और जहाँ भी अधिकार कम दिखता, वो खुद ही अधिकार दे देते। हालिया आईसलैंड के फुटबॉल खिलाड़ियों को लगा कि महिला खिलाड़ियों को कम वेतन मिल रहा है। सभी पुरूषों ने स्वयं अपील की, कि उन्हें भले ही कम वेतन दिया जाए पर महिलाओं को बराबर मिले। यहाँ जब बच्ची अपने पहले स्कूल जाती है, तो उसे बाकी देशों के बच्चियों वाले खेल नहीं सिखाए जाते। ‘बार्बी डॉल’ से खेलने नहीं कहा जाता। एक तीन-चार साल की बच्ची को भी लोहे के बार पर लटका दिया जाता है, और उछल कर रेत में कूदने कहा जाता है। उन्हें ताकतवर बनने का प्रशिक्षण मिलता है। वो दौड़ती हैं, फुटबॉल खेलती हैं। वो पुरूषों से हर खेल में लोहा लेती हैं। यह तो मैं कह चुका हूँ कि अठारह-उन्नीस की युवतियाँ विशाल ट्रक चलाती दिखती हैं। बसें चला रही होती हैं। गर गाड़ी बर्फ के दलदल में फँस जाए, तो धक्का लगाकर निकाल लेती हैं। समंदर में उछल कर सर्फिंग करती है। नाव ले जाकर मछली मार लाती हैं। यही तो है आईसलैंड की प्रेतिनें, जो बाकी विश्व की महिलाओं से अलग नजर आती हैं। अब इन महिलाओं पर अंकुश लगाना या बलात्कार करना इतना आसान नहीं। ऐसी प्रेतिनें तो हर देश में हो, हर गली में हो। अलविदा प्रेत!”
― भूतों के देश में: आईसलैंड
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| Goodreads Librari...: add hindi book Ulti Ganga by Praveen Kumar Jha (completed) | 7 | 54 | Aug 09, 2022 11:36PM |
“मैं सोचने लगा कि कितना अंधविश्वासी व्यक्ति हूँ जो प्रेतों के चक्कर में आईसलैंड आ गया। आज भला प्रेतों को कौन मानता है? और मैं तो लाशों और मृत्यु को आए दिन अस्पताल में देखता हूँ, फिर भला क्यों ऐसे ख्याल रखता हूँ? विज्ञान-युग में गर पूरे जीवन गोता लगाओ, तो कभी किनारे पर बैठने का मन तो करता ही है। कभी विज्ञान से परे देखने का। कभी हजार वर्ष पीछे लौटने का। उन विश्वासों में जीने का, जिससे कि जीवन सुलभ हो। कौवा मुंडेर पर आकर बैठ जाए, और हम खुशी-खुशी मरने को तैयार हो जाएँ। कोई वेल्लोर-एम्स के चक्कर न लगाएँ, सेकंड ओपिनियन न लें। बस एक कौवे के मुंडेर पर बैठने का इंतजार करें। हम यह मान कर जियें कि हम अमर हैं। मर कर भी ‘हुल्डुफोक’ बन कर जियेंगे। और लोग हम पर पत्थर न फेकेंगें। हमारे ऊपर बुलडोज़र न चलाएँगें। हम मर कर भी गुमनाम न होंगे। भले ही जीवन में कुछ न किया हो, याद जरूर किए जाएँगे। और जो भी मुझसे मिलना चाहें, वो बस लकड़ी पर बना एक यंत्र लेकर मुझसे गप्पिया लें। हम अदृष्ट से दृष्ट हो जाएँ। आज के युग में भी इस जादुई दुनिया में जीते इस यूरोपीय देश के लोग शायद उनसे किस्मत वाले हैं जो मृत्यु को अंतिम सत्य मान लेते हैं। आखिर अगले दिन हवाई जहाज चली और मैं प्रेतों के देश को अलविदा कह चल पड़ा। नीचे खड़े हजारों ‘हुल्डुफोक’ मुझे हाथ दिखा रहे थे, और मैं उनको हाथ हिला रहा था। उनका शरीर नहीं नजर आ रहा था, बड़े कान और पैर अब भी साफ-साफ दिख रहे थे। क्यूट हैं ये प्रेत!”
― भूतों के देश में: आईसलैंड
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