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“मान लीजिए जिसको शेयर बाजार के बारे में इतना बुझाएगा ...उ बैठ के टीवी पर बताएगा कि खुद पैसा बनाएगा ?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ऐसा है कि ध्यान देना चाहिए भैल्यू पर और अरमान होना चाहिए फक्कड़-निराला का।
[...] लेकिन यहाँ है उलटा। आदमी का अरमान होता है आसमान पर आ गुण में गुड़-गोबर।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
[...] लेकिन यहाँ है उलटा। आदमी का अरमान होता है आसमान पर आ गुण में गुड़-गोबर।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“अनुराग को लगा जैसे ज़िन्दगी लेबंटी-सी है। चाह है। गोल्डन। थोड़ी खट्टी। थोड़ी मीठी। एक बार जो स्वाद मिला वो दुबारा ढूँढ़ते रहो। वहीं बनाने वाला भी स्वयं दुबारा नहीं बना पाता, ठीक वैसी ही चाह। चाह में किसी को कम दूध, किसी को ज़्यादा, किसी को मीठी, किसी को फीकी। बड़े लोग ब्लैके परेफ़र करते हैं। पता नहीं अच्छा लगता है या हो सकता है कि उनकी किस्मत में ही नहीं होता दूध-शक्कर, भगवान जाने! उसी में किसी को अदरक, लौंग-इलायची और लेमनग्रास भी चाहिए तो किसी को कुछ भी नहीं! संसार का कारण चाह ही तो है - इच्छा वाला।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“कुछ रिश्ते आपको वो बना देते हैं जो आप नहीं होते - अच्छे से अच्छा, बुरे से बुरा।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“दुनिया में कुछ भी (किसी के लिए) रुकता कहाँ है। परिवर्तित होता रहता है। पत्र बदल जाते हैं। बैटन पास हो जाता है। जगहें बदल जाती हैं। भावनाएँ एक जैसी होती है। अनंत समय का चक्र घूमता रहता है। दुनिया उसी प्रवाह से चलती रहती है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“प्रेम… एक पुवाल की आग की तरह और दूसरा गोईंठे की आग की तरह। जितनी एक की मियाद होती है, दूसरे का तो उतने समय के बाद अंकुर ही फूटता है। तुम्हें कैसे समझाऊँ पर ऐसा है कि एक पुवाल की आग है। भभक कर जलता है। एकदम आसानी से। उसके बाद कुछ नहीं बचता–राख भी नहीं। दूसरा गोईंठा की आग है। देर से जलता है। धुआँ होता है। धीरे-धीरे सुलगता है पर आग ऐसी जो रात भर रह जाती है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“समझदार हैं इसीलिए तो उलझ गए। इंटेलेक्चुअल लोगों के ही प्यार का विध्वंस होता है। जो समझने की चीज़ ही नहीं उसे समझने का भ्रम। जिन्हें ये भ्रम हो उनके साथ ऐसा ही तो होगा।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“सब कुछ हो सकता है पर हम फिर से वो नहीं हो सकते जो दिल टूटने के पहले हुआ करते थे।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“देखने में जेतना अईसा आदमी होता है न, टेंसन ना लेने वाला, उसका अंदर से ओतना ही खेला साफ़ होता है!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“दुनिया में काँटा-कंकड़ भी रहबे करेगा। आप किसी-किस को सही करते फिरेंगे? दुनिया के हर रास्ते पर कालीन नहीं न बिछ जाएगा… इतना भी काफी है कि अपना आस पड़ोस साफ़ रखा जाए और जूता पहन के रहा जाय।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“चाय अच्छी-बुरी कहाँ होती है? वो तो पीनेवाले पर निर्भर करता है। कितना दूध, कितनी पत्ती और कितनी देर तक उबाली जाय - इन सबका अपना व्यक्तिगत पैमाना होता है! चाय बनाने के सबके अपने-अपने तरीके भी होते हैं। चाय के शौकीनों को एक-दूसरे की बनाई चाय अच्छी नहीं लगती! बीरेंदर कहता कि जैसे-जैसे लोग ‘बड़े आदमी’ बनते जाते हैं-‘ब्लैक टी’ की तरफ़ बढ़ते जाते हैं। चीनी और दूध दोनों की मात्रा कम करते जाते हैं। ज़्यादा बड़े लोग बिना शक्कर बस ब्लैक ही ‘परेफर’ करते हैं।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ज़िंदगी में उसे अद्भुत लोग मिले, एक से बढ़कर एक – सोने से खरे। पर वो अधिकतर पढ़े-लिखे, असाधारण, विलक्षण लोग थे। उनसे परे पटना में मिले अजनबी लोग इतने साधारण थे कि… सरलता ही उनकी खूबसूरती थी। ताओवाद के ‘वु वे’ की तरह जिसका अर्थ होता है–कुछ नहीं करना। आनंदमय प्रवाह जिधर ले जाए उधर चलते जाना। […] जो सरलता अनुराग को चाय की दुकान पर हुईं मुलाकातों में देखने को मिली थी वो उसे बड़ी-बड़ी किताबों और पढ़े-लिखे ज्ञानियों में कभी नहीं मिली।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ऐ मौसम बैज्ञानिक के सार, गर्मी में गर्मी नहीं होगा त शीतलहरी चलेगा रे? आ जानते हैं भैया जो जेतना गर्मी-गर्मी चिल्ला रहा है ना, अगर कल को पटना में गलती से बर्फ पड़ गया… त इहे सब आदमिया आपको जीने नहीं देगा कि देखो कैसे मौसम का माँ-बहन हो गया है!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“जलेबी में कैलोरी गिनूँ इतना भी बदनसीब नहीं हूँ।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“इश्क़ भी अजीब है। पता नहीं किसको क्या बना दे। सुकून है। ज़हर है। कोकेन है। बंधन है। मुक्ति है। भांग है। माया है– खुमारी चढ़ने के बाद पता नहीं कौन, कैसी हरकत करने लगे। दुनिया की सबसे आम चीज़ है। सोचो कि क्या है तो कुछ भी तो नहीं। और सोचने लगो तो दुनिया की ऐसी कोई चीज़ नहीं जो उसे परिभाषित न करे। इश्क़ की परिभाषा है, ‘इश्क़’ और ‘है’ के बीच में कोई भी शब्द लिख दो, वही इश्क़ की परिभाषा हो जाएगी!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“अमीर के साथ बेटी भाग जाए तो आदमी यहाँ कन्यादान का मंत्र पढ़ने लगता है… गरीब के साथ भागे तो ‘ऑनर किलिंग’। माने वैसे ही है जैसे कि तालिबान को हर तरह के मूर्ति, फोटो सब से घोर नफ़रत है। लेकिन डॉलर का नोट पर बने फ़्रैंकलिन के फोटो से कभी उसको दिक्कत हो सकता है?
[…] वैसा ही हिसाब है यहाँ इज्जत का भी। पैसे सबसे बड़ा एक्वालाइजर हैं। एक्वालाइजर समझते हैं ना? सब बरोबर कर देने वाला। दुर्मुस के जैसे। दुर्मुस वही जो मिट्टी, गिट्टी, पत्थर, सड़क कुछ भी पीट कर समतल कर देता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
[…] वैसा ही हिसाब है यहाँ इज्जत का भी। पैसे सबसे बड़ा एक्वालाइजर हैं। एक्वालाइजर समझते हैं ना? सब बरोबर कर देने वाला। दुर्मुस के जैसे। दुर्मुस वही जो मिट्टी, गिट्टी, पत्थर, सड़क कुछ भी पीट कर समतल कर देता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“लड़कियों को घूरना इस देश की उन आदतों में से है जिसे लोग असभ्य तक नहीं मानते। आपको तो लड़के-लड़की-औरत-मर्द-बच्चा-बूतरू सब घूरेगा। उत्सुकता से, प्रश्नवाचक दृष्टि से, विस्मय से, बुरी नज़र से… और साथ में जो प्रश्न कर सकते हैं वो भी करेंगे। […] इसके लिए तो कोई स्वच्छता मिशन भी नहीं है। ग़लती मानते तब तो सोचते सही करने का।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ये पटना शहर गंगा जी जैसा है। सबका पाप धो लेता है। सबको समाहित कर लेता है अपने अंदर। कभी बरसात में पटना में गंगा किनारे जाइए। सब जलमग्न दीखता है - क्षितिज तक। घोर मटमैला। लगता है प्रलय आ गया। आ उसी में घोराए हुए पानी में बीच-बीच में बहता हुआ दीख जाता है- कभी छप्पर तो कभी कोई जीव। कहीं दूर दीख जाते हैं किसी बहते से टीले पर बैठे हुए कौवे। वो होती है किसी प्राणी की लाश। गंगा सब लिए जाती है। जो उसमें पड़ जाए। बिना शिकायत। वैसे ही है ये शहर। उसके बाद उसी से उपजाऊ भी तो बनता है ये पूरा बेल्ट। आप को नरक भी मिलेगा लेकिन सब एक साथ देखेंगे तो सर झुका कर प्रणाम कर लेंगे। जब शांत हो तब इधर डुबकी लगाइए।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“एक होता है अभाव का दुःख… संघर्ष का दुःख! उसमें एक आशा होती है। जैसे मोटे अनाज से पेट खराब नहीं होता। सुना है आपने कभी किसी गरीब को चरबी से होने वाली बीमारी हो जाए? आ बाकी लोग के वैसा दुःख है जिन्हें …कोई दुःख है ही नहीं। जिसके पास सब कुछ है और वो ऐसी बातों से दुखी है जिसका न कोई कारण है न ही कोई हल। जो मन से दुखी है, रिश्तों से दुखी है। जिनकी ज़िंदगी में चार हीरे जैसे लोग आए और वो उनके साथ भी प्रेम से नहीं रह पाए …आ पैसा रुपया सब भरले है। लोग ऐसे न अझुराये (उलझे हुए) रहते हैं आज के जुग में! अक्सर बिना बात ही। उसे हम हसीन दुःख कहते हैं। उसका कोई हल नहीं होता।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ई सब सोच के थोड़े होता है। बस हो जाता है। प्रेम में भावनाएं और तर्क तेल और पानी की तरह होते हैं। वो आपस में घुल तो सकते नहीं। चाहे केतनों फेंट लीजिये।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“फोनाग्रे वसते ट्विटरः फोनमध्ये जीमेलः। फोनमुले तू फेसबुकः प्रभाते फोन दर्शनं।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“जहाँ तक ज्ञान का बात है तो एक बात जान लीजिए, इ बिहार है! यहाँ किसी को ज्ञान हो जाएगा। आपको क्या लगता है बुद्ध को यहीं आकर ज्ञान क्यों मिला? आये इधर कुछ दिन के लिए… राजा आदमी थे… इधर आके लूट-पिट गए होंगे। कुछ दिन भूख से पटपटाये… हो गया ज्ञान! कथाओं में जो भी लिखे कोई, हुआ यही होगा।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“राजेश जी का भतीजा इंजीनियर है इसलिए राजेशजी उसे “पूरे बकलोल है” कहते। एक दिन बोले - “जानते हैं सर, एक ठो इंजीनियर बंगलउर से पर्ह के हमरे गाँव आया त पूछता का है कि पापा एतना ऊँचा बाँस में झण्डा कईसे लग गया? हम वहीं थे बोले कि भो** के तेरी अम्मा को सीढ़ी लगा के चढ़ाये थे। इंजीनियर सबसे तेज़ तो हमारे गाँव का बैलगाड़ी हाँकने वाला होता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“थोड़ा जादे गंदगी है, का कीजिएगा कुकुर ही नहीं यहाँ आदमी भी खंभा देख के उसी का इस्तेमाल करते हैं। कभी आपके दिमाग में आया है कि ये खंभा भी कभी तो एकदम फरेस… चूना-पालिस मारके एकदम चकाचक रहा होगा। फिर अइसा कौन आदमी होगा जो पहली बार मुँह उठा के थूका होगा? माने अभी तो गंदा है तो लग रहा है कि जगहे है थूकने का। लेकिन जब चमक रहा होगा तब जो सर्र से थूक के लाल कर दिया होगा… उसको मज़ा आया होगा क्या? चमचमाती दीवार देख थूकने वाले का थूकने के लिए जी मचल जाता होगा या उसको थूक कर बुरा लगता होगा?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“बीरेंदर ने अपनी दोस्त का परिचय कराया “मिलिए हमारी दोस्त मेंटल से। जानते हैं भैया क्या हुआ? हम भगवान से मांगे थे मानसिक शांति। आ उ हुआ का कि अङ्ग्रेज़ी-हिन्दी के चक्कर में थोड़ा गरबरा गया। हमारा उच्चारन भी तो वही है। तो भगवानजी हमको ‘मेंटल पीस’ का जगह एक ठो 'मेंटल पीस' दे दिये।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“बुद्धिज़्म (बौद्ध धर्म) सनातन का वो बेटा है जो विदेश में जाकर बस गया। अच्छा नाम कमाया।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“कुछ दिन झोला लेकर घूम-घाम के आओ तब बुद्धि खुलेगा तुम लोगोंका।[…] बुद्धि रगड़ने से खुलती है। सुख-सुविधा में सुग्गा जैसा पोस के रखने की चीज नहीं है। फिट रखने की चीज है। जैसे व्यायाम से मोटापा नहीं होता वैसे ही रगड़ के इस्तेमाल करने से बुद्धि भी फिट रहती है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ …हमें वैसे दिखे न दिखे। कई बार हम उस छोटे से कीड़े की तरह होते हैं जिसे चबा लिए जाने के ठीक पहले हवा शेर के जबड़े से उड़ा कर निकाल दे और वो डिप्रेस हो जाये कि ये क्या हो गया! वहाँ तो हम कितने मजे में थे।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“दुनिया में दूसरे को मार देने वाले से लेकर दूसरे के लिए ख़ुद मर जाने वाले दोनों ही चरम के लोग हैं। तो दुनिया का क्या टेन्शन लेना? वो शायद बनी ही है ऐसी होने के लिए। फिर बुरे लोग होंगे ही नहीं तो जो अच्छा है उसका वैल्यूए ख़त्म नहीं हो जाएगा? दिन-रात न होकर हमेशा अँजोरे (उजाला ही) रहे तो उसका क्या भैल्यू बचेगा?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah





