लेबंटी चाह | Lebanti Chah Quotes
लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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लेबंटी चाह | Lebanti Chah Quotes
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“मान लीजिए जिसको शेयर बाजार के बारे में इतना बुझाएगा ...उ बैठ के टीवी पर बताएगा कि खुद पैसा बनाएगा ?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ऐसा अंतर्मुखी और उत्सुक कि उसका आकलन लोग दो विपरीत तरीके से करते - आधे लोग कहते, ये बोलता ही नहीं है। बाक़ी कहते, ये कितना ज्यादा बोलता है! ”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ऐ मौसम बैज्ञानिक के सार, गर्मी में गर्मी नहीं होगा त शीतलहरी चलेगा रे? आ जानते हैं भैया जो जेतना गर्मी-गर्मी चिल्ला रहा है ना, अगर कल को पटना में गलती से बर्फ पड़ गया… त इहे सब आदमिया आपको जीने नहीं देगा कि देखो कैसे मौसम का माँ-बहन हो गया है!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“जो भी काम करो उसीमें दिमाग और मन लगाओ। माने घासे छिलो तो साला ऐसा कि गोल्फ़ कोर्स का कॉन्ट्रैक्ट मिल जाए।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“जो हुआ अच्छे के लिए ही हुआ …हमें वैसे दिखे न दिखे। कई बार हम उस छोटे से कीड़े की तरह होते हैं जिसे चबा लिए जाने के ठीक पहले हवा शेर के जबड़े से उड़ा कर निकाल दे और वो डिप्रेस हो जाये कि ये क्या हो गया! वहाँ तो हम कितने मजे में थे।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“बीरेंदर ने अपनी दोस्त का परिचय कराया “मिलिए हमारी दोस्त मेंटल से। जानते हैं भैया क्या हुआ? हम भगवान से मांगे थे मानसिक शांति। आ उ हुआ का कि अङ्ग्रेज़ी-हिन्दी के चक्कर में थोड़ा गरबरा गया। हमारा उच्चारन भी तो वही है। तो भगवानजी हमको ‘मेंटल पीस’ का जगह एक ठो 'मेंटल पीस' दे दिये।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“थोड़ा जादे गंदगी है, का कीजिएगा कुकुर ही नहीं यहाँ आदमी भी खंभा देख के उसी का इस्तेमाल करते हैं। कभी आपके दिमाग में आया है कि ये खंभा भी कभी तो एकदम फरेस… चूना-पालिस मारके एकदम चकाचक रहा होगा। फिर अइसा कौन आदमी होगा जो पहली बार मुँह उठा के थूका होगा? माने अभी तो गंदा है तो लग रहा है कि जगहे है थूकने का। लेकिन जब चमक रहा होगा तब जो सर्र से थूक के लाल कर दिया होगा… उसको मज़ा आया होगा क्या? चमचमाती दीवार देख थूकने वाले का थूकने के लिए जी मचल जाता होगा या उसको थूक कर बुरा लगता होगा?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“भारत में सबसे प्रचलित यदि कुछ है तो वो है सड़क किनारे की चाय। पर वो इतनी विशेष इसलिए भी है कि हर दूसरी चाय भिन्न ही होती है! किसी भी दो जगहों पर तुम्हें एक जैसी चाय नहीं मिलेगी। भारत भी ऐसा ही है, सब कुछ एक जैसा होते हुए भी बिल्कुल अलग-अलग। एक-सा पर अपने अंदर अनंतता लिए।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“स्मृति में लोग वैसे ही रह जाएं जैसे मिले थे तो कितना अच्छा होता। दुबारा मिलने पर अक्सर झटका क्यों लग जाता है? जैसे जैसे हम किसी को जानने लगते हैं उनकी परतें खुलने लगती हैं।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“सब कुछ हो सकता है पर हम फिर से वो नहीं हो सकते जो दिल टूटने के पहले हुआ करते थे।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“जलेबी में कैलोरी गिनूँ इतना भी बदनसीब नहीं हूँ।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“कुछ रिश्ते आपको वो बना देते हैं जो आप नहीं होते - अच्छे से अच्छा, बुरे से बुरा।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“कैलासनाथ मंदिर देख विस्मय इस बात का भी था कि ये जगह संसार की सबसे प्रसिद्ध जगह क्यों नहीं है? एक साथ तीन धर्म की गुफाएँ? मानों किसी युग में संसार के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय की तीन उत्कृष्ट प्रयोगशालाएँ रही हों। सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु, ब्रह्म, दर्शन, ज्ञान, कर्म, योग, वैशेषिक, सांख्य, वेदांत, अनेकांत, निर्वाण, संघ, शून्यवाद, अनंत - सब कुछ मथ कर सार तत्व निकाल देने वाली प्रयोगशालाएं। विचारों की। शास्त्रार्थ की। परम्परा जो इन अद्भुत मानवी कृति की तरह ही समय के साथ जंगल में कहीं खो गयी। वो कैसा युग रहा होगा! धर्म ऐसे ही तो होने चाहिए।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“…दुनिया के दो अनजान कोनों के अजनबी भी कैसी अर्थहीन बातों से जुड़ते चले जाते हैं और कभी-कभी सब कुछ एक जैसा होते हुए भी लोग अजनबी ही बने रह जाते हैं। […] उन दोनो के पास बात करने का कोई मुद्दा नहीं होता और जब बात करते तो मुद्दों का कोई अंत भी नहीं होता। जब कुछ बात करने का मन होता तो एक-दूसरे से बात कर लेते और जब बात करने को कुछ भी नहीं होता तो भी एक-दूसरे से बात करने लगते तो बातें ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“ये पटना शहर गंगा जी जैसा है। सबका पाप धो लेता है। सबको समाहित कर लेता है अपने अंदर। कभी बरसात में पटना में गंगा किनारे जाइए। सब जलमग्न दीखता है - क्षितिज तक। घोर मटमैला। लगता है प्रलय आ गया। आ उसी में घोराए हुए पानी में बीच-बीच में बहता हुआ दीख जाता है- कभी छप्पर तो कभी कोई जीव। कहीं दूर दीख जाते हैं किसी बहते से टीले पर बैठे हुए कौवे। वो होती है किसी प्राणी की लाश। गंगा सब लिए जाती है। जो उसमें पड़ जाए। बिना शिकायत। वैसे ही है ये शहर। उसके बाद उसी से उपजाऊ भी तो बनता है ये पूरा बेल्ट। आप को नरक भी मिलेगा लेकिन सब एक साथ देखेंगे तो सर झुका कर प्रणाम कर लेंगे। जब शांत हो तब इधर डुबकी लगाइए।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“ई सब सोच के थोड़े होता है। बस हो जाता है। प्रेम में भावनाएं और तर्क तेल और पानी की तरह होते हैं। वो आपस में घुल तो सकते नहीं। चाहे केतनों फेंट लीजिये।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“यहाँ कभी कृष्ण आए थे, जरासंध का अखाड़ा देखे हम लोग, बुद्ध और महावीर भी। सब आकर चले गए। आ आज का जो मगध है आप देखिए रहे हैं। हिहें नालंदा भी था। क्या कीजिएगा। जब वो लोग इसे हमेशा के लिए स्वर्ग नहीं बना पाए तो हम लोग का उखाड़ लेंगे। जब नेतवन सब कहता है कि पाँच साल में बिहार को ये बना देंगे वो बना देंगे तो हम यही सोचते हैं।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ऐसा है कि ध्यान देना चाहिए भैल्यू पर और अरमान होना चाहिए फक्कड़-निराला का।
[...] लेकिन यहाँ है उलटा। आदमी का अरमान होता है आसमान पर आ गुण में गुड़-गोबर।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
[...] लेकिन यहाँ है उलटा। आदमी का अरमान होता है आसमान पर आ गुण में गुड़-गोबर।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“राजेश जी का भतीजा इंजीनियर है इसलिए राजेशजी उसे “पूरे बकलोल है” कहते। एक दिन बोले - “जानते हैं सर, एक ठो इंजीनियर बंगलउर से पर्ह के हमरे गाँव आया त पूछता का है कि पापा एतना ऊँचा बाँस में झण्डा कईसे लग गया? हम वहीं थे बोले कि भो** के तेरी अम्मा को सीढ़ी लगा के चढ़ाये थे। इंजीनियर सबसे तेज़ तो हमारे गाँव का बैलगाड़ी हाँकने वाला होता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“आजकल जिसे देखिए वही आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, क्लाउड जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है – आ ऐसा न डिब्बा बंद ज़िन्दगी जीया है सब कि क्या बताएँ। आपको भरोसा नहीं होगा लेकिन ऐसे-ऐसे लोग भी हैं जिन्हें लगता है कि गेहूँ-धान भी फ़ैक्ट्री में बनता है। कुछ दिन में इन्हें लगने लगे कि डाउनलोड होकर आता है तो भी आश्चर्य नहीं! अब ऐसे लोग क्या बनेंगे इंजीनियर और क्या बनाएँगे प्रोडक्ट!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“कुछ दिन झोला लेकर घूम-घाम के आओ तब बुद्धि खुलेगा तुम लोगोंका।[…] बुद्धि रगड़ने से खुलती है। सुख-सुविधा में सुग्गा जैसा पोस के रखने की चीज नहीं है। फिट रखने की चीज है। जैसे व्यायाम से मोटापा नहीं होता वैसे ही रगड़ के इस्तेमाल करने से बुद्धि भी फिट रहती है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“अमीर के साथ बेटी भाग जाए तो आदमी यहाँ कन्यादान का मंत्र पढ़ने लगता है… गरीब के साथ भागे तो ‘ऑनर किलिंग’। माने वैसे ही है जैसे कि तालिबान को हर तरह के मूर्ति, फोटो सब से घोर नफ़रत है। लेकिन डॉलर का नोट पर बने फ़्रैंकलिन के फोटो से कभी उसको दिक्कत हो सकता है?
[…] वैसा ही हिसाब है यहाँ इज्जत का भी। पैसे सबसे बड़ा एक्वालाइजर हैं। एक्वालाइजर समझते हैं ना? सब बरोबर कर देने वाला। दुर्मुस के जैसे। दुर्मुस वही जो मिट्टी, गिट्टी, पत्थर, सड़क कुछ भी पीट कर समतल कर देता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
[…] वैसा ही हिसाब है यहाँ इज्जत का भी। पैसे सबसे बड़ा एक्वालाइजर हैं। एक्वालाइजर समझते हैं ना? सब बरोबर कर देने वाला। दुर्मुस के जैसे। दुर्मुस वही जो मिट्टी, गिट्टी, पत्थर, सड़क कुछ भी पीट कर समतल कर देता है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“समझदार हैं इसीलिए तो उलझ गए। इंटेलेक्चुअल लोगों के ही प्यार का विध्वंस होता है। जो समझने की चीज़ ही नहीं उसे समझने का भ्रम। जिन्हें ये भ्रम हो उनके साथ ऐसा ही तो होगा।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“ज़िंदगी में उसे अद्भुत लोग मिले, एक से बढ़कर एक – सोने से खरे। पर वो अधिकतर पढ़े-लिखे, असाधारण, विलक्षण लोग थे। उनसे परे पटना में मिले अजनबी लोग इतने साधारण थे कि… सरलता ही उनकी खूबसूरती थी। ताओवाद के ‘वु वे’ की तरह जिसका अर्थ होता है–कुछ नहीं करना। आनंदमय प्रवाह जिधर ले जाए उधर चलते जाना। […] जो सरलता अनुराग को चाय की दुकान पर हुईं मुलाकातों में देखने को मिली थी वो उसे बड़ी-बड़ी किताबों और पढ़े-लिखे ज्ञानियों में कभी नहीं मिली।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“एक होता है अभाव का दुःख… संघर्ष का दुःख! उसमें एक आशा होती है। जैसे मोटे अनाज से पेट खराब नहीं होता। सुना है आपने कभी किसी गरीब को चरबी से होने वाली बीमारी हो जाए? आ बाकी लोग के वैसा दुःख है जिन्हें …कोई दुःख है ही नहीं। जिसके पास सब कुछ है और वो ऐसी बातों से दुखी है जिसका न कोई कारण है न ही कोई हल। जो मन से दुखी है, रिश्तों से दुखी है। जिनकी ज़िंदगी में चार हीरे जैसे लोग आए और वो उनके साथ भी प्रेम से नहीं रह पाए …आ पैसा रुपया सब भरले है। लोग ऐसे न अझुराये (उलझे हुए) रहते हैं आज के जुग में! अक्सर बिना बात ही। उसे हम हसीन दुःख कहते हैं। उसका कोई हल नहीं होता।”
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― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“दुनिया में दूसरे को मार देने वाले से लेकर दूसरे के लिए ख़ुद मर जाने वाले दोनों ही चरम के लोग हैं। तो दुनिया का क्या टेन्शन लेना? वो शायद बनी ही है ऐसी होने के लिए। फिर बुरे लोग होंगे ही नहीं तो जो अच्छा है उसका वैल्यूए ख़त्म नहीं हो जाएगा? दिन-रात न होकर हमेशा अँजोरे (उजाला ही) रहे तो उसका क्या भैल्यू बचेगा?”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“चाय अच्छी-बुरी कहाँ होती है? वो तो पीनेवाले पर निर्भर करता है। कितना दूध, कितनी पत्ती और कितनी देर तक उबाली जाय - इन सबका अपना व्यक्तिगत पैमाना होता है! चाय बनाने के सबके अपने-अपने तरीके भी होते हैं। चाय के शौकीनों को एक-दूसरे की बनाई चाय अच्छी नहीं लगती! बीरेंदर कहता कि जैसे-जैसे लोग ‘बड़े आदमी’ बनते जाते हैं-‘ब्लैक टी’ की तरफ़ बढ़ते जाते हैं। चीनी और दूध दोनों की मात्रा कम करते जाते हैं। ज़्यादा बड़े लोग बिना शक्कर बस ब्लैक ही ‘परेफर’ करते हैं।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
“देखने में जेतना अईसा आदमी होता है न, टेंसन ना लेने वाला, उसका अंदर से ओतना ही खेला साफ़ होता है!”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“प्रेम… एक पुवाल की आग की तरह और दूसरा गोईंठे की आग की तरह। जितनी एक की मियाद होती है, दूसरे का तो उतने समय के बाद अंकुर ही फूटता है। तुम्हें कैसे समझाऊँ पर ऐसा है कि एक पुवाल की आग है। भभक कर जलता है। एकदम आसानी से। उसके बाद कुछ नहीं बचता–राख भी नहीं। दूसरा गोईंठा की आग है। देर से जलता है। धुआँ होता है। धीरे-धीरे सुलगता है पर आग ऐसी जो रात भर रह जाती है।”
― लेबंटी चाह | Lebanti Chah
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“फोनाग्रे वसते ट्विटरः फोनमध्ये जीमेलः। फोनमुले तू फेसबुकः प्रभाते फोन दर्शनं।”
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