Goodreads helps you follow your favorite authors. Be the first to learn about new releases!
Start by following सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'.

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' > Quotes

 

 (?)
Quotes are added by the Goodreads community and are not verified by Goodreads. (Learn more)
Showing 1-30 of 62
“नित्यता क्षणों की है, पर क्षण, क्षण–भंगुर हैं। मैं भी हूँ, मुझमें जो कुछ नूतनता है, उसे मुझे इसी क्षण में कह डालना है, क्योंकि वह भविष्य की वस्तु है, मैं उसे कहे बिना रुक नहीं सकता और सोचने का समय नहीं—क्षण का अस्तित्व कितना?”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
“मैं जो सदा आगे की ओर ही देखता रहा, अपनी जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुँच कर पीछे देख रहा हूँ कि मैं कहाँ से चलकर किधर-किधर भूल-भटककर, कैसे-कैसे विचित्र अनुभव प्राप्त करके यहाँ तक आया हूँ । और तब दिखता है कि मेरी भटकन में भी एक प्रेरणा थी...।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', शेखर: एक जीवनी - 1
“सत्य अपने अन्तर की पीड़ा से जाना जाता है।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“तुम विमुख हो किंतु मैंने
कब कहा उन्मुख रहो तुम?
साधना है सहसनयना
बस, कहीं सम्मुख रहो तुम!
विमुख-उन्मुख से परे भी
तत्व की तल्लीनता है—
लीन हूं मैं, तत्वमय हूं
अचिर चिर-निर्वाण में हूं!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूं!”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
“मेरा वश होता, और भविष्य बने-बनाए मिलते, तो मैं आपको एक ऐसा सुन्दर भविष्य ला देती कि बस। उसके चार पाये चार इन्द्रधनुष होते, और फूलों पर पड़ी हुई चाँदनी उसके ऊपर होती, तितलियों के पंखों से रंग लेकर उसे रँगा जाता”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“औद्योगिक क्रान्ति के साथ वह सुविधा का गुलाम बन कर एक के बाद एक विभ्राट् उत्पन्न करता चले?”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना कैसे रहा जाए ? शहर के, दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाव सहा कैसे जाए !”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', शेखर: एक जीवनी - 2
“अहंकार स्वाभाविक होता है, विनय सीखनी ही पड़ती है।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Shekhar Ek Jeevani : Part-2
“पुराने ज़माने में जब वैज्ञानिक और नीतिज्ञ एक ही था, तब विज्ञान नीति को पुष्ट करता था;”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“कमला’! विवेक कहता है, ‘यह प्रेम नहीं है, मोह है।’ कमला, कमला, कमला! तुम्हें नहीं छोड़ सकूँगा…प्रेम न सही, आसक्ति सही, मोह सही, वासना सही, पर कितनी सुखद आसक्ति, कितना मनोरम मोह, कितनी मीठी, कितनी सुरभित, कितनी प्रकांड वासना है यह!”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“वह एक सम्पन्न गूजर के घर बैठ गई थी। वह उसकी विवाहिता भी नहीं थी, उसकी रखैल भी नहीं थी। लूनी ने अपने-आप को मानो उसे दान कर दिया था, उसे अपना दान देकर विदा कर दिया था और स्वयं अकेली रह गई थी! कभी-कभी जब वह स्वयं अपनी परिस्थिति पर विचार करती, तब उसे जान पड़ता, उसके दो शरीर हैं, जो एक-दूसरे के ऊपर खड़े हैं। एक में उसकी सम्पूर्ण आत्मा, उसका अपनापन बसा हुआ है और लूनी के भाई की आराधना में लीन है; और दूसरा, निचला, केवल एक लाश-भर है। कभी-कभी दुरुपयोग से या शारीरिक अत्याचारों से पीड़ित होकर यह लाश ऊपर की आत्मा के पास फ़रियाद करती थी, तो उसमें एक क्षीण व्यथा-सी जागती थी, अन्य कोई उत्तर नहीं मिलता था…जैसे कोई दान दी हुई गाय का कष्ट देखकर यही सोचकर रह जाता है कि अब मुझे इसका कष्ट निवारण करने का अधिकार नहीं रहा! जब”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“और गार्हस्थ्य एक लम्बी यात्रा है—बल्कि पथ-यात्रा नहीं, सागर-यात्रा, जिस में मोड़-चौराहे पर नहीं, क्षण-क्षण पर संकल्प-पूर्वक जोखम का वरण करना होता है और कोई लीकें आँकी हुई नहीं मिलतीं, नक़्शे और कम्पास और अन्ततोगत्वा अपनी बुद्धि और अपने साहस के सहारे चलना होता है।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“संकट में हम हार जाएँगे, मैं नहीं मानती, और मुझे लगता है कि यह न मानना भी स्वयं एक मोर्चा है क्योंकि मानव-नियति में विश्वास खोना मानव की प्रतिष्ठा की लड़ाई हार जाना है…”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“नीति से अलग विज्ञान बिना सवार का घोड़ा है, बिना चालक का इंजिन : वह विनाश ही कर सकता है।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“तुम्हें जो राह दीखती है, उस पर चलो, गौरा। धैर्य के साथ, साहस के साथ। और हाँ, जो तुमसे सहमत नहीं हैं उनके प्रति उदारता के साथ, जो बाधक हैं उनके प्रति करुणा के साथ। और राह पर जब ऐसा साथी मिलेगा जिस का साथ तुम्हें प्रीतिकर, वांछनीय, कल्याणप्रद लगे, तब किसी की बात न सुनना, जान लेना कि अब स्वतंत्र रूप से जोखम वरने का समय आ गया।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“अमरवल्लरी के स्पर्श में एक साथ ही वसन्त के उल्लास का, ग्रीष्म के ताप का, पावस की तरलता, शरद् की स्निग्धता का, हेमन्त की शुभ्रता का और शिशिर के शैथिल्य का अनुभव हुआ है, न जाने कितनी बार इसके बन्धनों में बँधकर और पीड़ित होकर मुझे अपने स्वातन्त्र्य का ज्ञान हुआ है! एक व्यथा, एक जलन, मेरे अन्तस्तल में रमती गई है कि मैं मूक ही रह गया, मेरी प्रार्थना अव्यक्त ही रह गई—पर मुझे इस ध्यान में सान्त्वना मिलती है कि मैं ही नहीं, सारा संसार ही मूक है…”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“क्रान्ति सुधार नहीं है।” “न सही। परिवर्तन ही सही। लेकिन परिवर्तन का भी तो ध्येय होता है!” “क्रान्ति परिवर्तन भी नहीं है।” मैंने सोचा, पूछूँ तो फिर क्रान्ति है क्या? किन्तु मैं बिना पूछे उसके मुख की ओर देखने लग गया। वह स्वयं बोली, “क्रान्ति आन्दोलन, सुधार, परिवर्तन कुछ भी नहीं है; क्रान्ति है विश्वासों का, रूढ़ियों का, शासन की और विचार की प्रणालियों का घातक, विनाशकारी, भयंकर विस्फोट! इसका न आदर्श है, न ध्येय, न धुर। क्रान्ति विपथगा, विध्वंसिनी है, विदग्धकारिणी है!”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“कार्ल न जाने क्यों अधिकाधिक उदास होता जा रहा है—वह कहता है कि हम अपनी ही हानि कर रहे हैं। कहता है कि सिकन्दर पागल था—अपने राष्ट्र को दूर-दूर तक फैलाता गया, पर उसकी रक्षा नहीं कर सका—व्यर्थ ही इतने प्राण नष्ट किए—एक अपनी व्यक्तिगत तृप्ति के लिए…वह कहता है कि सबको स्वतन्त्र होने का अधिकार है, कि एक देश पर दूसरे देश का अधिकार स्थापित करना नीचता है और अन्याय की सीमा है…”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“मन की यह भी एक शक्ति है कि ज़रा से भी साम्य के सहारे वह सहज ही सम्पूर्ण लयकारी सम्बन्ध जोड़ लेता है।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“जैसे कोई दान दी हुई गाय का कष्ट देखकर यही सोचकर रह जाता है कि अब मुझे इसका कष्ट निवारण करने का अधिकार नहीं रहा!”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“जीवन तीव्र और अनवरुद्ध गति से आगे बढ़ता जा रहा है, और मैं मूर्ख की तरह उसके साथ क़दम मिलाकर चलने की निष्फल चेष्टा कर रहा हूँ…पैदल आदमी सरपट दौड़ते घोड़े से क़दम मिलाए…”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“वहीं, नित्य-प्रति रात को लोग आते थे, हमारे शरीरों को देखते थे, गन्दे संकेत करते थे, और हम बैठी सब कुछ देखा करती थीं। वहाँ, जब चूसे हुए नींबू की तरह बीमारियों से घुले हुए वे पूँजीपति साफ़-साफ़ कपड़े पहनकर इठलाते हुए आते थे—उफ़्! जिसने वह नहीं देखा, वह पूँजीवाद और साम्राज्यवाद का दूरव्यापी परिणाम नहीं समझ सकता! धन के आधिक्य से ही कितनी बुराइयाँ समाज में आ जाती हैं इसको जानने के लिए वह देखना ज़रूरी है!”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“जो एक बार अपनी इच्छा से पतित होता है, उसका उत्थान होना असम्भव है। कोई उसका मित्र नहीं होता, कोई उसकी सहायता नहीं करता। मेरे लिए यही जीवन है—यही जिसे एक दिन मैंने इतनी व्यग्रता से अपनाया था, और जिसने आज साँप की तरह मुझे अपने पाश में बाँध लिया है!”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“I shall ever try to keep my body pure, knowing that thy living touch is upon all my limbs…*”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
“यह बताओ, अगर एक कांस्टैंटाइन के स्वप्न के लिए लाखों प्राणियों की आहुति उनकी इच्छा के विरुद्ध दी जा सकती है, तो क्या लाखों प्राणियों के सुख के लिए एक आदमी इच्छापूर्वक नहीं मर सकता? तुम्हारे ऊपर क्रान्ति निर्भर करे, और तुम एक जीवन का मोह करो? छिः!” कार्ल विस्मित होकर एंटनी का यह नया रूप देख रहा था, बोला, “आरोरा भी तो है…” आरोरा ने तनकर कहा, “आरोरा भी तो मरना जानती है, डरती नहीं।” एंटनी बोला, “नहीं, आरोरा की बात नहीं है। वह तुम्हारे साथ जा सकती है।” आरोरा ने मुँह फेर लिया था। यह बात सुनकर वह तीखे स्वर में बोली, “ठीक है, आरोरा जा सकती है।” इस”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“प्रेम आईने की तरह स्वच्छ रहता है, प्रत्येक व्यक्ति उसमें अपना ही प्रतिबिम्ब पाता है, और एक बार जब वह खंडित हो जाता है, तब जुड़ता नहीं। अगर किसी प्रकार निरन्तर प्रयत्न से हम उसके भग्नावशिष्ट खंडों को जोड़कर रख भी लें तो उसमें पुरानी कान्ति नहीं आती। वह सदा के लिए कलंकित हो जाता है। स्नेह अनेकों चोटें सहता है, कुचला जाकर भी पुनः उठ खड़ा होता है; किन्तु प्रेम में अभिमान बहुत अधिक होता है, वह एक बार तिरस्कृत होकर सदा के लिए विमुख हो जाता है। आज इस वल्लरी के प्रति मेरा अनुराग बहुत है, पर उसमें प्रेम का नाम भी नहीं है—वह स्नेह का ही प्रतिरूप है। वह विह्वलता प्रेम नहीं है, वह केवल प्रेम की स्मृति की कसक ही है।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Ageya Ki Sampurna Kahaniyan
“एक आदमी के भीतर जो शैतान होता है, वह तब तक दूसरे आदमी के भीतर के शैतान का पक्ष लेता है, जब तक कि उसका स्वार्थ न बिगड़े।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', मेरी प्रिय कहानियाँ
“वह सिवाय तीखी उत्तेजना के कुछ समझता ही नहीं, लिहाजा चन्द्रमाधव भी एक तरह का नशेबाज है और जीवन की महत्त्वपूर्ण चीज़ों को नहीं पहचान सकता।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“कला यानी पोस्टर, संगीत यानी फ़ौजी बैंड…और साहित्य यानी पैम्फ़लेट, परचे, अख़बारनवीसी, रिपोर्टाज का नया माध्यम जो न पूरा तथ्य है न पूरी कल्पना,”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep
“चलती गाड़ी में मुझ-से व्यक्ति को एक स्वच्छन्दता का बोध होता है”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', Nadi Ke Dweep

« previous 1 3
All Quotes | Add A Quote
शेखर: एक जीवनी - 2 शेखर
166 ratings