सोच-समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला
फिल्म इल्म - बजाते रहो :
इस फिल्म की खासियत यह है कि दस विदानिया बनाने वाले सशांत शाह की बनाई फिल्म हैं, विनय पाठक भी साथ में है। कहानी यह है कि ईमानदार बैंक अधिकारी बवेजा अपने बैंक के मालिक सबरवाल यानी रविकिशन के कहने पर कम समय में ज्यादा ब्याज का प्रलोभन देकर लोगों का पंद्रह करोड इक_ा करते हैं, और मालिक मुकर जाता है, बवेजा अपनी सहकर्मी सायरा सहित जेल भेज दिए जाते हैं। बवेजा की सदमे से मौत हो जाती है, उनकी पत्नी यानी डॉली आहलूवालिया और बेटा यानी तुषार कपूर, बवेजा की सहकर्मी के पति विनय पाठक और रणवीर शौरी उन पंद्रह करोड़ के हासिल कर वह सम्मान वापिस प्राप्त करना चाहते हैं, विनय पाठक अपनी बीवी को जेल से बाहर लाना चाहते हैं।
कहानी में कई ट्विस्ट हैं, कहानी में झोल भी उतने ही हैं। दिल्ली की कहानी है। पंजाबी बैकड्रॉप है, पंजाब एक दो लोग ही ठीक बोल पा रहे हैं। बेहद प्रतिभाशाली अभिनेता ब्रजेंद्र काला और रवि किशन की पंजाबी बेहद बनावटी है। निर्देशक पर दस विदानिया और चलो दिल्ली के समय जो प्रेम और भरोसा उमड़ा था, वह यहां तक आते-आते बिखरने लगता है। विकी डोनर और लवशव ते चिकन खुराना जैसी कई फिल्मों को मिलकर उसमें इस बैंक धोखाधड़ी वाली कहानी का स्प्रे डाल दिया जाए तो जो कामचलाऊ सी फिल्म निकलेगी वह बजाते रहो होगी। लगता है सशंात किसी जल्दी में थे, वरना ऐसा हादसा वे रच दें, यकीन नहीं आता। यहां जो काम किया है उसके आधार पर नायिका के रूप में विशाखा सिंह से उम्मीद कर सकते हैं। तुषार कपूर पंजाबी नहीं बोलते तो ज्यादा ठीक लगते। मुम्बई के अलावा बनारस के साथ दिल्ली इन दिनों बॉलीवुड वालों की पसंद है, माता की चौकी वहीं ठीक से शूट हो सकती थी, उसमें विनय पाठक हिंदी फिल्मी गीत का माता के भजन के रूप पैरोडी गाना फिल्म का सबसे प्रभावी और यादगार दृश्य है। कुलमिलाकर निर्देशक के नाम से फिल्म देखने जाने का जोखिम ना ही लें। ठीकठाक सी कॉमेडी देखनी हो तो जा सकते हैं।
दो स्टार

इस फिल्म की खासियत यह है कि दस विदानिया बनाने वाले सशांत शाह की बनाई फिल्म हैं, विनय पाठक भी साथ में है। कहानी यह है कि ईमानदार बैंक अधिकारी बवेजा अपने बैंक के मालिक सबरवाल यानी रविकिशन के कहने पर कम समय में ज्यादा ब्याज का प्रलोभन देकर लोगों का पंद्रह करोड इक_ा करते हैं, और मालिक मुकर जाता है, बवेजा अपनी सहकर्मी सायरा सहित जेल भेज दिए जाते हैं। बवेजा की सदमे से मौत हो जाती है, उनकी पत्नी यानी डॉली आहलूवालिया और बेटा यानी तुषार कपूर, बवेजा की सहकर्मी के पति विनय पाठक और रणवीर शौरी उन पंद्रह करोड़ के हासिल कर वह सम्मान वापिस प्राप्त करना चाहते हैं, विनय पाठक अपनी बीवी को जेल से बाहर लाना चाहते हैं।
कहानी में कई ट्विस्ट हैं, कहानी में झोल भी उतने ही हैं। दिल्ली की कहानी है। पंजाबी बैकड्रॉप है, पंजाब एक दो लोग ही ठीक बोल पा रहे हैं। बेहद प्रतिभाशाली अभिनेता ब्रजेंद्र काला और रवि किशन की पंजाबी बेहद बनावटी है। निर्देशक पर दस विदानिया और चलो दिल्ली के समय जो प्रेम और भरोसा उमड़ा था, वह यहां तक आते-आते बिखरने लगता है। विकी डोनर और लवशव ते चिकन खुराना जैसी कई फिल्मों को मिलकर उसमें इस बैंक धोखाधड़ी वाली कहानी का स्प्रे डाल दिया जाए तो जो कामचलाऊ सी फिल्म निकलेगी वह बजाते रहो होगी। लगता है सशंात किसी जल्दी में थे, वरना ऐसा हादसा वे रच दें, यकीन नहीं आता। यहां जो काम किया है उसके आधार पर नायिका के रूप में विशाखा सिंह से उम्मीद कर सकते हैं। तुषार कपूर पंजाबी नहीं बोलते तो ज्यादा ठीक लगते। मुम्बई के अलावा बनारस के साथ दिल्ली इन दिनों बॉलीवुड वालों की पसंद है, माता की चौकी वहीं ठीक से शूट हो सकती थी, उसमें विनय पाठक हिंदी फिल्मी गीत का माता के भजन के रूप पैरोडी गाना फिल्म का सबसे प्रभावी और यादगार दृश्य है। कुलमिलाकर निर्देशक के नाम से फिल्म देखने जाने का जोखिम ना ही लें। ठीकठाक सी कॉमेडी देखनी हो तो जा सकते हैं।
दो स्टार
Published on July 27, 2013 02:30
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