और फिर कुछ ऐसी हवा चली,कि परत दर परत उतरती गई,कुछ ऐसे बे-नक़ाब हुए अपने ही आइने में,कि जिसकी रिफ़ाक़त में हुए थे मसरूफ़,उसी से हिज्र में बेपनाह तस्कीन मिली।
तू ही बता कैसे करते जुस्तजू उस सिलसिले कीजिसकी यारी में हमें रूहानियत न मिली?अश्क बहाते भी तो किसके तसव्वुर में ? जब तेरी छुहन दिल की चौखट से ही लौट चली?
कुछ बे-हर्फ़ से हैं हम आज, कुछ शर्मिंदा भी,मोहब्बत का नाम ऐसे ज़ाया किया, उफ़ यह हमारी बे-फ़िक्री।तू तो बस दरिया में दूर तक फैला था एक सराब,जैसे रोज़ ,मौजूद-ओ-मयस्सर, कोई मुलाकात।
Glossary:
बे-नक़ाब : unveiled जुस्तजू: questरिफ़ाक़त: companionship मसरूफ़ : engrossedहिज्र : separationतस्कीन : comfort/सुकून/satisfaction रूहानियत : soulfulअश्क : tearsतसव्वुर : imagination/ thoughtबे-हर्फ़ : speechlessज़ाया : waste बे-फ़िक्री : casual attitudeसराब : mirage/illusion मौजूद-ओ-मयस्सर : easily available
Published on June 30, 2018 21:20