शाख से टूटे पत्ते आ कर मेरी गोद में गिरे थे,पीले, चुरमुरे, रंगमिटे से आज उनमे से एक पत्ता किताब के पन्नो के बीच मिल गया,भूरा, चुरमुरा, अधूरा सा,ठीक वैसा ही ठहरा जैसे वो पल ठहरा है जब बारिष से पहले ज़ोरों कि हवा में उलझ गयी थी मेरी लटें,और सुलझाने के बहाने तुमने गालों को छुआ था मेरे,हाँ, वो पल, वैसा ही है ,मटमैला, चुरमुरा और अधूरा..
Published on November 09, 2020 10:00