सड़को पर चटाई बिछा के चिलचिलाती धूप में घर परिवार जोड़े-बैठे,गांव जाने की चाह में तकती हुई गरीबों की आँखे,अब थकी-थकी सी नज़र आती हैं!
जिन्होंने अपनी हड्डियों को गला-गला के इन पूँजीपतियों (Capitalists)को करोड़पति बनाया, ये संवेदनहीन लोग इन्हे दो महीने का सहारा नहीं दे सके? जिन्होंने तुम्हारी ऊँची इमारतों को बनाने के लिए रेते में सीमेंट के साथ अपना खून भी मिलाया,क्या उनके बच्चों को मुसीबत के वक़्त खाना देने तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं थी?
जब भी बिल्डिंग से नीचे उतरता हूँ ये हज़ारो की तादाद में इखट्टी आशाएं मुझसे चुपके से पूछ लेती हैं,"क्यों अनुपम मियां,अब हमारी मज़बूरियों की फोटो खिंच के पोस्ट लिखोगे न"?मैं कहता हूँ हाँ,इन मरी हुई आत्माओं वाले जिंदा लोगो को जिन्दा करने के लिए जो बन पड़ेगा करूँगा.
कल बॉस को फोन किया की सर मेरी बिल्डिंग के नीचे हज़ारो आदमी भेड़-बकरियों की तरह पड़े हैं,अपने Plant में क्यों न लेले इनको,पर उनकी मजबूरी की उन्हें "Relevant Experience" चाहिए!
इन लोगों का दोषी अदृश्य वायरस नहीं है,इनके दोषी सरकारें हैं, Industrialists हैं,आप-मैं हैं,वो संस्थाओं हैं जो एक बार १०० लोगों को खाना देकर हज़ार फोटो निकालती हैं!
कभी सोचता हूँ सड़को पे पड़े ये लोग ये,महिलाये,बच्चे सुबह टॉयलेट कैसे जाते होंगे, नहाते कहाँ होंगे? क्या उन मकान मालिकों की आत्मा मर गयी थी जब इन सबको सड़को पे धकेला!
शायद हाँ आत्मा तो शायद हम सबकी ही मर चुकी है
#Anupamism
Published on May 27, 2020 04:46