सर्दी आई
धीमे से
बिन दस्तक
तुम्हारी खिड़कियों
दरवाज़ों की बेजोड़
नाकाबंदी पर
बेलगाम
बेहिचक
आक्रमण कर
दहलीज़ों की छिद्रों से
घुसपैठ कर
बिन आहट
बिस्तर पर चढ़
अपनी तलवार
गर्दन पर रख
तुमसे सवाल कर
बैठी की
जीना है तो
मेरे इशारों पर
जीना होगा
वह सीधे नाक पर
ज़िद की मुहर लगाकर
तुम्हारी साँसो से
खिलवाड़ कर
तुम्हारी जीवनशैली
पलट कर
तुम्हारी छाती पर
नृत्य कर
तुम्हारी सिसकियों
का हिसाब मांग रही
और अंततः
हर उमड़ते आँसुओं
को तुम्हारे अंदर ही
जमा कर
तुम्हें एक और
मर्ज़ दे गई।
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Published on November 11, 2025 10:38