इन आंकड़ों से प्रत्येक देशभक्त को सदमा पहुंचेगा

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् से सोलहवें आम चुनावों के लिए देश तैयार है।


 


भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ, 1950 में संविधान लागू हुआ, जिसमें संसदीय लोकतंत्र को शासन पध्दति के रुप में चुना गया। इसका पहला आम चुनाव 1952 में सम्पन्न हुआ।


 


आज देश सोलहवीं लोकसभा के आम चुनावों हेतु तैयार है। ‘फार्च्यून‘ hindol-senguptaपत्रिका के भारतीय संस्करण के वरिष्ठ सम्पादक हिन्डॉल सेनगुप्ता, जिन्हें वैश्विक विचार मंच ने उन 32 उद्यमियों की सूची में चुना है जिन्होंने विश्व को एक बेहतर स्थान बनाया है, ने एक पुस्तक प्रस्तुत की है, जिसका शीर्षक है ”उन 100 चीजों को जानो तथा बहस करो, वोट करने से पहले।”


 


यह मुख्यतया 2014 के भारत के बारे में आंकड़ों का संग्रह है, जो पाठकों को चौंका देगा।


 


उदाहरण के लिए इन सौ चीजों की सूची में 37वीं चीज। आधे पृष्ठ के ‘नोट‘ का शीर्षक है 37। जब जरुरत हो, किडनी बेचो! (When is need sell a kidney!)’नोट‘ इस प्रकार है:


 


”विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनिजेशन) कहता है कि मानव अंग प्रत्यारोपण कानून, 1994 के बावजूद भारत का अवैध अंग प्रत्यारोपण बाजार ‘पुन: फलफूल‘ रहा है क्योंकि मानव अंग नियमित रुप से स्थानीय दान-दाताओं से लिए जाते हैं जोकि अक्सर आर्थिक रुप से गरीब हैं, उन्हें थोड़ा पैसा दिया जाता है (कभी-कभी 1,30,000-1,50,000 डॉलर के सौदे में मात्र 5,000 डॉलर)।


 


लगभग 2,000 भारतीय प्रतिवर्ष एक किडनी बेचते हैं, यह अनुमान है वालिंयटेरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इण्डिया का।


 


यदि एक ऐसे देश में जहां गरीब अपने अंग बेचते हैं तो कैसे विकास के नाम पर हम चुनाव कर सकते हैं?”


 


इस सौ चीजों की सूची में 25वां विषय है जिसे ‘मलमूत्र का मामला* (The Matters of Excreta) के रुप में वर्णित किया गया है। ‘नोट‘ कहता है:


 


भारत की सर्वाधिक प्रमुख स्वतंत्र शोध संस्था ‘दि सेंटर फॉर साईंस एण्ड एनवायरमेंट (CSE) अपनी बात साफगोई से कहती है। इसलिए कूड़ा करकट प्रबन्धन सम्बन्धी रिपोर्ट कहती है ‘मलमूत्र भी महत्वपूर्ण‘ है। रिपोर्ट कहती है कि 80 प्रतिशत-भारत के सीवेज का 80 प्रतिशत बगैर शोधन के सीधे नदियों में जाता है जोकि पेयजल के मुख्य स्त्रोत को प्रदूषित करता है।


 


इसका क्या अर्थ है?


 


इसका अर्थ यह है कि अशोधित सीवेज सीधे पानी में जाता है और जो हमें पीने के लिए वापस मिलता है।


 


book-hindolभारत के शहरों द्वारा पैदा किए जाने वाले लगभग 40,000 मिलियन लीटर सीवेज का केवल 20 प्रतिशत ही शोधित किया जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक सन 2011 में भारत के लगभग 8,000 भारतीय शहरों में से केवल 20 प्रतिशत के पास ही सीवेज के शोधन की सुविधाएं थीं।


 


सीएसई ने इसे एक ‘टिक-टिक करता स्वास्थ्य टाइम बम‘ कहा है।


 


सीएजी ने इसमें ओर सदमा पहुंचाने वाली जानकारी जोड़ी है-दिल्ली के सीवेज का मात्र 62 प्रतिशत ही शोधित किया जाता है, बेंगलुरु अपने सीवेज का सिर्फ 10 प्रतिशत, पटना 29 प्रतिशत, कानपुर 38 प्रतिशत और हैदराबाद 43 प्रतिशत शोधित करता है। केवल अहमदाबाद के पास ही यह सुविधा है कि वह अपने सारे कूड़े-करकट को शोधित कर सके। याद रहे कि गंदे पानी से ही डेंगू बीमारी जन्म लेती है? क्या कभी ऐसे चुनावी भाषण सुने गए हैं जिसमें सीवेज शोधन संयंत्रों की संख्या बढ़ाने का वायदा किया गया हो?


 


इस सौ चीजों की सूची में 31वें विषय का शीर्षक है 31। ‘खाद्य का सड़ना‘ (Food Rotting)! ‘नोट‘ के अनुसार:


 


सन् 2013 में मैंने सर्वाधिक रोचक वैश्विक रिपोर्ट पढ़ी जोकि ‘वैश्विक खाद्य‘ को लेकर थी-इंस्टीटयूशन ऑफ मैकेनिक इंजीनियर्स की रिपोर्ट ‘बेस्ट नॉट, वांट नॉट‘ (Waste Not, Want Not)।


 


इसके अनुसार भारत प्रत्येक वर्ष 21 मिलियन टन गेंहू पर्याप्त भण्डारण के अभाव में गंवा देता है। यह आस्ट्रेलिया के वार्षिक कुल उत्पादन के बराबर है।


 


यह रिपोर्ट कहती है कि देश में उत्पादित किए जाने वाले फलों और सब्जियों का 40 प्रतिशत व्यर्थ जाता है।


 


यह सब अपर्याप्त भण्डारण का नतीजा है।


 


इस पुस्तक में ‘सड़क दुर्घटनाओं‘ (Road Accidents) के बारे में भी सदमा पहुंचाने वाले आंकड़े दिए गए है।


 


”विश्व के अन्य देशों की तुलना में, भारत में ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं।”


 


इसमें आगे कहा गया है:


 


विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) कहता है कि सन् 2009 और 2013 के बीच एक लाख जनसंख्या पर मृत्यु दर 16.8 से 18.9 बढ़ी है।


 


यदि 2011 के आंकड़ों को देखें तो हमारे यहां 4,40,123 सड़क दुर्घटनाएं हुईं और उनमें 1,36,834 लोगों की मौत हुई। सन् 2001 और 2011 के बीच भारतीय सड़कों पर दुर्घटनाओं में मृत्यु दर 44.2 प्रतिशत तक बढ़ गई है।


 


वर्तमान में, भारत में प्रत्येक पांच मिनट पर एक व्यक्ति सड़क दुर्घटना में मरता है। सन् 2020 तक यह संख्या बढ़कर प्रत्येक तीन मिनट पर एक व्यक्ति हो जाने का अनुमान है।


 


इस सौ चीजों की सूची में 70वां विषय है 70। ‘एक महिला के लिए सर्वाधिक बुरा स्थान‘ (The Worst Place to be a women!)। इस शीर्षक के तहत ‘नोट‘ में लिखा है:


 


”सन् 2013 में जी 20 के अमीर देशों में से भारत को एक महिला के लिए सर्वाधिक बुरा स्थान कहा गया। थामसन रायटर्स फाऊण्डेशन की एक विधिक समाचार सेवा ‘ट्रस्टलॉ‘ (Trust Law) कहता है कि दुनिया भर के 370 लैंगिक विशेषज्ञों के सर्वेक्षण करने पर भारत, की महिलाओं के मामले में सऊदी अरब से भी नीचे पाया जहां महिलाएं अभी भी गाड़ी नहीं चला सकतीं और उन्हें सन् 2011 से ही मतदान की अनुमति मिली है।


 


कनाडा सूची में सबसे ऊपर है, फिर जर्मनी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और फ्रांस का स्थान आता है।


 


इसमें उन सभी कारणों को गिनाया गया है जो भारत को महिलाओं के लिए सर्वाधिक बुरा सिध्द करते हैं-दहेज हत्याएं, कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या, या बच्चों के जन्म से पहले या बाद में हत्या मात्र इसलिए कि वह कन्या थी, लगातार रोजमर्रा की बेइज्जती, भारत भर में छेड़छाड़ ओर बलात्कार तथा विश्व की तुलना में महिलाओं के लिए कुछ सर्वाधिक असुरक्षित ओर हिंसक सार्वजनिक स्थान और निरन्तर भेदभाव।


 


प्रत्येक ‘ब्रिक्स‘ (BRICS) राष्ट्र भारत से आगे है -ब्राजील 11, रुस 13, चीन 15, और दक्षिण अफ्रीका 17 पर। यहां तक कि इण्डोनेशिया 18 पर है।


 


सौ की सूची में 84वां विषय ‘निम्न सूचना प्रौद्योगिकी अनुपात‘ (Low Information Technology Quotient) से सम्बंधित है। इस ‘नोट‘ में उपरोक्त मुद्दों का वर्णन दिया गया है:


 


”सन् 2013 में, इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन्स यूनियन ने 157 राष्ट्रों में से भारत को 121वें स्थान पर रखा था जो सूचना एवं संचार प्रोद्योगिकी के मामले में काफी पीछे है।


 


हमारी महान सूचना-तकनीक कुशलता के लिए इतना!


 


यह क्रमांक आईसीटी डेवलेप्मेंट सूचकांक के ‘संकेतकों पर आधारित है। जिन चीजों को ध्यान में लिया गया उनमें-प्रति 100 जनसंख्या पर इंटरनेट यूजर्स, वायरलेस और ब्रॉडबैंड पहुंच, मोबाइल उपभोक्ता और इंटरनेट विथ प्रति यूजर।


 


ब्राँडबैंड कमीशन फॉर डिजिटल डेवलेपमेंट रिपोर्ट में भारत को 200 देशों में से 145वें क्रमांक पर रखा गया है।


 


वास्तव में, भारत को कम से कम कनेक्टेड देशों के 39 के समूह में स्थान दिया गया है। इस 39 देशों के समूह में अधिकतर अन्य अफ्रीकी राष्ट्र हैं।”


 


टेलपीस (पश्च्यलेख)


 


28वें विषय का शीर्षक है। तारीख दर तारीख दर तारीख ! ‘नोट‘ में नीचे लिखा है:


 


क्या आपने हिन्दी फिल्म दामिनी देखी है? इसमें सन्नी दयोल ने एक जिद्दी, ईमानदार परन्तु मुख्यतया असफल वकील की भूमिका निभाई है जो एक केस के माध्यम से व्यवस्था से टकराता है।


 


फिल्म में अनेक अविस्मरणीय संवाद हैं। एक में, वह अपने ढाई किलो के हाथ की बात करते हैं। जब ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है तो वह उठ नहीं पाता, ऊपर उठ जाता है ।


 


फिल्म में एक अन्य चिंताभरा संवाद गूंजता है तारीख पर तारीख या एक ऐसा न्यायिक प्रणाली जिसमें एक केस की सुनवाई के लिए न्यायालय में तारीख पर तारीख पर तारीख पड़ती हैं लेकिन न्याय नहीं मिलता।


 


भारत में 30 मिलियन से ज्यादा केस लम्बित हैं, जिनमें 80 प्रतिशत निचली अदालतों में है। उच्च न्यायालयों में चार मिलियन और सर्वोच्च न्यायलय में 60,000 से ज्यादा केस लम्बित हैं। नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम कहता है कि वर्तमान में 19000 न्यायाधीश हैं-जिनमें से 18,000 न्यायाधीश ट्रायल कोर्ट में हैं-और कभी-कभी एक सिविल केस में 15 वर्ष लग जाते हैं। पिछले 30 वर्षों में, न्यायाधीशों की संख्या 6 गुना बढ़ी है लेकिन केसों की संख्या 12 गुना बढ़ी है!


 


आगामी 30 वर्षों में भारत को 75,000 न्यायाधीशों की जरुरत होगी क्योंकि तब केसों की संख्या लगभग 150 मिलियन होगी। वास्तव में कोई नहीं जानता कि इतने लोग कहां से आएंगे और यह भी कोई नहीं जानता कि किसके पास इसके समाधान की योजना।


 


लालकृष्ण आडवाणी


नई दिल्ली


29 मार्च, 2014


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Published on March 29, 2014 19:30
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