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कोलाबा कांस्पीरेसी



जीत सिंह के इस सातवें
कारनामे को जो तारीफ और मकबूलियत हासिल हुई है, वो बेमिसाल है और उससे आप का लेखक गदगद
है कि उसकी मेहनत रंग लायी । उपन्यास ने पाठकों को किस कदर प्रभावित किया, आत्मसात
किया, उसकी ये भी मिसाल है कि 406 पृष्ठों में फैला कथानक पढ़ कर भी उसको ऐसा लगा कि
अभी एक खंड और होना चाहिए था । बहरहाल अपने गुणग्राहक पाठकों की गुणग्राहकता के आगे
मै नतमस्तक हूं और भविष्य में और भी अच्छा लिखने के लिए दृढ प्रतिज्ञ हूं ।



यहां इस पर खास
बात का जिक्र भी अनुचित नहीं होगा कि उपन्यास की का...

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Published on May 30, 2014 20:31
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