“बात यह है कि अलीगढ़ यूनिवर्सिटी जहाँ मट्टी, मक्खी, मटरी के बिस्कुट, मक्खन और मौलवी के लिए प्रसिद्ध है, वहीं भाँत-भाँत के नाम रखने के लिए भी प्रसिद्ध है। एक साहब थे क़ा। एक साहब थे उस्ताद छुवारा (जो किसी निकाह में लुटाए नहीं गए शायद !) एक थे इक़बाल हेडेक। एक थे इक़बाल हरामी। एक थे इक़बाल एट्टी और एक थे इक़बाल ख़ाली। ख़ाली इसलिए कि बाक़ी तमाम इक़बालों के साथ कुछ-न-कुछ लगा हुआ था। अगर इनके नाम के साथ कुछ न जोड़ा जाता तो यह बुरा मानते। इसलिए यह इक़बाल ख़ाली कहे जाने लगे। भूगोल के एक टीचर का नाम 'बहरुल काहिल' रख दिया गया। यह टीचर कोई काम तेज़ी से नहीं कर सकते थे। इसलिए इन्हें काहिली का सागर कहा गया (वैसे अरबी भाषा में पैसिफ़िक सागर का नाम बहरुल काहिल ही !) भूगोल ही के एक और टीचर सिगार हुसैन ज़ैदी कहे गए कि उन्हें एक जमाने में सिगार का शौक़ चर्राया था।...बलभद्रनारायण शुक्ला इसी सिलसिले की एक कड़ी थे। यह टोपी कहे जाने लगे।”
―
Topi Shukla
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