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E.T.
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May 18, 2016 07:28AM

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These are all in my TBR. But this month we are doing a BR on Karmbhoomi in other reader's paradise. I can try it on next month if that's not a issue.

1. Gora
2. Samarsiddha
3. काशी का अस्सी
4. Bakar Puran
5. Jannat Aur Anya Kahaniyan:
Gorab wrote: "निम्न हिंदी किताबें पढना चाहता हूँ. अगर आप भी इनमें से कोई पढना चाहें तो हम साथ में पढ़कर उसके बारे में चर्चा कर सकते हैं.
1. Gora
2. Samarsiddha
3. [book:काशी का अस्स..."
समरसिद्धा,काशी का अस्सी पढ़ी हुई है। गोरा, बकर पुराण पढने का इरादा है।
1. Gora
2. Samarsiddha
3. [book:काशी का अस्स..."
समरसिद्धा,काशी का अस्सी पढ़ी हुई है। गोरा, बकर पुराण पढने का इरादा है।
समरसिद्धा मुझे पसंद आई थी। इसकी भाषा बहुत अलंकृत है, जिसे पढ़ने में आनंद आता है। हाँ, उपन्यास का अंत मुझे आदर्शवादी लगा न कि यथार्थवादी।
Gorab wrote: "अलंकृत भाषा?
तब तो कुछ और हिंदी किताबों के बाद ही पढ़ पाउँगा। मैंने भी काफी तारीफ सुनी थी इसकी।"
नहीं, पढ़िये।अलंकृत मतलब कठिन नहीं खूबसूरत है। दूसरा इस उपन्यास की पृष्ठभूमि काफी पुराने वक्त की है तो भाषा हिन्दुस्तानी की जगह संस्कृत वाली हिंदी है, जो कि कथानक के साथ पूर्ण न्याय करती है। शब्द कठिन नहीं हैं, आसानी से समझ आ जायेंगे।
तब तो कुछ और हिंदी किताबों के बाद ही पढ़ पाउँगा। मैंने भी काफी तारीफ सुनी थी इसकी।"
नहीं, पढ़िये।अलंकृत मतलब कठिन नहीं खूबसूरत है। दूसरा इस उपन्यास की पृष्ठभूमि काफी पुराने वक्त की है तो भाषा हिन्दुस्तानी की जगह संस्कृत वाली हिंदी है, जो कि कथानक के साथ पूर्ण न्याय करती है। शब्द कठिन नहीं हैं, आसानी से समझ आ जायेंगे।

Arvind wrote: "अलंकृत भाषा से मुझे ध्यान आया, क्या किसी ने आचार्य चतुरसेन को पढ़ा है ? मुझे भाषा बड़ी कठिन लगी और इस कारण छोड़ना पड़ा ।"
आचार्य चतुरसेन को मैंने अभी तक पढ़ा तो नहीं है लेकिन पढना है। उनकी वयं रक्षामः और वैशाली की नगर वधु पढने का काफी मन है। उनकी भाषा कठिन हो सकती है क्योंकि उसमे संस्कृत का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है। हिंदी का जो रूप हम देखते हैं उसे हिदुस्तानी कहते थे जिसमे हिंदी,उर्दू का मिश्रण इस्तेमाल होता है। इसके लिये मैंने ये पुस्तक खरीदी है:
जिन शब्दों का अर्थ सन्दर्भ से नहीं पता कर पाता हूँ उसे इसमें देख लेता हूँ। अरविन्द जी ने हिंदी भाषा के लिये इस पुस्तक को बनाकर काफी अच्छा काम किया है। जैसे अंग्रेजी में ऑक्सफ़ोर्ड या मेरियम-वेबस्टर ने किया है।
आचार्य चतुरसेन को मैंने अभी तक पढ़ा तो नहीं है लेकिन पढना है। उनकी वयं रक्षामः और वैशाली की नगर वधु पढने का काफी मन है। उनकी भाषा कठिन हो सकती है क्योंकि उसमे संस्कृत का प्रभाव ज्यादा देखने को मिलता है। हिंदी का जो रूप हम देखते हैं उसे हिदुस्तानी कहते थे जिसमे हिंदी,उर्दू का मिश्रण इस्तेमाल होता है। इसके लिये मैंने ये पुस्तक खरीदी है:

जिन शब्दों का अर्थ सन्दर्भ से नहीं पता कर पाता हूँ उसे इसमें देख लेता हूँ। अरविन्द जी ने हिंदी भाषा के लिये इस पुस्तक को बनाकर काफी अच्छा काम किया है। जैसे अंग्रेजी में ऑक्सफ़ोर्ड या मेरियम-वेबस्टर ने किया है।
क्योंकि यहाँ काफी लोग साथ में पढने के इच्छुक है तो क्यों न सभी दो दो विकल्प दें और फिर पोल बनाकर ये निर्णय लिया जाये कि क्या पढ़ा जाये??

Arvind wrote: "@Vikas, i think i will sit patiently soon to read Acharya Chatursen's "Vaishali ki Nagarvadhu" with a dictionary, probably when wife goes to her 'maayke'."
I keep mine near my bed 'cause i'm reading premchand. So i have one which is urdu to hindi and another this one. Both are useful. Plus urdu one helps while reading ghazals by the poets like Daag, basheer badr etc.
I keep mine near my bed 'cause i'm reading premchand. So i have one which is urdu to hindi and another this one. Both are useful. Plus urdu one helps while reading ghazals by the poets like Daag, basheer badr etc.

Arvind wrote: "I have read "Basheer Badr Samagra" thrice. Did u notice that the movie "Dedh Ishqiya" paid a silent tribute to him ?"Didn't watched the movie. I seldom watch movies now. But he's good and one of the best poets that we have.

LOL! Now with summer vacations gone, you still have hopes of wife going to maayke? :P
Gorab wrote: "Basheer Badr Samagra! Naam hi upar se gaya!"
बशीर बद्र शायर हैं और समग्र मतलब कम्पलीट कलेक्शन ऑफ़ हिज वर्क्स। इसे रचनावली के नाम से भी छापते है।
बशीर बद्र शायर हैं और समग्र मतलब कम्पलीट कलेक्शन ऑफ़ हिज वर्क्स। इसे रचनावली के नाम से भी छापते है।

LOL! Now with summer vaca..."
She is programmed that way, dates have been announced too :)
Wrt Basheer Badra, the name of the book is "Culture Yaksaa", ye naam mere bhi sar ke upar se gaya tha so i wrote "samagra" (complete) :)
विकास wrote: "Gorab wrote: "अलंकृत भाषा?
तब तो कुछ और हिंदी किताबों के बाद ही पढ़ पाउँगा। मैंने भी काफी तारीफ सुनी थी इसकी।"
नहीं, पढ़िये।अलंकृत मतलब कठिन नहीं खूबसूरत है। दूसरा इस उपन्यास की पृष्ठभूमि काफी पुराने..."
मज़ेदार बात है विकास कि परसों ही सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की 'समरसिद्धा' पर राय मिली. पिछले महीने रायपुर में उनसे मुलाकात हुई थी और मैंने उनकी राय मांगी थी. मज़ेदार इसलिए कह रहा हूँ, कि उनकी शिकायत है कि उर्दू शब्दों का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल हुआ है, और उनका कहना पूरी तरह ठीक भी है -
'समरसिद्धा' के प्रति मेरी राय:
>
> ये मात्र संयोग ही है कि नौजवानी की उम्र के बाद से मैंने कभी कोई एतिहासिक या पौराणिक उपन्यास नहीं पढ़ा। 'समरसिद्धा' ने ऐसा बांधा कि जब तक पढ़ न लिया कुछ और न पढ़ा। उपन्यास को पढ़ना शुरू करते ही सहज ही आभास होता है कि लेखक ज्ञानी है, विषयवस्तु पर उसका अनुसंधान समुचित है और भाषा पर उसकी पकड़ मजबूत है। विशुद्ध हिंदी के प्रयोग में सूझबूझ की स्पष्ट झलक है, लेखक ने उसे कलिष्ट और संस्कृतनिष्ट होने से बचाया है। इसी कारणवश एक बात खलती है, पाठक को झटका देती है:
> विशुद्ध हिंदी के कथ्य में उर्दू शब्दों की भरमार है। आठवीं शताब्दी के समय के उपन्यास में 'बावजूद, हरारत, जुमले, लतीफ़ा, पसंद-नापसंद, फ़िलहाल, औसत मौक़ा, सुपुर्द, बेहतर, शामें-रंगीन, अक्सर, घमंड, आदत, पछतावा, कोशिश' इत्यादि जैसे शब्दों का क्या प्रयोजन! ज़रूर विद्वान लेखक से अनजाने में ऐसा हुआ।
> जमा:
> # हाथी का वज़न TON में 8वीं सदी में !
> # सीटों (SEATS)!
> # आज के शे'र ' इबतदायेइश्क़ है रोता है क्या, आगे आगे देखिए होता है क्या' की दूसरी लाइन 8वीं सदी के कथ्य में!
>
> ~सुरेन्द्र मोहन पाठक
>
> Sent from my iPhone
तब तो कुछ और हिंदी किताबों के बाद ही पढ़ पाउँगा। मैंने भी काफी तारीफ सुनी थी इसकी।"
नहीं, पढ़िये।अलंकृत मतलब कठिन नहीं खूबसूरत है। दूसरा इस उपन्यास की पृष्ठभूमि काफी पुराने..."
मज़ेदार बात है विकास कि परसों ही सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की 'समरसिद्धा' पर राय मिली. पिछले महीने रायपुर में उनसे मुलाकात हुई थी और मैंने उनकी राय मांगी थी. मज़ेदार इसलिए कह रहा हूँ, कि उनकी शिकायत है कि उर्दू शब्दों का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल हुआ है, और उनका कहना पूरी तरह ठीक भी है -
'समरसिद्धा' के प्रति मेरी राय:
>
> ये मात्र संयोग ही है कि नौजवानी की उम्र के बाद से मैंने कभी कोई एतिहासिक या पौराणिक उपन्यास नहीं पढ़ा। 'समरसिद्धा' ने ऐसा बांधा कि जब तक पढ़ न लिया कुछ और न पढ़ा। उपन्यास को पढ़ना शुरू करते ही सहज ही आभास होता है कि लेखक ज्ञानी है, विषयवस्तु पर उसका अनुसंधान समुचित है और भाषा पर उसकी पकड़ मजबूत है। विशुद्ध हिंदी के प्रयोग में सूझबूझ की स्पष्ट झलक है, लेखक ने उसे कलिष्ट और संस्कृतनिष्ट होने से बचाया है। इसी कारणवश एक बात खलती है, पाठक को झटका देती है:
> विशुद्ध हिंदी के कथ्य में उर्दू शब्दों की भरमार है। आठवीं शताब्दी के समय के उपन्यास में 'बावजूद, हरारत, जुमले, लतीफ़ा, पसंद-नापसंद, फ़िलहाल, औसत मौक़ा, सुपुर्द, बेहतर, शामें-रंगीन, अक्सर, घमंड, आदत, पछतावा, कोशिश' इत्यादि जैसे शब्दों का क्या प्रयोजन! ज़रूर विद्वान लेखक से अनजाने में ऐसा हुआ।
> जमा:
> # हाथी का वज़न TON में 8वीं सदी में !
> # सीटों (SEATS)!
> # आज के शे'र ' इबतदायेइश्क़ है रोता है क्या, आगे आगे देखिए होता है क्या' की दूसरी लाइन 8वीं सदी के कथ्य में!
>
> ~सुरेन्द्र मोहन पाठक
>
> Sent from my iPhone
Arvind wrote: "अलंकृत भाषा से मुझे ध्यान आया, क्या किसी ने आचार्य चतुरसेन को पढ़ा है ? मुझे भाषा बड़ी कठिन लगी और इस कारण छोड़ना पड़ा ।"
मैंने पढ़ा है आचार्य चतुरसेन जी को. हाँ उनकी भाषा कठिन है, फिर भी आनंद देती है. उनकी शैली बहुत खूब है. 'वैशाली की नगरवधू' तो मन मोह लेती है.
मगर समरसिद्धा की भाषा मैंने बहुत अलग रखी है. यदि आप नियमित हिंदी पढ़ते हैं तो आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी.
मैंने पढ़ा है आचार्य चतुरसेन जी को. हाँ उनकी भाषा कठिन है, फिर भी आनंद देती है. उनकी शैली बहुत खूब है. 'वैशाली की नगरवधू' तो मन मोह लेती है.
मगर समरसिद्धा की भाषा मैंने बहुत अलग रखी है. यदि आप नियमित हिंदी पढ़ते हैं तो आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी.
Sandeep wrote: "विकास wrote: "Gorab wrote: "अलंकृत भाषा?
तब तो कुछ और हिंदी किताबों के बाद ही पढ़ पाउँगा। मैंने भी काफी तारीफ सुनी थी इसकी।"
नहीं, पढ़िये।अलंकृत मतलब कठिन नहीं खूबसूरत है। दूसरा इस उपन्यास की पृष्ठभू..."वाह!!! जी उनकी नज़र से ये बचना मुश्किल था। क्योंकि पाठक साहब अपने अंदाजे बयान के वजह से ही जाने जाते हैं। मुंबई का जीत सिंह और दिल्ली के सुधीर कोहली की जबान में फर्क वो बखूबी करते हैं। इससे उनके किरदार यथार्थ के ज्यादा नज़दीक लगते हैं तो उनको इस बात पर गौर करना ही था। एक आम पाठक को शायद पता भी न लगे क्योंकि हम सब अब हिन्दुस्तानी के आदि हो चुके हैं जो कि हिंदी और उर्दू ज़बान का मिश्रण है।
तब तो कुछ और हिंदी किताबों के बाद ही पढ़ पाउँगा। मैंने भी काफी तारीफ सुनी थी इसकी।"
नहीं, पढ़िये।अलंकृत मतलब कठिन नहीं खूबसूरत है। दूसरा इस उपन्यास की पृष्ठभू..."वाह!!! जी उनकी नज़र से ये बचना मुश्किल था। क्योंकि पाठक साहब अपने अंदाजे बयान के वजह से ही जाने जाते हैं। मुंबई का जीत सिंह और दिल्ली के सुधीर कोहली की जबान में फर्क वो बखूबी करते हैं। इससे उनके किरदार यथार्थ के ज्यादा नज़दीक लगते हैं तो उनको इस बात पर गौर करना ही था। एक आम पाठक को शायद पता भी न लगे क्योंकि हम सब अब हिन्दुस्तानी के आदि हो चुके हैं जो कि हिंदी और उर्दू ज़बान का मिश्रण है।
बिल्कुल विकास. और यहीं अनुभव फ़र्क लाता है. आपसे इसलिए भी शेयर किया क्योंकि आप तो उनके मुरीद हैं.
वैसे मेरा जवाब भी पढ़ लें -
बहुत बहुत धन्यवाद पाठक जी. उपन्यास आपको पसंद आया यह मेरे लिए सबसे ख़ुशी की बात है. उर्दू के शब्दों को कम करने की कोशिश की थी, मगर फिर लगा कि आज का पाठक कहीं विशुद्ध हिंदी से बिदक न जाए. यह अनुभवहीनता का नतीज़ा है. बेहद शुक्रिया इस बात का ध्यान दिलाने के लिए. आगे से ध्यान रहेगा.
पता नहीं कि 'पाठक' शब्द का उपयोग आपने 'pun' के रूप में किया है या नहीं, मगर झटके के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
उम्मीद है आगे भी आपके बहुमूल्य सुझाव मिलते रहेंगे.
सादर
वैसे मेरा जवाब भी पढ़ लें -
बहुत बहुत धन्यवाद पाठक जी. उपन्यास आपको पसंद आया यह मेरे लिए सबसे ख़ुशी की बात है. उर्दू के शब्दों को कम करने की कोशिश की थी, मगर फिर लगा कि आज का पाठक कहीं विशुद्ध हिंदी से बिदक न जाए. यह अनुभवहीनता का नतीज़ा है. बेहद शुक्रिया इस बात का ध्यान दिलाने के लिए. आगे से ध्यान रहेगा.
पता नहीं कि 'पाठक' शब्द का उपयोग आपने 'pun' के रूप में किया है या नहीं, मगर झटके के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
उम्मीद है आगे भी आपके बहुमूल्य सुझाव मिलते रहेंगे.
सादर
Sandeep wrote: "बिल्कुल विकास. और यहीं अनुभव फ़र्क लाता है. आपसे इसलिए भी शेयर किया क्योंकि आप तो उनके मुरीद हैं.
वैसे मेरा जवाब भी पढ़ लें -
बहुत बहुत धन्यवाद पाठक जी. उपन्यास आपको पसंद आया यह मेरे लिए सबसे ख़ुशी..."
बढ़िया. मैं भी कोशिश करता हूँ कि उनके उपन्यास पढने के बाद उस विषय में अपने राय उन्हें भेजूँ. और ज्यादातर बार उनका जवाब भी आ जाता है. वैसे जितना मज़ा उनका उपन्यास पढने में आता है उतना ही मज़ा उनका लेखकीय पढने में भी आ जाता है जो कि उनके हर उपन्यास के शुरुआत में होता है. अगर हो सके तो उसे जरूर पढ़िएगा. उनके चुनिन्दा लेखकीय उनकी साईट पर डाउनलोड के लिये उपलब्ध हैं. ये लिंक है:
http://www.smpathak.com/resource.php
वैसे मेरा जवाब भी पढ़ लें -
बहुत बहुत धन्यवाद पाठक जी. उपन्यास आपको पसंद आया यह मेरे लिए सबसे ख़ुशी..."
बढ़िया. मैं भी कोशिश करता हूँ कि उनके उपन्यास पढने के बाद उस विषय में अपने राय उन्हें भेजूँ. और ज्यादातर बार उनका जवाब भी आ जाता है. वैसे जितना मज़ा उनका उपन्यास पढने में आता है उतना ही मज़ा उनका लेखकीय पढने में भी आ जाता है जो कि उनके हर उपन्यास के शुरुआत में होता है. अगर हो सके तो उसे जरूर पढ़िएगा. उनके चुनिन्दा लेखकीय उनकी साईट पर डाउनलोड के लिये उपलब्ध हैं. ये लिंक है:
http://www.smpathak.com/resource.php
हाँ पढ़े हैं उनके लेखकीय। अभी जीत सिंह सीरीज़ का लेटेस्ट 'मुझसे बुरा कोई नहीं' की कॉपी उन्होंने दी थी, वही पढ़ रहा हूँ। पूरा पढ़ कर कमेंट करूँगा।
Avnish wrote: "kasi ka assi kitaab par hi based movie bani thi na with sunny deol playing the central character"
जी उसी पर बनी थी. लेकिन फिल्म कैसी है ये नहीं पता. किताब बेहतरीन है.
जी उसी पर बनी थी. लेकिन फिल्म कैसी है ये नहीं पता. किताब बेहतरीन है.
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