“तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके, पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके। ह”
― रश्मिरथी
― रश्मिरथी
“पर, जाने क्यों, नियम एक अद्भुत जग में चलता है, भोगी सुख भोगता, तपस्वी और अधिक जलता है। हरियाली है जहाँ, जलद भी उसी खण्ड के वासी, मरु की भूमि मगर, रह जाती है प्यासी की प्यासी।”
― रश्मिरथी
― रश्मिरथी
“तुने जो-जो किया, उसे मैं भी दिखला सकता हूँ, चाहे तो कुछ नयी कलाएँ भी सिखला सकता हूँ। आ”
― रश्मिरथी
― रश्मिरथी
“कसक भोगता हुआ विप्र निश्चल कैसे रह सकता है? इस प्रकार की चुभन, वेदना क्षत्रिय ही सह सकता है।”
― रश्मिरथी
― रश्मिरथी
“ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।”
― रश्मिरथी
― रश्मिरथी
Vikram’s 2024 Year in Books
Take a look at Vikram’s Year in Books, including some fun facts about their reading.
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