“तात! तपस्यामें सभीका अधिकार है। जितेन्द्रिय और मनोनिग्रहसम्पन्न हीन वर्णके लिये भी तपका विधान है; क्योंकि तप पुरुषको स्वर्गकी राहपर लानेवाला है ।। प्रजापतिः प्रजाः पूर्वमसृजत् तपसा विभुः । क्वचित् क्वचिद् ब्रह्मपरो व्रतान्यास्थाय पार्थिव ।। १५ ।। भूपाल! पूर्वकालमें शक्तिशाली प्रजापतिने तपमें स्थित होकर और कभी-कभी ब्रह्मपरायण व्रतमें स्थित होकर संसारकी रचना की थी ।। १५ ।। आदित्या वसवो रुद्रास्तथैवाग्न्यश्विमारुताः । विश्वेदेवास्तथा साध्याः पितरोऽथ मरुद्गणाः ।। १६ ।। यक्षराक्षसगन्धर्वाः सिद्धाश्चान्ये दिवौकसः । संसिद्धास्तपसा तात ये चान्ये स्वर्गवासिनः ।। १७ ।। तात! आदित्य, वसु, रुद्र, अग्नि, अश्विनीकुमार, वायु, विश्वेदेव, साध्य, पितर, मरुद्गण, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, सिद्ध तथा अन्य जो स्वर्गवासी देवता हैं, वे सब-के-सब तपस्यासे ही सिद्धिको प्राप्त हुए हैं ।। ये चादौ ब्राह्मणाः सृष्टा ब्रह्मणा तपसा पुरा । ते भावयन्तः पृथिवीं विचरन्ति दिवं तथा ।। १८ ।।”
― Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-5), Code 0036, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
― Mahabharat Hindi Anuwad Sahit (Bhag-5), Code 0036, Sanskrit Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
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