“I leave, and the leaving is so exhilarating I know I can never go back. But then what? Do I just keep leaving places, and leaving them, and leaving them, tramping a perpetual journey?”
― Paper Towns
― Paper Towns
“अगर आपका हृदय तैयार है तो फिर आपको गुरु से बार-बार मिलने की ज़रूरत ही क्या है? गुरु बहुत दूर से कार्य कर सकता है। यह सही है कि वह वाकई कुछ नहीं करता लेकिन कार्य उसी के ज़रिये होता है। और उस कार्य के होने के लिए आपको गुरु की भौतिक मौजूदगी में होना ज़रूरी नहीं है। यह एक ऐसी सीमा है जिसे हम अपने मन में बना लेते हैं। गुरु को आपका नाम जानने की ज़रूरत नहीं है। वह आपको चेहरे से पहचाने, यह भी ज़रूरी नहीं है। इस तरह का सचेतन ज्ञान उसके कार्यों के लिए पूरी तरह अनावश्यक है। गुरु को इस बारे में भी जानने की ज़रूरत नहीं है कि वह आप पर कार्य कर रहा है, क्योंकि आध्यात्मिक कार्य गुरु के हृदय से स्वतः होते हैं। आपके हृदय ने पुकार लगायी है तो गुरु के रूप में प्रकृति उत्तर देती है। इस प्रकार, गुरु-शिष्य का सम्बन्ध आन्तरिक होता है जो गुप्त रूप से हृदय में फलता है।”
― The Heartfulness Way (Hindi)
― The Heartfulness Way (Hindi)
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