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गुलज़ार
“कभी कभी बाज़ार में यूँ भी हो जाता है क़ीमत ठीक थी, जेब में इतने दाम नहीं थे ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था”
गुलज़ार, रात पश्मीने की

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