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Bibhutibhushan Bandyopadhyay
“रास्ते का कभी अन्त नहीं होता, वह आगे ही चलता जाता है। उसकी शाश्वत वीणा की रागिणी को केवल अनन्त काल और अनन्त आकाश सुनते हैं। उसी रास्ते की विचित्र आनन्द-यात्रा का अदृश्य तिलक तेरे माथे पर लगाकर ही तो हमने तेरा घर छुड़ा दिया। चलो आगे चलें।”
Bibhutibhushan Bandyopadhyay, पथेर पाचांली

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