Pather Panchali Quotes
Pather Panchali: Song of the Road
by
Bibhutibhushan Bandyopadhyay7,276 ratings, 4.61 average rating, 493 reviews
Pather Panchali Quotes
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“জীবন বড় মধুময় শুধু এইজন্য যে, এই মাধুর্যের অনেকটাই স্বপ্ন ও কল্পনা দিয়া গড়া। হোক না স্বপ্ন মিথ্যা, কল্পনা বাস্তবতার লেশশূন্য; নাই বা থাকিল সবসময় তাহাদের পিছনে স্বার্থকতা; তাহারাই যে জীবনের শ্রেষ্ঠ সম্পদ, তাহারা আসুক, জীবনে অক্ষয় হোক তাহাদের আসন; তুচ্ছ স্বার্থকতা, তুচ্ছ লাভ।”
― Pather Panchali: Song of the Road
― Pather Panchali: Song of the Road
“মা ছেলেকে স্নেহ দিয়া মানুষ করিয়া তোলে, যুগে যুগে মায়ের গৌরবগাথা তাই সকল জনমনের বার্তায় ব্যক্ত। কিন্তু শিশু যা মাকে দেয়, তাই কি কম? সে নিঃস্ব আসে বটে, কিন্তু তার মন-কাড়িয়া-লওয়া হাসি, শৈশবতারল্য, চাঁদ ছানিয়াগড়া মুখ, আধ আধ আবোল-তাবোল বকুনির দাম কে দেয়? ওই তার ঐশ্বর্য, ওরই বদলে সে সেবা নেয়, রিক্ত হাতে ভিক্ষুকের মতো নেয় না।"
বল্লালী-বালাই (পথের পাঁচালী)”
― Pather Panchali: Song of the Road
বল্লালী-বালাই (পথের পাঁচালী)”
― Pather Panchali: Song of the Road
“করুনা ভালোবাসার সবচেয়ে মূল্যবান মশলা, তার গাঁথুনি বড় পাকা হয়।”
― PATHER PACHALI
― PATHER PACHALI
“বুড়ি সে কথা হজম করিয়া লইল। এরূপ অনেক কথাই তাহাকে দিনের মধ্যে দশবার হজম করিতে হয়। সেকালের ছড়াটা সে এখনো ভোলে নাই-
লাথি ঝাঁটা পায়ের তল,
ভাত কাপড়টা বুকের বল-”
― Pather Panchali: Song of the Road
লাথি ঝাঁটা পায়ের তল,
ভাত কাপড়টা বুকের বল-”
― Pather Panchali: Song of the Road
“Niren had not seen her properly before. She had very lovely eyes. He had not before seen such a beautiful expression in any one's eyes, except perhaps those of her brother Opu. They were big and sleepy. They had the same drowsy quality which was hidden in the deep fresh greenness of the mango and bokul trees that lined the paths in the village. The dawn that would quicken them had not yet come; and the heavy sleep that precedes waking still brooded over them. Yes, it was dawn they made him think of; dawn, when sleeping eyes first open, dawn when maidens walk down to the river's edge, and every window gives forth the odour of incense; dawn, that cool ambrosial hour when the waters of awakening flow cool and fresh through house after house.”
― Pather Panchali: Song of the Road
― Pather Panchali: Song of the Road
“रोशनी और अँधेरे की अपरूप माया से जंगल परियों के सोए हुए देश की भाँति रहस्य का घूँघट ओढ़ लेता है। कहीं से हवा का सनसनाता हुआ झोंका अमलतास के डाल को हिला कर और कुंदरू की झाड़ियों की फुनगियों को लजाकर चला जाता है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“বইখানা খুলিতেই একদল কাগজ-কাটা পোকা নিঃশব্দে বিবর্ণ মার্বেল কাগজের নিচে হইতে বাহির হইয়া ঊর্ধ্বশ্বাসে যেদিকে দুই চোখ যায় দৌড় দিল। অপু বইখানা নাকের কাছে লইয়া গিয়া ঘ্রাণ লইল, কেমন পুরোনো গন্ধ! মেটে রঙের পুরু পুরু পাতাগুলোর এই গন্ধটা তাহার বড় ভালো লাগে”
― Pather Panchali : Song of the Road
― Pather Panchali : Song of the Road
“रास्ते का कभी अन्त नहीं होता, वह आगे ही चलता जाता है। उसकी शाश्वत वीणा की रागिणी को केवल अनन्त काल और अनन्त आकाश सुनते हैं। उसी रास्ते की विचित्र आनन्द-यात्रा का अदृश्य तिलक तेरे माथे पर लगाकर ही तो हमने तेरा घर छुड़ा दिया। चलो आगे चलें।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“जिन लोगों के मन में आनन्द का अक्षय भंडार रहता है, जिनके अन्तर्निहित आनन्द का उत्स सकारण और अकारण मन के प्याले से उमड़कर दूसरे को भी संक्रामित कर सकता है, यह देहाती स्त्री भी उन्हीं में से एक थी।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“चिड़िया आज भी दीवार की खपच्ची की डाल पर उसी तरह बैठी होगी। शायद माँ के लगाए हुए नींबू के पौधे में अब नींबू लग रहे होंगे। थोड़ी देर बाद उसके घर-घूरे पर सन्ध्या का अन्धकार छाएगा, पर सन्ध्या हो जाने पर भी कोई दीया नहीं जलाएगा, घूम-घूमकर हर कमरे में दीया नहीं दिखाएगा, कहानियाँ नहीं कहेगा, सुनसान घर-घूरे के आँगन में जो काले बादल की तरह जंगल छा गया होगा, उसमें झींगुर बोलेगा, रात अधिक होने पर पीछे के घने जंगल में गूलर के पेड़ पर खूसट की बोली सुनाई पड़ेगी...कोई भूलकर भी कभी उस तरफ नहीं जाएगा। माँ का लगाया हुआ यह नींबू का पौधा गहरे जंगल में खो जाएगा। कोई उसकी बात नहीं जानेगा। करेमा के फूल लगकर फिर अपने आप झड़ जाएँगे। बेर और शरीफ़ा व्यर्थ में पकेंगे। पीले पंखोंवाली चिड़िया रो-रोकर फिरेगी। जंगल के किनारे वह अपूर्व माया से भरी शामें हमेशा के लिए झूठ-मूठ आती-जाती रहेंगी।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“जली हुई ज़मीन पर के नींबू के फूल की मीठी महक में, संहजन की छाया में फिर वह कब फिरेगा? फिर कब वह उनके मकान के किनारे के शिरीष और सप्तपर्ण के जंगल में चहचहाना सुनेगा? इन दिनों उसकी प्यारी इछामती में वर्षा का पानी आने लगा होगा। पनघट के रास्ते में सेमर के नीचे पानी आ गया होगा। झाड़ियों में नाटा काँटा और जंगली करेमा के फूल लगे होंगे। जंगली अपराजिता के नीले फूलों से जंगल का ऊपरी हिस्सा भर गया होगा।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“मुनि जी जब कभी चिन्ता करते हैं तो ईश्वर की चिन्ता करते हैं, और उन्हें किसी की आस नहीं है। ठलुआ आदमी ताश और पाशे के विषय में सोचता है। धनी धन की चिन्ता करता है और निन्यानवे के फेर में पड़ा रहता है। योगी जगन्नाथ की और फकीर मक्के की चिन्ता करता है। गृहस्थ किसी तरह अपने ठाठ बनाए रखने की बात सोचता है। माँ शिशु की चिन्ता करती है और पशु पेट भरने की फ़िक्र में रहता है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“करुणा प्यार का सबसे मूल्यवान उपकरण है,”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“ऐसा लगा कि बहुत दूर तक बाँस की झाड़ी जैसे दोपहर की धूप में पीनक में झूम रही है। वह शंखचील किसी पेड़ की फुनगी पर रसा-रसाकर बोल रही है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“क्या वहाँ भी रसोईघर के सहन के किनारे जंगल से मिलता हुआ इस तरह का नारियल का पेड़ है? क्या वहाँ वह मछली पकड़ सकेगा, आम बीन सकेगा, डोंगी खे सकेगा, रेल-रेल खेल सकेगा? क्या वहाँ पर कदम्ब तल्ले के साहब घाट की तरह घाट होंगे? क्या वहाँ रानी दीदी होगी? सोनाडांग का मैदान होगा?”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“धूप की जली मिट्टी की ताज़ी खुशबू , यह छाया-भरी दूब, सूर्य के आलोक से उज्ज्वल मैदान, सड़क, पेड़-पालो, चिड़ियाँ, झाड़ियाँ, लटकते हुए फूल और फलों के गुच्छे, केवाँच, जंगली करेमा, नील अपराजिता कितने प्रिय हैं।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“मोहल्ले के एक किनारे लिपे-पुते फूस के दो-तीन कमरे। गौशाला में मोटी-ताज़ी दूधवाली गाय बंधी हुई है, चारे से गोदाम भरा हुआ है, खलिहान में धान भरा हुआ है। मैदान के किनारे मटर की फली के खेत की ताज़ी हरी महक हवा से आंगन में फैलती जाती है। चिड़ियाँ चहचहाती हैं, नीलकंठ, बया, श्यामा। अपू सबेरे उठकर मिट्टी के सकोरे में ताज़ा झागदार गर्म दूध के साथ लाई खाकर पढ़ने के लिए बैठ जाता है। दुर्गा मलेरिया से बीमार नहीं है। सभी जानते-मानते हैं, आकर पालागि करते हैं, गरीब जानकर अवज्ञा नहीं करते।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“जीवन मधुमय इसीलिए तो है कि उसकी मधुरता एक हद तक स्वप्न और कल्पना पर आधारित होती है। स्वप्न भले ही झूठा हो, कल्पना में भले ही वास्तविकता का पुट न हो, भले ही उनके पीछे कोई सार्थकता न हो, पर वे ही जीवन की श्रेष्ठ सम्पदा हैं; वे आते जाएँ और जीवन का उनका सम्बन्ध अक्षय हो!”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“नौटंकी शुरू हुई। दुनिया नहीं है, कोई नहीं है, बस अपू है और नीलमणि हाज़रा का दल है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“उसका पिता छोटी जात वालों का पुरोहित है, इसलिए वह सामाजिक मामलों में बुलाया नहीं जाता ; गाँव के एक किनारे बड़े संकोच के साथ रहता है। हालत भी अच्छी नहीं है। बीनी दुर्गा के हुक्म बड़ी खुशी से बजाने लगी। वह आई तो थी घूमने, पर यों ही एक लाभदायक घटनाक्रम में पड़ गई है, पता नहीं ये लोग इस उत्सव में उसे पूरी तरह शामिल भी करें या न करें, ऐसी ही एक दुविधा उसके उल्लास भरी बातचीत और चाल-ढाल में प्रकाशित हो रही थी।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“लड़के-बाले ईख के नए गुड़ की भेली से दूध और केला मसलकर भात खाते हैं।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“गुड़ियों का बक्स उसका जीवन है। वह कुछ नहीं तो दिन में दस बार उसे संवारती-सजाती है। उसमें गुड़ियाँ, पन्नी, छींट, आलता तथा कितनी कठिनाई से संगृहीत नाटा फल, टिन में मुड़ा हुआ शीशा, चिड़ियों का बसेरा, सब अन्धकारपूर्ण आँगन में जाने कहाँ बिखर गए।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“यह बाग, वासम्ब फूल की झाड़ियाँ, रानी गाय जिस कटहल के नीचे बंधी रहती है और जिससे वह इतना प्रेम रखती है, सूखे पत्तों की यह गन्ध, पनघट वाली पगडंडी, इन सबको हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ जाना पड़ेगा! बैलगाड़ी के अन्दर बैठी हुई छोटी-सी लड़की शायद इसी कारण रो रही है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“बहुत रात बीतने पर गाँव में सन्नाटा छा जाता है तब वह जंगलों में कलियों को चटखाकर फूल खिलाती हुई घूमती हैं, चिड़ियों के बच्चों की देखभाल करती हैं, उजियाली रात के अन्तिम प्रहर में छोटे-छोटे छत्तों को, तरह-तरह के जंगली फूलों को मीठे शहद से भर देती हैं।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“बादामी रंग के परों वाली तेड़ों नामक चिड़ियाँ जंगली करेमा की झाड़ी में उड़कर बैठ जाती है। ताज़ी मिट्टी की गन्ध आती है। बच्चे के संसार में खुशी लबरेज़ छलछला उठती है। वह भला कैसे किसी और को समझाए कि यह आनन्द क्या है। यह आनन्द तो गूंगे का गुड़ है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“और कितनी देर बैठकर वह ‘शुभंकरी की आर्या’ कंठस्थ करे, क्या उसे खेलने को नहीं मिलेगा?”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“जिस पुराने सूखे हुए पोखर के पास जहाँ वन भोजन करने जाता है, किसी को मालूम नहीं है, वही पोखर महाभारत की द्वैपायन झील है। उस सुनसान मैदान के पोखर के बीच में वह घुटना टूटा हुआ वीर अकेला रहता है, कोई न तो उसे देख पाता है और न कोई उसकी तलाश करता है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“प्रथम यौवन में सरयूतट के कुसुमित कानन में मृगया करते समय राजा दशरथ ने मृग के भ्रम में पानी खोजने वाले एक दरिद्र बालक को मार डाला था,”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“एक तरुण वीर की उदारता का फायदा उठाकर किसी मँगते ने उसके अक्षय कवच-कुंडल माँग लेने के लिए हाथ पसार रखा है।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
“शर-शय्या पर लेटे हुए बूढ़े वीर भीष्म के मुमुर्ष आेंठों पर, तीखे बाणों में पृथ्वी फोड़कर अर्जुन ने भोगवती की धारा की सृष्टि की थी।”
― पथेर पाचांली
― पथेर पाचांली
