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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
“मैं जो सदा आगे की ओर ही देखता रहा, अपनी जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुँच कर पीछे देख रहा हूँ कि मैं कहाँ से चलकर किधर-किधर भूल-भटककर, कैसे-कैसे विचित्र अनुभव प्राप्त करके यहाँ तक आया हूँ । और तब दिखता है कि मेरी भटकन में भी एक प्रेरणा थी...।”
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय', शेखर: एक जीवनी - 1

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