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विकास 'अंजान'
विकास 'अंजान' is on page 68 of 116
मैंने मुँह उघाड़ कर कहा,"भई, माफ़ करना,मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। अपनी यही विडम्बना है कि ऋतुराज वसंत भी आये,तो लगता है, उधारी के तगादे वाला आया। उमंगे तो मेरे मन मे भी हैं, पर यार, ठंड बहुत लगती है।" वह जाने के लिए मुड़ा। मैंने कहा,"जाते-जाते एक छोटा-सा काम मेरा करते जाना। सुना है तुम ऊबड़ खाबड़ चेहरों को चिकना कर देते हो;'फेसलिफ्टिंग' के अच्छे कारीगर हो तुम। तो ज़रा यार, मेरी सीढ़ी ठीक करते जाना, उखड़ गई है।"
Sep 03, 2018 06:05PM Add a comment
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विकास 'अंजान'
विकास 'अंजान' is on page 31 of 116
मुफतलाल उठ बैठा। प्रणाम करके चला गया।सोचता जाता था कि ऐसी शान्ति संतों के लिए भी इर्ष्या की वस्तु है। कल आत्महत्या करनी है और आज किस शान्ति से नींद ले रहे हैं। धन्य हो राजकुमार। महापुरुष ऐसे ही होते हैं।

- फेल होना कुँअर अस्तभान का और करना आत्महत्या की तैयारी से (यह हिस्सा रानी नागफनी की कहानी नाम के उपन्यास का अंश है...)
Aug 27, 2018 08:33PM Add a comment
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