Shaambhavi’s Reviews > वैष्णव की फिसलन > Status Update
Shaambhavi
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मुसीबत उस आदमी की है जो विशिष्ट हुए बिना जी नहीं सकता। वह जिस क्षण अपने को विशिष्ट नहीं पाएगा, मृत्यु के निकट पहुँच जाएगा।
— May 04, 2025 10:17AM
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Shaambhavi’s Previous Updates
Shaambhavi
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‘जूते खा गए’—अजब मुहावरा है। जूते तो मारे जाते हैं। वे खाए कैसे जाते हैं? मगर भारतवासी इतना भुखमरा है कि जूते भी खा जाता है।
— May 04, 2025 10:33AM
Shaambhavi
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सोचना एक रोग है। जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं।
— May 04, 2025 08:02AM

