Ankur’s Reviews > प्रतिनिधि कविताएँ: केदारनाथ सिंह > Status Update
Ankur
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ईश्वर और प्याज़
...
"वो बात नहीं-
हिन्दू प्याज़ नहीं खाता
धीरे-से कहती है वह
तो क्या ईश्वर हिन्दू हैं माँ?
हँसते हुए पूछता हूँ मैं
माँ अवाक देखती है मुझे"
...
— Dec 02, 2021 04:37AM
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"वो बात नहीं-
हिन्दू प्याज़ नहीं खाता
धीरे-से कहती है वह
तो क्या ईश्वर हिन्दू हैं माँ?
हँसते हुए पूछता हूँ मैं
माँ अवाक देखती है मुझे"
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Ankur
is on page 94 of 160
तुम आयीं
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।
— Dec 03, 2021 01:53AM
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।

