साये में धूप [Saaye mein Dhoop] Quotes
साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
by
Dushyant Kumar1,051 ratings, 4.44 average rating, 86 reviews
साये में धूप [Saaye mein Dhoop] Quotes
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“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
“मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
“एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।”
― साये में धूप [Saaye Mein Dhoop]
― साये में धूप [Saaye Mein Dhoop]
“आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख
दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख
ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है
रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख
राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख.”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख
दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख
ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है
रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख
राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख.”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
“रह—रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
आगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएँगे
मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
“आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।
ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,
यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।
ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
“एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सी
आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है”
― साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
