राग दरबारी Quotes
राग दरबारी
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राग दरबारी Quotes
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“लेक्चर का मज़ा तो तब है जब सुननेवाले भी समझें कि यह बकवास कर रहा है और बोलनेवाला भी समझे कि मैं बकवास कर रहा हूँ।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“जो खुद कम खाता है, दूसरों को ज़्यादा खिलाता है; खुद कम बोलता है, दूसरों को ज़्यादा बोलने देता है; वही खुद कम बेवकूफ़ बनता है, दूसरे को ज़्यादा बेवकूफ़ बनाता है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“इतना काम है कि सारा काम ठप्प पड़ा है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“पिछली पीढ़ी के मन में अगली पीढ़ी को मूर्ख और अगली के मन में पिछली को जोकर समझने का चलन वहाँ इतना बढ़ गया था कि अगर क्षेत्र साहित्य या कला का न होता, तो अब तक ग्रह युद्ध हो चुका होता।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“खन्ना मास्टर का असली नाम खन्ना था। वैसे ही, जैसे तिलक, पटेल, गाँधी, नेहरू आदि हमारे यहाँ जाति के नहीं, बल्कि व्यक्ति के नाम हैं। इस देश में जाति–प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी–सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने से जाति के पास और कुछ नहीं रह जाता। वह अपने–आप ख़त्म हो जाती है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“अपने देश का कानून बहुत पक्का है, जैसा आदमी वैसी अदालत।’’ व”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“इस देश में जाति–प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी–सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने से जाति के पास और कुछ नहीं रह जाता। वह अपने–आप ख़त्म हो जाती है। ख”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“It was an unnecessarily pretty sunset.”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“यह हमारी गौरवपूर्ण परम्परा है कि असल बात दो–चार घण्टे की बातचीत के बाद अन्त में ही निकलती है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“आज रेलवे ने उसे धोखा दिया था. स्थानीय पैसेंजर ट्रेन को रोज की तरह 2 घंटा लेट समझकर वह घर से चला था, पर वह डेढ़ घंटे लेट होकर चल दी थी.”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“उर्दू कवियों की सबसे बड़ी विशेषता उनका मातृभूमि प्रेम है। इसीलिए मुंबई और कोलकाता में भी वे अपने गांव या कस्बे का नाम अपने नाम के पीछे बांधे रहते हैं और उसे खटखटा नहीं समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कह कर वे कोलकाता मुंबई के कूप मंडूक लोगों को इशारे से समझाते हैं कि सारी दुनिया तुम्हारे शहर तक ही सीमित नहीं है। जहां मुंबई है वहां गोंडा भी है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“हम असली भारतीय विद्यार्थी हैं; हम नहीं जानते कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है, पक्का फ़र्श किसको कहते हैं; सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है। हमने विलायती तालीम तक देसी परम्परा में पायी है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं ! हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है, बन्द कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“उनकी असली उमर बासठ साल थी, काग़ज़ पर उनसठ साल थी और देखने में लगभग पचास साल थी।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“यानी इन्सानियत का प्रयोग शिवपालगंज में उसी तरह चुस्ती और चालाकी का लक्षण माना जाता था जिस तरह राजनीति में नैतिकता का।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“देश में इंजीनियरों और डॉक्टरों की कमी है। कारण यह है कि इस देश के निवासी परम्परा से कवि हेैं।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“वे बताती थीं कि हमें एक अच्छा रेजर-ब्लेड बनाने का नुस्खा भले ही न मालूम हो, पर कूड़े को स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों में बदल देने की तरकीब सारी दुनिया में अकेले हमीं को आती है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकती और ग़रीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें। व”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“கன்னா மாஸ்டரின் இயற்பெயர் கன்னா தான். திலகர், காந்தி, பட்டேல், நேரு போன்ற இனத்தைக் குறிக்கும் பெயர்களெல்லாம், தனி மனிதர்களின் பெயர்களாகிவிடவில்லையா? அப்படித்தான் இதுவும். இந்த நாட்டில் இருந்து சாதியை ஒழிக்க இது ஒரு நல்ல, சரியான உபாயந்தான். சாதியிடமிருந்து அதன் பெயரைப் பிடுங்கி, தனியொரு மனிதனுக்கு அளித்து விடுவதால் சாதியிடம் ஒன்றுமே இல்லாமல் போய்விடும். பிறகு என்ன? அது தானாகவே அழிந்துவிடும்.”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“इस देश में जैसे भुखमरी से किसी की मौत नहीं होती, वैसे ही छूत की बीमारियों से भी कोई नहीं मरता।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“मर्दों की हालत का तो कहना ही क्या; हिन्दुस्तानी छैला, आधा उजला आधा मैला।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“तब तक चारों ओर से ‘चोर ! चोर ! चोर !’ के नारे उठने लगे थे। शोर हाथों–हाथ इतना बढ़ गया कि अंग्रेज़ों ने अगर उसे 1921 में सुन लिया होता तो हिन्दुस्तान छोड़कर वे तभी अपने देश भाग गए होते।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“हमारे इतिहास में–चाहे युद्धकाल रहा हो, या शान्तिकाल– राजमहलों से लेकर खलिहानों तक गुटबन्दी द्वारा ‘मैं’ को ‘तू’ और ‘तू’ को ‘मैं’ बनाने की शानदार परम्परा रही है। अंग्रेज़ी राज में अंग्रेज़ों को बाहर भगाने के झंझट में कुछ दिनों के लिए हम उसे भूल गए थे। आज़ादी मिलने के बाद अपनी और परम्पराओं के साथ इसको भी हमने बढ़ावा दिया है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“जैसे भारतीयों की बुद्धि अंग्रेज़ी की खिड़की से झाँककर संसार का हालचाल देती है, वैसे ही सनीचर की बुद्धि रंगनाथ की खिड़की से झाँकती हुई दिल्ली के हालचाल लेने लगी।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“वैद्यजी के प्रभाव से वह किसी भी राह–चलते आदमी पर कुत्ते की तरह भौंक सकता था, पर वैद्यजी के घर का कोई कुत्ता भी हो, तो उसके सामने वह अपनी दुम हिलाने लगता था। यह दूसरी बात है कि वैद्यजी के घर पर कुत्ता नहीं था और सनीचर के दुम नहीं थी।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“कोअॉपरेटिव यूनियन का ग़बन बड़े ही सीधे–सादे ढंग से हुआ था। सैकड़ों की संख्या में रोज़ होते रहनेवाले ग़बनों की अपेक्षा इसका यही सौन्दर्य था कि यह शुद्ध ग़बन था, इसमें ज़्यादा घुमाव–फिराव न था। न इसमें जाली दस्तखतों की ज़रूरत पड़ी थी, न फ़र्ज़ी हिसाब बनाया गया था, न नकली बिल पर रुपया निकाला गया था। ऐसा ग़बन करने और ऐसे ग़बन को समझने के लिए किसी टेक्नीकल योग्यता की नहीं, केवल इच्छा– शक्ति की ज़रूरत थी।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“हमारी यूनियन में ग़बन नहीं हुआ था, इस कारण लोग हमें सन्देह की दृष्टि से देखते थे। अब तो हम कह सकते हैं कि हम सच्चे आदमी हैं। ग़बन हुआ है और हमने छिपाया नहीं है। जैसा है, वैसा हमने बता दिया है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“पुनर्जन्म के सिद्धान्त की ईजाद दीवानी की अदालतों में हुई है, ताकि वादी और प्रतिवादी इस अफसोस को लेकर न मरें कि उनका मुकदमा अधूरा ही पड़ा रहा। इसके सहारे वे सोचते हुए चैन से मर सकते हैं कि मुक़दमे का फैसला सुनने के लिए अभी अगला जन्म तो पड़ा ही है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“हर बड़े राजनीतिज्ञ की तरह वे राजनीति से नफ़रत करते थे और राजनीतिज्ञों का मज़ाक उड़ाते थे।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
“झिलमिलाते हवाई अड्डों और लकलकाते होटलों की मार्फत जैसा ‘सिम्बालिक माडर्नाइज़ेशन’ इस देश में हो रहा है, उसका असर इस मकान की वास्तुकला में भी उतर आया था और उससे साबित होता था कि दिल्ली से लेकर शिवपालगंज तक काम करनेवाली देसी बुद्धि सब जगह एक–सी है।”
― राग दरबारी
― राग दरबारी
