गोदान [Godaan] Quotes

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गोदान [Godaan] गोदान [Godaan] by Munshi Premchand
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गोदान [Godaan] Quotes Showing 1-30 of 138
“लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे? क”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“What the world calls sorrow is really joy to the poet.”
Premchand, Godan
“बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।”
Munshi Premchand, गोदान
“स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“हम जिनके लिए त्याग करते हैं उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“हमें कोई दोनों जून खाने को दे, तो हम आठों पहर भगवान का जाप ही करते रहें।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है। ध”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“गुड़ घर के अंदर मटकों में बंद रखा हो, तो कितना ही मूसलाधार पानी बरसे, कोई हानि नहीं होती; पर जिस वक़्त वह धूप में सूखने के लिए बाहर फैलाया गया हो, उस वक़्त तो पानी का एक छींटा भी उसका सर्वनाश कर देगा। सिलिया”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं उसकी दौलत का सम्मान है”
Munshi Premchand, गोदान [Godaan]
“जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है ।”
Munshi Premchand, गोदान [Godaan]
“आत्माभिमान को भी कर्त्तव्य के सामने सिर झुकाना पड़ेगा।”
Munshi Premchand, गोदान [Godaan]
“केवल कौशल से धन नहीं मिलता। इसके लिए भी त्याग और तपस्या करनी पड़ती है। शायद इतनी साधना में ईश्वर भी मिल जाय। हमारी सारी आत्मिक और बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों के सामंजस्य का नाम धन है।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“अज्ञान की भाँति ज्ञान भी सरल, निष्कपट और सुनहले स्वप्न देखनेवाला होता है। मानवता में उसका विश्वास इतना दृढ़, इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। यह वह भूल जाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों की निरीहता का जवाब सदैव पंजे और दाँतों से दिया है। वह अपना एक आदर्श-संसार बनाकर उसको आदर्श मानवता से आबाद करता है और उसी में मग्न रहता है। यथार्थता”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“हजार लुटा दिए। उनसे कोई कुछ नहीं कहता। मँगरू ने अपने बाप के”
Premchand, गोदान
“शराब अगर लोगो को पागल कर देती है, तो क्या उसे क्या पानी से कम समझा जाए , जो प्यास बुझाता है , जिलाता है , और शांत करता है ?”
Munshi Premchand, गोदान [Godaan]
“वही नेकी अगर करनेवालों के दिल में रहे, तो नेकी है, बाहर निकल आये तो बदी है।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“झुनिया को अब लल्लू की स्मृति लल्लू से भी कहीं प्रिय थी।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“द्‌वेष का मायाजाल बड़ी-बड़ी मछलियों को ही फँसाता है। छोटी मछलियाँ या तो उसमें फँसती ही नहीं या तुरंत निकल जाती हैं। उनके लिए वह घातक जाल क्रीड़ा की वस्तु है, भय की नहीं।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो, तो हमे उसकी प्रभुता मानने में कोई आपत्ति नहीं।”
Munshi Premchand, गोदान
“भीतर की शांति बाहर सौजन्य बन गई थी।”
Munshi Premchand, गोदान [Godaan]
“वैवाहिक जीवन के प्रभात में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्याहन का प्रखर ताप आता है, क्षण-क्षण पर बगूले उठते हैं, और पृथ्वी काँपने लगती है। लालसा का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी है। उसके बाद विश्राममय सन्ध्या आती है, शीतल और शान्त, जब हम थके हुए पथिकों की भाँति दिन-भर की यात्रा का वृत्तान्त कहते और सुनते हैं तटस्थ भाव से, मानो हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे हैं जहाँ नीचे का जनरूरव हम तक नहीं पहुँचता। धनिया”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“सुख के दिन आयें, तो लड़ लेना; दुख तो साथ रोने ही से कटता है।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का गुप्तदान कर रही थी।”
Munshi Premchand, गोदान [Godaan]
“लूट की कमाई को हराम समज्जने के लिए शरा का पाबंद होने की जरुरत नहीं है”
Munshi Premchand, गोदान
“कविता रच डाले थे”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“सूर्य सिर पर आ गया था। उसके तेज़ से अभिभूत होकर वृक्षों ने अपना पसार समेट लिया था।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“को नाटक का रूप देकर उसे शिष्ट मनोरंजन का साधन बना दिया था। इस अवसर पर उनके यार-दोस्त, हाकिम-हुक्काम सभी निमंत्रित होते थे। और दो-तीन दिन इलाक़े में बड़ी चहल-पहल रहती थी। राय साहब का परिवार बहुत विशाल था। कोई डेढ़ सौ सरदार एक साथ भोजन करते थे। कई चचा थे, दरजनों चचेरे भाई, कई सगे भाई, बीसियों नाते के भाई। एक चचा साहब राधा के अनन्य उपासक थे और बराबर वृन्दाबन में रहते थे। भक्ति-रस के कितने ही कविता रच डाले थे और समय-समय पर उन्हें छपवाकर दोस्तों की भेंट कर देते थे। एक दूसरे चचा थे, जो राम के परमभक्त थे और फ़ारसी-भाषा में रामायण का अनुवाद कर रहे थे। रियासत से सबके वसीके बँधे हुए थे। किसी को कोई काम करने की ज़रूरत न थी।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“से भरे थे। उपले पाथकर आयी थी। बोली–अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी”
Munshi Premchand, गोदान
“एक अनु-पुष्य की भाँति धूप में खिली हुई, दूसरी ग़मले के फूल की भाँति धूप में मुरझाकी और निर्जीव। मालती”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
“सभी मनस्वी प्राणियों में यह भावना छिपी रहती है और प्रकाश पाकर चमक उठती है।”
Munshi Premchand, गोदान [Godan]

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