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Ramchandra Shukla Ramchandra Shukla > Quotes

 

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“अन्त:करण सदा अभावमय रहता है। उसके लिए जो है वह भी नहीं है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“श्रद्धा सामर्थ्य के प्रति होती है और दया असामर्थ्य के प्रति।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“सच्चा कवि वही है जिसे लोक-हृदय के पहचान हो,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“सिन्ध प्रदेश ऐसे सूफियों का अड्डा रहा जो यहाँ वेदान्तियों और साधकों के सत्संग से अपने मार्ग की पुष्टि करते रहे। अतः मुसलमानों का साम्राज्य स्थापित हो जाने पर हिन्दुओं और मुसलमानों के समागम से दोनों के लिए जो एक ‘सामान्य भक्तिमार्ग’ आविर्भूत हुआ वह अद्वैती।”
Ramchandra Shukla, Padmavat
“दुष्कर्म के अनेक अप्रिय फलों में से एक अपमान है,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“दु:ख पहुँचाने की प्रवृत्ति क्रोध की है, घृणा की नहीं।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“लोभ का सबसे प्रशस्त रूप वह है जो रक्षा मात्र की इच्छा का प्रवर्तक होता है,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“स्पर्द्धा संसार में गुणी, प्रतिष्ठित और सुखी लोगों की संख्या में कुछ बढ़ती करना चाहती है और ईर्ष्या में कमी।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“शील को राम-प्रेम का लक्षण”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“धर्म है ब्रह्मा के सत्स्वरूप की व्यक्त प्रवृत्ति,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“क्रोध के वेग में मैं जो कुछ करूँगा उसका परिणाम क्या होगा। यही क्रोध का अंधापन है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“देश से प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर सबसे प्रेम होगा, सबको वह चाहभरी दृष्टि से देखेगा,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“प्रकृति के व्यक्त स्वरूप जगत् में आदि से अन्त तक सत्त्व, रजस् और तमस् तीनों गुण रहेंगे”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“तथ्यों का आभास हमें पशु-पक्षियों के रूप, व्यापार या परिस्थिति में ही मिलता”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आयी है, उसे कविता कहते हैं।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“पूरी मनुष्यता को पहुँचा हुआ हृदय होगा वह अवश्य द्रवीभूत होगा—”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“प्रत्यक्ष रूपों की मार्मिक अनुभूति जिनमें जितनी ही अधिक होती है, वे उतने ही रसानुभूति के उपयुक्त होते हैं।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“मीराबाई हुईं जो ‘लोकलाज खोकर’ अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रेम में मतवाली रहा करती थीं। उन्होंने एक बार कहा था कि ‘कृष्ण को छोड़ और पुरुष है कौन? सारे जीव स्त्रीरूप हैं।”
Ramchandra Shukla, Padmavat
“क्षमा जहाँ से श्रीहत हो जाती है, वहीं से क्रोध के सौन्दर्य का आरम्भ होता है। शिशुपाल की बहुत-सी बुराइयों तक जब श्रीकृष्ण की क्षमा पहुँच चुकी तब जाकर उसका लौकिक लावण्य फीका पड़ने लगा और क्रोध की समीचीनता का सूत्रपात हुआ।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“उत्साह एक यौगिक भाव है जिसमें साहस और आनन्द का मेल रहता है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“सात्त्विक वृत्ति वालों के लिए ग्लानि, राजसी वृत्ति वालों के लिए लज्जा और तामसी वृत्ति वालों के लिए भय।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“चिड़चिड़ाहट स्वभावगत होने”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“श्रद्धा धर्म की पहली सीढ़ी”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“हमारे तुल्य या हमसे बढ़कर न होने पाये। यही इच्छा बढ़कर द्वेष”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“पाषंड है, कोरी वीरता का उपदेश उद्दण्डता है, कोरे ज्ञान का उपदेश आलस्य है और कोरी चतुराई का उपदेश धूर्तता है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“भीषणता और सरसता, कोमलता और कठोरता, कटुता और मधुरता, प्रचण्डता और मृदुता का सामंजस्य ही लोकधर्म का सौन्दर्य है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“काव्य का विषय सदा ‘विशेष’ होता है,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“हमने बहुत सुन्दर देखा और लुभा गये, उसके पीछे दूसरे को उससे भी सुन्दर देखा तो उस पर लुभा गये। जब तक प्रवृत्ति का यह व्यभिचार रहेगा, तब तक हम रूप-लोभी ही माने जायेंगे। जब हमारा लोभ किसी एक ही व्यक्ति पर स्थिर हो जायेगा, हमारी वृत्ति, एकनिष्ठ हो जायेगी, तब हम प्रेमी कहे जाने के अधिकारी होंगे,”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1
“अधिकार सम्बन्धी अभिमान अनौचित्य की सामर्थ्य का अधिक होता है।”
Ramchandra Shukla, Chintamani : Vol. 1

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