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“अन्त:करण सदा अभावमय रहता है। उसके लिए जो है वह भी नहीं है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“श्रद्धा सामर्थ्य के प्रति होती है और दया असामर्थ्य के प्रति।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“सच्चा कवि वही है जिसे लोक-हृदय के पहचान हो,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“सिन्ध प्रदेश ऐसे सूफियों का अड्डा रहा जो यहाँ वेदान्तियों और साधकों के सत्संग से अपने मार्ग की पुष्टि करते रहे। अतः मुसलमानों का साम्राज्य स्थापित हो जाने पर हिन्दुओं और मुसलमानों के समागम से दोनों के लिए जो एक ‘सामान्य भक्तिमार्ग’ आविर्भूत हुआ वह अद्वैती।”
― Padmavat
― Padmavat
“दुष्कर्म के अनेक अप्रिय फलों में से एक अपमान है,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“दु:ख पहुँचाने की प्रवृत्ति क्रोध की है, घृणा की नहीं।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“लोभ का सबसे प्रशस्त रूप वह है जो रक्षा मात्र की इच्छा का प्रवर्तक होता है,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“स्पर्द्धा संसार में गुणी, प्रतिष्ठित और सुखी लोगों की संख्या में कुछ बढ़ती करना चाहती है और ईर्ष्या में कमी।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“शील को राम-प्रेम का लक्षण”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“धर्म है ब्रह्मा के सत्स्वरूप की व्यक्त प्रवृत्ति,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“क्रोध के वेग में मैं जो कुछ करूँगा उसका परिणाम क्या होगा। यही क्रोध का अंधापन है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“देश से प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर सबसे प्रेम होगा, सबको वह चाहभरी दृष्टि से देखेगा,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“प्रकृति के व्यक्त स्वरूप जगत् में आदि से अन्त तक सत्त्व, रजस् और तमस् तीनों गुण रहेंगे”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“तथ्यों का आभास हमें पशु-पक्षियों के रूप, व्यापार या परिस्थिति में ही मिलता”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“हृदय की यह मुक्तावस्था रसदशा कहलाती है। हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आयी है, उसे कविता कहते हैं।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“पूरी मनुष्यता को पहुँचा हुआ हृदय होगा वह अवश्य द्रवीभूत होगा—”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“प्रत्यक्ष रूपों की मार्मिक अनुभूति जिनमें जितनी ही अधिक होती है, वे उतने ही रसानुभूति के उपयुक्त होते हैं।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“मीराबाई हुईं जो ‘लोकलाज खोकर’ अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रेम में मतवाली रहा करती थीं। उन्होंने एक बार कहा था कि ‘कृष्ण को छोड़ और पुरुष है कौन? सारे जीव स्त्रीरूप हैं।”
― Padmavat
― Padmavat
“क्षमा जहाँ से श्रीहत हो जाती है, वहीं से क्रोध के सौन्दर्य का आरम्भ होता है। शिशुपाल की बहुत-सी बुराइयों तक जब श्रीकृष्ण की क्षमा पहुँच चुकी तब जाकर उसका लौकिक लावण्य फीका पड़ने लगा और क्रोध की समीचीनता का सूत्रपात हुआ।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“उत्साह एक यौगिक भाव है जिसमें साहस और आनन्द का मेल रहता है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“सात्त्विक वृत्ति वालों के लिए ग्लानि, राजसी वृत्ति वालों के लिए लज्जा और तामसी वृत्ति वालों के लिए भय।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“चिड़चिड़ाहट स्वभावगत होने”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“श्रद्धा धर्म की पहली सीढ़ी”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“हमारे तुल्य या हमसे बढ़कर न होने पाये। यही इच्छा बढ़कर द्वेष”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“पाषंड है, कोरी वीरता का उपदेश उद्दण्डता है, कोरे ज्ञान का उपदेश आलस्य है और कोरी चतुराई का उपदेश धूर्तता है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“भीषणता और सरसता, कोमलता और कठोरता, कटुता और मधुरता, प्रचण्डता और मृदुता का सामंजस्य ही लोकधर्म का सौन्दर्य है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“काव्य का विषय सदा ‘विशेष’ होता है,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“हमने बहुत सुन्दर देखा और लुभा गये, उसके पीछे दूसरे को उससे भी सुन्दर देखा तो उस पर लुभा गये। जब तक प्रवृत्ति का यह व्यभिचार रहेगा, तब तक हम रूप-लोभी ही माने जायेंगे। जब हमारा लोभ किसी एक ही व्यक्ति पर स्थिर हो जायेगा, हमारी वृत्ति, एकनिष्ठ हो जायेगी, तब हम प्रेमी कहे जाने के अधिकारी होंगे,”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1
“अधिकार सम्बन्धी अभिमान अनौचित्य की सामर्थ्य का अधिक होता है।”
― Chintamani : Vol. 1
― Chintamani : Vol. 1




