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“निर्धारित किसी आसन में बैठकर आँखें बंद करके दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों से दोनों कानों को बंद कर लें, गहरी श्वास लेते हुए कुछ देर के लिए श्वास अंदर रोकें, फिर गले से भ्रमर की तरह आवाज निकालते हुए धीरे-धीरे रेचक करें। जब तक पूरी श्वास बाहर न निकल जाए, तब तक भ्रमर की आवाज करें। मुँह बंद रखते हुए रेचक नाक से करना चाहिए।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“श्वास-प्रश्वास की गति को 36 मात्रा तक (1 मात्रा हाथ को घुटने से चारों ओर घुमाकर एक चुटकी बजा देने में जितना समय लगे, उसे कहते हैं) तथा 36 संख्या तक ले जाने पर ही दीर्घसूक्ष्म होता है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“कुलं शक्तिरिति प्रोक्तमकुलं शिव उच्च्ते। कुलाकुलस्य संबंधः कौलमित्यभिधीयते॥ ‘कुल’ शब्द शक्ति का वाचक है और ‘अकुल’ शब्द से ‘शिव’ का बोध होता है। ‘कुल’ और ‘अकुल’ के संबंध को ‘कौल’ अथवा ‘ब्रह्मज्ञान’ कहते हैं।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“सूर्यभेदी प्राणायाम—इस प्राणायाम में ‘सूर्य स्वर’ अथवा पिंगला नाड़ी से पूरक की क्रिया की जाती है, इसलिए इसे ‘सूर्यभेदी प्राणायाम’ कहते हैं। इस प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए प्राणायाम के लिए निर्धारित किसी भी आसन में बैठकर दाईं नासिका से पूरक करें, फिर अंतःकुंभक करें, जितनी देर कर सकें करें, तत्पश्चात् बाईं नासिका से रेचक करें। 5-10 बार इसका अभ्यास करें।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“अपानवायु निकुंचन से मूलबंध, उड्डियानबंध और जालंधरबंध के अभ्यास से जब कुंडलिनी-शक्ति का उत्थान किया जाता है,”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“जब हमारा बायाँ स्वर चलता है अर्थात् चंद्र नाड़ी चलती है तो चेतना-शक्ति क्रियाशील होती है। मानसिक क्रिया-कलापों का संचालन इसके माध्यम से होता है। मनुष्य में अन्य प्राणियों की तुलना में इस शक्ति का विकास अधिक होता है। इस शक्ति के अधिक क्रियाशील होने पर शारीरिक क्रिया-कलापों के प्रति व्यक्ति की उदासीनता तथा प्राणिक क्षमता भी कम हो जाती है। हठयोग की साधना से दोनों शक्तियों (नाड़ियों) में संतुलन स्थापित होता है, जिसके फलस्वरूप तीसरा स्वर (सुषुम्णा) जाग्रत् होता है, जिसे सुषुम्णा नाड़ी, सरस्वती नाड़ी आदि कहते हैं। हठयोग में आध्यात्मिक शक्ति-सुषुम्णा का जागरण आवश्यक होता है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“साकार उपासकों के लिए शेषनाग रूपी शय्या पर शांत आकार से शयन करते हुए भगवान् विष्णु के सगुण ध्यान को ‘शान्ताकारं भुजंगशयनम्...’ इत्यादि मंत्र के जप तथा आकृति को अंतः चक्षुओं से देखने का अभ्यास करें। धीरे-धीरे अभ्यास से मन की बाह्य वृत्तियाँ एकाग्र होकर अंतर्मुखी हो जाएँगी। इससे मन की चंचलता समाप्त होकर मन शांत एवं स्थिर हो जाएगा। किसी साकार रूप का ध्यान करना ही स्थूल ध्यान है और यह ध्यान ही परिपक्व होकर साधक को ज्योर्तिमय ध्यान और सूक्ष्म ध्यान के योग्य बनाता है। 2.”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“ध्येय विषय पर चित्त की वृत्ति को एकाग्र करके, उससे एकतानता स्थापित करके मन का निर्विषय होना ‘ध्यान’ है। ध्यान की स्थिति में ध्याता, ध्यान और ध्येय रूपी त्रिकुटी के सिवाय और कुछ नहीं रहता है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“1. मूलाधारचक्र—स्थूल शरीर में गुदा में स्थित गानाड्स ग्रंथि में ही सूक्ष्म शरीर में चार दल वाले मूलाधार चक्र की स्थिति है। अग्नि के समान रक्त वर्ण वाला यह बीजाक्षर ‘लं’ से युक्त त्रिकोणाकार है। इसके अधिष्ठाता ब्रह्मा हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र—स्थूल शरीर में लिंग अथवा योनि के मूल में स्थित प्रोस्टेट ग्रंथि में ही सूक्ष्म शरीर में छह दल वाले स्वाधिष्ठान चक्र की स्थिति है। यह सूर्य के प्रकाश की तरह सिंदूर वर्ण तथा बीजाक्षर ‘वं’ से युक्त अंकुर के समान है। इसके अधिष्ठाता विष्णु हैं। 3. मणिपूरक चक्र—स्थूल शरीर में नाभि स्थान में स्थित सुप्रारेनल ग्रंथि में ही सूक्ष्म शरीर में दश दल का नील वर्ण तथा बीजाक्षर ‘रं’ से युक्त मणिपूरक चक्र है। इसके अधिष्ठाता विष्णु हैं। 4. अनाहत चक्र—स्थूल शरीर में हृदय में स्थित थाइमस ग्रंथि में ही सूक्ष्म शरीर में बारह दल युक्त अनाहत चक्र की स्थिति है। यह चक्र स्वर्ण के समान कांति वाला बीजाक्षर ‘मं’ से युक्त एवं वर्तुलाकार है। इसके अधिष्ठाता शिव हैं। 5. विशुद्ध चक्र—स्थूल शरीर में कंठ में स्थित थायरॉइड ग्रंथि में ही सूक्ष्म शरीर में सोलह दल युक्त विशुद्ध चक्र स्थित है। यह धूम्रवर्ण का वर्तुलाकार एवं बीजाक्षर ‘हं’ से युक्त है। इसके अधिष्ठाता रुद्र हैं। 6. आज्ञा चक्र—स्थूल शरीर में दोनों भौहों के मध्य पीनियल ग्रंथि में ही सूक्ष्म शरीर में दो दल युक्त श्वेत वर्ण का आज्ञा चक्र स्थित है। इसका बीजाक्षर ‘ऊँ’ है। इसके अधिष्ठाता महेश्वर हैं। 7. सहस्रार—स्थूल शरीर में मस्तिष्क में पिट्यूटरी ग्रंथि का स्थान सूक्ष्म शरीर में सहस्रार चक्र का है। यह हजार दल युक्त श्वेत वर्ण का है। इसके अधिष्ठाता श्री गुरु माने जाते हैं। उपर्युक्त छह चक्रों पर क्रमशः ध्यान का अभ्यास करने से कुंडलिनी जाग्रत् होकर षट्चक्र भेदन का अभ्यास सिद्ध होने पर सातवें चक्र सहस्रार का अभ्यास स्वतः सिद्ध होता है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“उदान—वह वायु, जो कंठ के ऊपर के अंगों पर नियंत्रण रखती है, ‘उदान’ वायु कहलाती है। यह नेत्र, नासिका, कान, मस्तिष्क आदि की कार्यशीलता व शक्ति को बढ़ाती है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“प्राणायाम का नियमित अभ्यास श्वास की लंबाई व गति को कम करने में सहायक है, जो शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के साथ दीर्घायुष्य में भी सहायक है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“प्राण ही मन और आत्मा के बीच संबंध स्थापित करता है। ‘मन’ स्थूल शरीर का अंग है तो ‘आत्मा’ सूक्ष्म शरीर का। जब प्राण शरीर से अलग हो जाता है, तब सूक्ष्म शरीर (आत्मा) भी शरीर से अलग हो जाती है और जीव की मृत्यु हो जाती है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“मन को शरीर में स्थित अनाहत शब्द से पूरे ‘नाद’ में लीन कर लेना ही ‘नादयोग समाधि’ है। मन जब नाद के अक्षर में लीन होता है, तब उस स्थिति में निःशब्द समाधि रूप परमपद की प्राप्ति हो जाती है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“सूक्ष्म ध्यान—बिंदुमय ब्रह्मकुंडलिनी शक्ति का ध्यान ही ‘सूक्ष्म ध्यान’ कहलाता है। सूक्ष्म ध्यान के संबंध में महर्षि घेरंड ने कहा है कि कुंडलिनी शक्ति आत्मा के साथ संयुक्त होकर नेत्र रंध्रों से निकलती और ऊर्ध्व भाग में स्थित राजमार्ग में विचरण करती है, परंतु वह अपने सूक्ष्मत्त्व और चंचलत्त्व के कारण दिखाई नहीं देती। इसीलिए कुंडलिनी शक्ति का ध्यान शांभवी मुद्रा के साथ करना चाहिए। सूक्ष्म ध्यान के अभ्यास के लिए शरीर में स्थित षट्चक्रों और सहस्रार पर क्रमशः ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। कुंडलिनी शक्ति नाभिकंद के ऊर्ध्व भाग में साढ़े तीन कुंडल मारे हुए सुप्तावस्था में रहती है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“6. प्राण-मुद्रा—अंगुष्ठ, अनामिका तथा कनिष्ठा इन तीनों अंगुलियों के अग्रभागों को मिलाने पर, जो हस्त-मुद्रा बनती है, उसे ‘प्राण-मुद्रा’ कहते हैं। इस अभ्यास में शेष अंगुलियाँ सीधी रहें। लाभ—इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर में प्राण तत्त्व की कमी को दूर किया जा सकता है और शरीर”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“मेरुदंड जहाँ सीधे जाकर पायु (मलद्वार) और उपस्थ (मूत्रद्वार) के बीच में लगता है, वहाँ स्वयंभू लिंग है, जो त्रिकोणचक्र में स्थित है। इसे ‘अग्निचक्र’ भी कहते हैं। इसी अग्निचक्र या त्रिकोण में स्थित स्वयंभू लिंग को तीन वलयों में लपेटकर सर्पिणी की भाँति कुंडलिनी अवस्थित है। यह ब्रह्मद्वार-सुषुम्णा को रोककर सोई हुई है। मुद्रा-बंध के द्वारा नादानुसंधान तथा जागरण में सहायता मिलती है। नादानुसंधान प्राणायाम की सिद्धि का परिणाम है। अपानवायु के संकोच से बंधों की मदद से कुंडलिनी सुषुम्णा-ब्रह्मरंध्र का मार्ग छोड़ देती है। मूलाधार में ब्रह्मचक्र है। इसमें अग्नि के समान दीप्त शक्ति का ध्यान करने से कुंडलिनी जाग्रत् हो जाती है, जिसके बाद स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्ध और आशा-चक्र का भेदन करते हुए वह सहस्रार में पहुँच जाती है। अमनस्कता के धरातल पर जीवात्मा और परमात्मा-शिव और शक्ति की अभेदता है। यही हठयोग-सिद्धि है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“पूरक’ में एक मात्रा श्वास लेकर मूलाधार तक श्वास को ले जाना, ‘कुंभक’ में चार मात्रा श्वास को नाभि स्थल में रोकना तथा ‘रेचक’ में दो मात्रा में नासिका तक श्वास को छोड़ना विहित हैं। प्राणायाम की इस क्रिया को एक निश्चित संख्या में करना ही ‘देशकाल संख्या परिदृष्ट’ कहलाता है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“ज्योतिर्ध्यान—तेजोमय ज्योति रूप ब्रह्म का ध्यान ही ‘ज्योतिर्ध्यान’ कहलाता है। ‘घेरंड संहिता’ में इसका विवेचन ‘मूलाधारे कुंडलिनी भुजंगाकाररूपिणी’ इत्यादि से किया गया है। इसके अनुसार मूलाधार में सर्पाकार सी कुंडलिनी शक्ति रहती है, वहीं दीपकलिका के आकार में जीवात्मा की विद्यमानता है। इसके अतिरिक्त भौहों के मध्य और मन के ऊर्ध्वं भाग में, जो प्रणवात्मक ज्योति है, उसका ध्यान ही तेजोध्यान है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“समाधि’ जब ध्याता, ध्यान से ध्येय विषय में मिलकर लय हो जाता है, तब उस द्वैतभावरहित वृत्ति निरोध की अंतिम अवस्था को ‘समाधि’ कहते हैं। समाधि की अवस्था में ध्येय मात्र की प्रतीति होती है और चित्त का अपना रूप शून्य हो जाता है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“समाधि के भी अनेक प्रकार हैं— 1. ध्यानयोग-समाधि, 2. नादयोग-समाधि, 3. मंत्रयोग-समाधि, 4. लययोग-समाधि, 5. भक्तियोग-समाधि, 6 राजयोग-समाधि।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“अर्थात् अपने विषयों से संबंध न रहने पर इंद्रियों का चित्त के स्वरूप में तदाकार हो जाना ‘प्रत्याहार’ है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“चेतना का जो अंश अत्यंत सूक्ष्म और प्रच्छन्न रूप से साक्षी भाव के रूप में जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति की अवस्था में रहता है, वह तुरीयावस्था में विराट् बन जाता है। ध्यान की स्थिति इसी अवस्था को प्राप्त करने का चरम पुरुषार्थ है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“योग की तीन विधियाँ बताई गई हैं—1. एक तत्त्व की दृढ़ भावना, 2. मन की शांति और 3. प्राणों के स्पंदन का निरोध। इन तीनों में किसी एक की सिद्धि होने पर तीनों सिद्ध हो जाते हैं।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“नाड़ी शुद्धिश्च तत् पश्चात् प्राणायामं च साधयेत्॥ अर्थात् प्रथमतः स्थान, काल, मिताहार और नाड़ी की शुद्धि करें। इसके पश्चात् प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“समाधि दुःख की अत्यंत निवृत्ति और आत्यंतिक सुख की पूर्ण रूप से प्राप्ति कराने वाली है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“व्यान—यह वायु संपूर्ण शरीर में व्याप्त है। इसका मुख्य कार्य जठराग्नि एवं चयापचय क्रिया का संचालन है।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“मन की तरंगों का रूप, रंग, आवृत्ति, वेग और घनत्व प्रतिक्षण परिवर्तित होता रहता है, जिसके कारण मनुष्य का व्यक्तित्व अव्यस्थित और असंतुलित होता है, जिसका प्रभाव मन और शरीर पर विभिन्न रोगों के माध्यम से दिखाई भी पड़ता”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“नित्य प्रति इक्कीस हजार छह सौ संख्या में ‘हंस’ का जाप करता है, वह ‘सोऽहम्’ रूप ही हो जाता है। इस प्रकार मंत्रयोग की समाधि को ‘महाभाव समाधि’ भी”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“1. देवदत्त- छींकना, 2. नाग-पलक झपकाना, 3. कृकल-जँभाई लेना, 4. कूर्म-खुजलाना, 5. धनंजय-हिचकी लेना आदि।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
“हमारी स्मृति का संबंध इस अवचेतन मन से ही॒है। 3. अचेतन मन—मन का यह हिस्सा प्रसुप्त और निष्क्रिय सा रहता है। यह मन का सबसे विराट् भाग है। प्रयास करने पर भी उसके संचित रहस्य चेतन मन पर नहीं उभरते। चेतन मन और अवचेतन मन के आधार के रूप में यह हिस्सा व्यक्ति के समग्र अस्तित्व के तल में निष्क्रिय सा रहते हुए भी सक्रिय रहता है, पर इसकी सक्रियता का कोई आभास तक नहीं मिलता। पूर्वजन्म के संस्कार इसी अचेतन मन से जुड़े रहते हैं, जो यदा-कदा अनजाने में परिचालित होते रहते हैं।”
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna
― HathYog: Swaroop Evam Sadhna




