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कोड ब्लैक पर्ल

‘कोड ब्लैक पर्ल’ स्पाईवर्स के हैशटैग के अंतर्गत लिखी गई पहली किताब है। हैशटैग इंगित करता है उस विशेष श्रेणी को जिसके अंतर्गत यह सीरीज़ लिखी जायेगी। इस सीरीज़ से जुड़ी हर कहानी क्रमानुसार नंबर दिये जायेंगे, ताकि पढ़ने वाले को पहचानने में आसानी रहे कि अमुक किताब, किस श्रेणी, किस सीरीज़ और किस किरदार से सम्बंधित है— क्योंकि स्पाईवर्स में एक किरदार नहीं है, बल्कि एक पूरी टीम है, जिसमें कई सदस्य हैं और इन्हीं में से छःहों मुख्य सदस्यों में से कोई दो सदस्य किसी एक कहानी में हो सकते हैं।

यह टीम जुड़ी है रिसर्च एंड अनैलेसिस विंग की एक एडीशनल डेस्क से, जिसे ‘इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया’ के रूप में पहचाना जाता है— जिसका लक्ष्य डबल ओ सेवन, जेसन बोर्न और ईथन हंट जैसे कैरेक्टर्स को ड्वेलप करना चाहती है। मूलतः यह स्पाई टर्म से सम्बंधित ही केस होते हैं, जिन्हें हैंडल करने का तरीका स्पेशल एजेंट्स जैसा होता है— और इसी घालमेल के चलते इस शृंखला को स्पाईवर्स के अंतर्गत चिन्हित किया गया है। इन सभी एजेंट्स के लिये देश या विदेश की कोई वर्जना नहीं है— बल्कि इनका कार्यक्षेत्र कहीं भी हो सकता है… बस वहां किसी तरह की ऐसी संदिग्ध गतिविधियों की उपस्थिति हो, जिसमें सिविल पुलिस के लिये कुछ न हो— या फिर इन्हें किसी तरह का टास्क दिया गया हो।

रॉ की इस एडीशनल इकाई का यह शुरुआती चरण है और एक तरह से प्रायोगिक भी, जिसकी सफलताओं या असफलताओं पर इसका भविष्य निर्भर है। अभी इस प्रोग्राम के लिये छः मुख्य एजेंट्स का चयन हुआ है, जिनमें तीन लड़के हैं तो तीन लड़कियां। बाकी कुछ सपोर्टिंग स्टाफ़ है। इन सभी मुख्य एजेंट्स को देश-विदेश से कड़े प्रशिक्षणों के सहारे संवारा गया है और भविष्य के लिये तैयार किया गया है— लेकिन इनकी असली परीक्षा तो फील्ड में होनी है, जहां इन्हें व्यावहारिक रूप से ख़ुद को साबित करना है। जहां हर ग़लती काउंट होगी और जहां किसी भी चूक पर जान जाने में देर नहीं लगनी।

इनके हर टास्क को एक कोड नेम दिया जाता है— कभी वह सीधे तौर पर उस मिशन को रिप्रेजेंट कर रहा हो सकता है तो कभी प्रतीक या रूपक की तरह संकेतात्मक शक्ल में… और यही कोड कहानी का टाईटल होता है। इसे बार-बार लिखना न पड़े, इसलिये बताया जाना ज़रूरी है— जैसे प्रस्तुत कहानी जिस टास्क को ले कर है, उस टास्क को नाम दिया गया है कोड ब्लैक पर्ल। यह नाम उस डिवाइस, टेक्नोलॉजी या इनफार्मेशन से सम्बंधित है— जिसका नाम ही पर्ल है और जिसकी चोरी हुई है।

कहानी यह है कि सरकारी तौर पर कोई सीक्रेट प्रोग्राम चलाया जा रहा था, जिसके बारे में सटीक इनफार्मेशन केवल टॉप लेवल के उन लोगों को है— जिन्होंने इसे रन किया है या जो इसे लीड कर रहा है। अब इस प्रोग्राम की कमान संभालने वाला शख़्स रिचर्ड किसिंजर ही एकाएक देश छोड़ कर भाग जाता है, जिसके साथ ही बस इतना पता चलता है कि जिस प्रोग्राम को वह हैंडल कर रहा था, उससे सम्बंधित डेटा, डिवाइस, टेक्नोलॉजी, जो भी था— वह उसके साथ ही चला गया।

अब इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया की टीम से संग्राम थापर और रोज़ीना रेयान को रिचर्ड किसिंजर के पीछे भेजा जाता है। उनका टास्क था किसिंजर को ख़त्म करना और उसके पास डेटा डिवाइस जो भी था— उसे नष्ट करना। किसिंजर तुर्किये होते हुए फिनलैंड भाग जाता है और वहां पहुंच कर एक लोकल वाईट कॉलर माफिया से हाथ मिला लेता है, जिससे जब संग्राम और रोज़ीना वहां पहुंचते हैं तो उन्हें किसिंजर के पीछे एक बड़ी लोकल गैंगवार से जूझना पड़ जाता है… और तब वे उस पूरे केस की हकीक़त जान पाते हैं।

जो दिखाया गया था, वह अधूरा सच था— जो पूरा सच था, उसे देखते उन्हें देशभक्ति की नई परिभाषा सीखने की ज़रूरत महसूस होती है। तब उन्हें यह भी समझ में आता है कि किसिंजर अपनी जगह कितना भी महत्वपूर्ण था, लेकिन असल में वह वैश्विक स्तर पर चलने वाले खेल का एक मामूली पुर्जा भर था… लेकिन वे अब चाहते भी तो पीछे नहीं हट सकते थे। जो टास्क दिया गया था, वह तो उन्हें पूरा करना ही था और इस चक्कर में उन्हें न सिर्फ़ तीन वाईट कॉलर लोकल माफियाओं से भिड़ना पड़ता है— बल्कि अंतिम मोर्चे पर उन्हें पूरे योरप पर पकड़ रखने वाली एक संस्था तक से टकराना पड़ता है।

तो कहानी के रूप में एक एजेंसी है, दो स्पेशल एजेंट्स हैं, एक अपराधी है जो असल में अपराधी है भी नहीं, फिनलैंड है, साउथ यूसीमा के तीन कंबाइंड शहर एस्पू, वंता और हेलसिंकी हैं— उनके ख़ूबसूरत नज़ारे हैं और एक दूसरे से जूझते तीन ऐसे वाईट कॉलर माफिया हैं जो किसिंजर के चलते आपस में ही जंग में उलझ जाते हैं… और वह अपराधिक संस्था है, जो अंत में सारा होल्ड अपने हाथ लेने सामने आती है।

Code Black Pearl
Ashfaq Ahmad
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Published on April 29, 2024 06:19 Tags: crime-fiction

काया पलट

क्राईम फिक्शन के हैशटैग के अंतर्गत डेविड फ्रांसिस सीरीज़ का ‘डेढ़ सयानी’ के बाद यह दूसरा उपन्यास है— लेकिन क्रम में इसे पहले नंबर पर रखा जायेगा, क्योंकि डेविड के जीवन का पहला लिखने योग्य पंगा इसी कहानी में सामने आता है। यूं समझिये कि ‘डेढ़ सयानी’ प्रकाशित भले पहले हुई हो, लेकिन वह कहानी बाद की है, जिसे अगले एडिशन में सही क्रम दिया जायेगा… इसी वजह से इसे इस सीरीज़ का पहला क्रमांक दिया गया है, जो चीज़ पाठकों को कन्फ्यूज कर सकती है। डेढ़ सयानी का क्रम उन कहानियों के बाद आयेगा, जो डेविड ने अब याद करनी और लिखनी शुरू की हैं।

यह एक तरह से डेविड की अतीत यात्रा है— वह पैसिफिक के एक आईलैंड पर बैठ कर अपने उस अतीत को याद कर रहा है, जो लिखने योग्य है। इस अतीत में ही उसके चरित्र का विकास है। उसके साधारण से श्रेष्ठ बनने का सफ़र है। एक आम आदमी से जेम्स बॉण्ड बनने की पड़ावों से भरी प्रक्रिया है। जो आदमी वर्तमान में दस गुंडों को अकेले और निहत्थे पीटने की क्षमता रखता हो— उसके अपने से कम दो मामूली लड़कों से पिट जाने की दास्तान है। इस यात्रा में डेविड के अतीत से जुड़ी नौ कहानियां सामने आयेंगी— जिन्होंने इस कैरेक्टर को दशा और दिशा दी है।

जिन पाठकों ने ‘डेढ़ सयानी’ नहीं पढ़ी, उन्हें इस कैरेक्टर के बारे में बता दूं कि यह एक योरोपियन पिता और भारतीय माँ से उत्पन्न संतान है, जो आर्थिक रूप से काफ़ी सम्पन्न है। किसी तरह जिसे बचपन से ही जासूसी किताबों और फिल्मों का चस्का लग गया और उसकी फितरत में वैसा ही कोई कैरेक्टर बनने की जो ललक पैदा हुई तो उसके व्यक्तित्व का विकास भी उसी मिज़ाज के अनुरूप होने लगा। इस आकर्षण के चलते ही जिसने शुरू से ही हर तरह की ट्रेनिंग ली, और हर तरह के तकनीकी ज्ञान में भी दक्षता हासिल की। फिर जब जवान होने और पढ़ाई पूरी होने के साथ ही माता-पिता एक रोड एक्सीडेंट में एक्सपायर हो गये, तो वह भी मुक्त हो कर अपने जेम्स बॉण्ड बनने के सफ़र पर निकल पड़ा।

लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा कुछ हो पाना आसान नहीं होता। क़दम-क़दम पर पेश होने वाली मुसीबतें असल स्किल और जीजिविषा का सख़्त इम्तिहान लेती हैं— यह अलग बात है कि इन मुसीबतों से हार मान कर पीछे हटने के बजाय वह आगे बढ़ता जाता है और उसकी शख्सियत निखरती जाती है। ख़ुद को बारहा ख़तरे में डाल कर, निश्चित दिखती मौत के मुंह से अपने को वापस खींच कर, अंततः वह वैसा बनने में कामयाबी पाता है, जो वह होना चाहता था। ख़ुद को जासूसी दुनिया के किसी फिक्शनल किरदार की तरह ड्वेलप करना और दुनिया भर के अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की सोच रखना उसका एक खब्त था— लेकिन यही अकेला खब्त नहीं था।

उसे प्रकृति से भी कम लगाव नहीं था, वह ज़र्रे-ज़र्रे में एक अप्रतिम सौंदर्य ढूंढने का जज़्बा रखता था। उसे सब्ज़ जंगलों से प्यार था, उसे सूखे रेगिस्तानों से प्यार था, उसे गहरे समंदरों से प्यार था, उसे गर्व से सीना ताने खड़े पहाड़ों से प्यार था। वह पूरी दुनिया को घूम लेना और देख लेना चाहता था— चप्पे-चप्पे को महसूस करना चाहता था और सृष्टि रचियता की उस कारीगरी को निहारना चाहता था, जो हर जगह थी… ज़मीन के हर हिस्से में थी।

लेकिन यह दो शौक ही नहीं थे, जो उसके सर पर खब्त की तरह सवार थे, बल्कि जितनी दिलचस्पी उसे इन दोनों चीज़ों में थी, लड़कियों में उससे कम दिलचस्पी नहीं थी। औरत के मामले में उसका अपना दर्शन था— वह ज़मीन के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर रंग और नस्ल की औरत को भोग लेना चाहता था लेकिन ऐसे किसी रिश्ते में बंधना उसे स्वीकार नहीं था, जो उससे ज़िम्मेदारी की डिमांड करता हो। लड़कियां उसकी कमज़ोरी थीं और उसने जवान होने के बाद से ही ‘आई कांट सी ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ के सिद्धांत को अपना रखा था— उसकी ज़िंदगी के ज्यादातर पंगे तो इसी सिद्धांत के चलते थे।

तो यह कैरेक्टर ड्वेलप होने के साथ वह सब पाता है, जो इसने पाना चाहा था, लेकिन जहां से इसकी यह फसादी यात्रा शुरू होती है— वहां इसके साथ कुछ चमत्कार जैसा घटा था… जब सात अक्तूबर की रात दिल्ली से मुंबई पहुंच कर वह अपने घर में सोता है और उठता है तो पाता है कि तारीख़ पंद्रह अक्तूबर हो चुकी थी, वह अपनी वास्तविक उम्र से पच्चीस-तीस साल बड़ा और अधेड़ हो चुका था, उसका शरीर भी काफ़ी हद तक बदल चुका था, मुंबई के बजाय अब वह न्यूयार्क में किसी जगह था, अपने घर के बजाय एक आलीशान घर में था और सबसे बड़ी बात कि अब वह डेविड भी नहीं रहा था, बल्कि न्यूयार्क के टॉप लिस्टेड अमीरों में से एक अमीर राईन स्मिथ बन चुका था।

अब ऐसा कैसे हुआ… सोते-सोते उसका शरीर, उसकी उम्र, उसकी जगह, उसकी हैसियत कैसे बदल गई— इस गुत्थी को सुलझाने का नाम ही ‘काया पलट’ है।

Kaya Palat
Ashfaq Ahmad
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Published on April 29, 2024 06:21 Tags: crime-fiction

मिशन ओसावा

क्राईम फिक्शन एक सदाबहार श्रेणी है जिसका आकर्षण कभी भी ख़त्म नहीं हुआ— आम तौर पर अलग-अलग विषयों पर फिक्शन लिखने वाले भी इस श्रेणी में हाथ ज़रूर आज़माते हैं। इस श्रेणी में किसी निरंतरता से मुक्त किरदार भी हो सकते हैं और वे भी जो सीरीज का निर्माण करते हैं और हर अगले भाग में एक नई कहानी जिनके आसपास घूमती है। प्रस्तुत उपन्यास ऐसी ही एक शृंखला की दूसरी कड़ी है, जिसमें एक मिशन है, और उस मिशन के इर्द-गिर्द सिमटी लीनियर रूट पर चलती एक कहानी है।

विशेषतः क्राईम फिक्शन के नाम पर मैंने दो तरह की शृंखलाएं आरम्भ की हैं, जिन्हें पहचान के लिये 'क्राईम फिक्शन' और 'स्पाईवर्स' के रूप में दो अलग-अलग हैशटैग के साथ चिन्हित किया गया है। क्राईम फिक्शन डेविड फ्रांसिस के रूप में एक अकेले किरदार से सम्बंधित सीरीज है— जो एक खास तरह के मनोविज्ञान की उपज है। वह यायावर है, जो दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता है। वह ठरकी है जो दुनिया की हर नस्ल और हर रंग की लड़की को भोग लेना चाहता है… और वह सनकी है, जो दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचा देना चाहता है।

लेकिन उसका तरीका थोड़ा अनोखा है… वह अपनी पसंद की किसी जगह पहुंच कर, वहां कोई ऐसी हसीना ढूंढता है जो मुसीबत की मारी हो और उसे मुसीबत से निकालने में लग जाता है, जो अक्सर उसके लिये ही मुसीबत का कारण बन जाती है— इस सिलसिले में जो कहानी जन्मती है, वह क्राईम फिक्शन हैशटैग के अंतर्गत प्रकाशित होती है। यह किरदार अभी ढलने की प्रक्रिया में है और इस प्रक्रिया के तहत इसकी पहली कहानी ‘काया पलट’ के रूप में प्रकाशित हुई है— तो दूसरी कहानी ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ भी इस कहानी ‘मिशन ओसावा’ के साथ ही प्रकाशित हुई है।

क्राईम फिक्शन के अंतर्गत जो दूसरी शृंखला है, वह ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के साथ प्रकाशित होती है— जिसमें ‘कोड ब्लैक पर्ल’ के बाद ‘मिशन ओसावा’ दूसरा उपन्यास है। जहां डेविड सीरीज केवल एक किरदार पर आधारित है, वहीं स्पाईवर्स की कहानियां एक एजेंसी पर आधारित हैं— जिसे ‘राॅ’ की एडीशनल डेस्क के रूप में परिभाषित किया गया है और जो बेसिकली विदेश विभाग से जुड़े मसलों में अपने स्पेशल एजेंट्स के साथ परफार्म करने के लिये डिजाइन की गई है, लेकिन तार किसी बाहरी साजिश से जुड़े हों और ज़मीन देश की ही इस्तेमाल की जा रही हो, तो भी वे डील कर सकते हैं।

इस एजेंसी में मुख्यतः आरव, निहाल और संग्राम के रूप में तीन मेल एजेंट्स तो रूबी, सबीना और रोजीना के रूप में तीन फीमेल एजेंट्स हैं— जिनके अपने मिज़ाज हैं और काम करने के अपने तरीके… इन्हें अलग-अलग मिशन दिये जाते हैं जहां इन्हें फिलहाल एक जोड़े के रूप में परफार्म करना होता है— जिसमें इन्हें ग्रेड बी के कुछ एजेंट्स से भी मदद मिलती है।

जैसे ‘मिशन ओसावा’ दरअसल एक नाॅन-स्टेट एक्टर की कहानी है, जिसे भारतीय सीमा में डिस्टर्बेंस पैदा करने के लिये कश्मीर में लांच किया गया है— अब इस शख़्स को ढूंढना, उसे पकड़ना या ख़त्म कर देना उन चार लोगों का मिशन है, जिन्हें इस काम के लिये अलग-अलग रूट से कश्मीर भेजा गया है। कहानी में लीड कैरेक्टर आरव आकाश और रूबी भाटिया हैं… साथ ही इन्हें विराट और रंजीत नाम के ग्रेड बी के दो एजेंट्स का सहयोग भी मिलता है।

आरव एजेंसी के बाकी दो मेन एजेंट्स संग्राम और निहाल से अलग मिज़ाज का है… वह दिमाग़ से बेहद शातिर है, लेकिन एक नंबर का मसखरा है और ज्यादातर मौकों और जगहों पर ख़ुद को किसी मूर्ख के तौर पर पेश करने से उसे एतराज़ नहीं। उसे किसी भी हाल में अपना काम निकालना होता है और उसे यह तरीका इसलिये बेस्ट लगता है क्योंकि यह उसके स्वभाव में शामिल है। हां, उसकी एक गंदी आदत यह भी है कि वह किसी टास्क को पूरा करने में लांग रूट के बजाय शार्टकट तलाशता है और इस चक्कर में कई बार गड़बड़ भी होती है। एजेंसी की दूसरी लड़कियों से इतर रूबी भी उसी के जैसे मसखरे स्वभाव की है— लेकिन उसे ख़ुद को मूर्ख दिखाने से सख्त परहेज रहता है।

एक महत्वपूर्ण बात और… कहानियां कई तरह की हो सकती हैं, लेकिन या तो उनमें सस्पेंस होगा, या ढेर से ट्विस्ट एंड टर्न्स होंगे— जो पाठक को अंत तक बांधे रख सकें… या फिर वह बिना ऐसे ट्विस्ट या टर्न के सीधी, सपाट होगी, जहां कहानी का ट्रीटमेंट और उसकी घटनाएं ही मुख्य होंगी— जो बजाय उलझावों के अपने संवादों, वर्णित दृश्यों, गति और घटनाओं के सहारे शुद्ध मनोरंजन उत्पन्न करती है, जो पाठक को बांध के रखता है। इस हिसाब से क्राईम फिक्शन के अंतर्गत लिखी डेविड सीरीज की कहानियां पहली श्रेणी में आती हैं तो स्पाईवर्स के अंतर्गत लिखी ‘इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया’ से जुड़ी कहानियां दूसरी श्रेणी में।

अगर ढेर से सस्पेंस, ट्विस्ट और टर्न की अपेक्षा के साथ ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग वाली कहानी पढ़ेंगे तो निराशा हाथ लगेगी। उस अपेक्षा से दिमाग़ को मुक्त कर के शुद्ध मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़ेंगे तो आपको यक़ीनन पसंद आयेंगी। इस विषय में एक अहम बात यह भी ध्यान रखनी ज़रूरी है कि स्पाईवर्स हैशटैग से जुड़ी यह कहानियां वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से वर्ल्ड पाॅलिटिक्स और डिप्लोमेसी आदि से सम्बंधित होती हैं— तो उस विषय में अगर आपको थोड़ी-बहुत पहले से जानकारी है तो आप ज्यादा बेहतर ढंग से रिलेट कर पायेंगे। या चाहें तो पढ़ने के साथ ही गूगल की मदद से भी थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं।

प्रस्तुत कहानी में भी इन बातों को इस्तेमाल में लिया गया है— कहानी का बेस ही वर्तमान वैश्विक परिदृश्य है कि किस तरह चौधराहट को लेकर चालें चली जा रही हैं, किन बातों से बार्डर डिस्टर्ब किये जा रहे हैं और कैसे अनदेखी सत्ताएं किसी देश की कंट्रोलिंग बाॅडी को पीछे से ऑपरेट करती हैं। मिशन ओसावा जिस किरदार को ले कर है— वह एक खास मकसद से भेजा गया ऐसा ही एक टूल है, जिससे इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया को निपटना है। अब इस सिलसिले में लद्दाख से कश्मीर तक क्या-क्या होता है… जानने के लिये पढ़िये स्पाईवर्स हैशटैग के अंतर्गत लिखी गई आरव आकाश सीरीज की ‘मिशन ओसावा’!

Mission Osava (Spyverse)
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Published on July 24, 2024 18:40 Tags: crime-fiction

ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस

क्राईम फिक्शन के हैशटैग के अंतर्गत यह डेविड फ्रांसिस सीरीज का तीसरा, लेकिन इस सीरीज के क्रम के अनुसार यह दूसरा उपन्यास है, जिसमें डेविड अपने शाहकार बनने की प्रक्रिया से गुज़र रहा है। इस शृंखला में पहला उपन्यास ‘डेढ़ सयानी’ प्रकाशित हुआ था जो क्रमानुसार तब की कहानी है, जब यह किरदार पूरी तरह स्थापित हो चुका था। कायदे से सीरीज में उसका क्रम दसवां आयेगा। डेविड का ‘डेढ़ सयानी’ तक का सफ़र नौ अलग-अलग कहानियों का है, ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ जिसमें से दूसरे नंबर पर है।

कुछ बातें डेविड के बारे में… यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है, जिसके पिता आइसलैंड से थे और माँ महाराष्ट्रियन थीं। बचपन से ही जासूसी कहानियां पढ़ने और जासूसी फिल्में देखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सर पर वैसा ही कैरेक्टर हो जाने का खब्त ही सवार हो गया और इस बात के पीछे उसने बचपन से ही हर तरह का प्रशिक्षण लिया और स्वंय को मानसिक रूप से तैयार किया। कुदरत ने भी उसका साथ दिया और ऐसे ख़तरनाक रास्ते पर चलने के लिये उसे जो आज़ादी चाहिये थी, वह माता-पिता के एक रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिल गई— और वह जेम्स बाॅण्ड बनने निकल खड़ा हुआ।

अब डेविड फ्रांसिस नाम का यह शख़्स अपने को आज़माने चल पड़ा है, जो हर बंधन से मुक्त है, और पागलपन की हद तक जिसके तीन ही शौक हैं— भ्रमण, लड़की और अपराधियों से पंगे… जिसे दुनिया के हर हिस्से को देखना है, और जिसे वर्स्ट से वर्स्ट लोकेशन में भी प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेने की ज़िद रहती है। जो दुनिया की हर रंग, हर नस्ल और हर हिस्से में पाई जाने वाली लड़की को भोग लेने की तमन्ना रखता है— ठरकी है, मगर किसी को भी प्यार से जीतना पसंद करता है। हर कहीं दूसरों के फटे में टांग अड़ाना और अपराधियों की ओखली ढूंढ कर अपना सर दे देने की सनक ख़तरनाक स्तर तक सवार रहती है।

इसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसने अपने मन में ही अपने एक प्रतिरूप को स्थापित कर रखा है, जिसे यह ‘अंदर वाले डेविड’ या ‘मिनी मी’ कह कर सम्बोधित करता है और न सिर्फ़ उससे विचार-विमर्श करता रहता है, बल्कि जो वह सीधे नहीं हो पाता— वह मिनी मी के रूप में हो जाना चाहता है और अपनी हर फीलिंग को उसके मुंह से हर तरह के शब्दों में बयान कर लेता है। दोनों में अक्सर नोक-झोंक भी होती है। एक तरह से यह मेंटल डिसऑर्डर लग सकता है, लेकिन डेविड के लिये यह संबल का एक कारक है।

अब बात इस कहानी की— डेविड की कहानी बिना लड़की के नहीं पनपती, न फलती-फूलती है। तो डेविड की कहानी में लड़की भी होनी है और उसका संकट में फंसना भी तय होता है। डेविड को असल किक इसी बात से मिलती है और यहीं से वह कहानी पनपती है, जो जेम्स, शरलाॅक, नीरो, सैक्सटन के मिश्रण से बने डेविड फ्रांसिस की क्षमताओं का सख़्त इम्तिहान लेती है।

प्रस्तुत कहानी में यह डैमसेल जूही नाम की एक लड़की है, जो एक रहस्य की तरह उससे मिलती है और फिर उसकी आँखों के सामने ही जूही को अगवा कर लिया जाता है। जिसके बाद जब वह अपनी खोजबीन शुरू करता है, तो इस डिस्ट्रेस से जुड़े राज़ धीरे-धीरे सामने आते हैं और पता चलता है कि वह एक ऐसे नेटवर्क का शिकार हुई थी, जो न सिर्फ ड्रग ट्रैफिकिंग से जुड़ा था, बल्कि जिसकी संलिप्तता टेररिज्म में भी थी।

अब सवाल यह था कि किसने उठाया था जूही को? क्या हासिल करना चाहता था वह उसकी किडनैपिंग से? डेविड अपनी जान पर खेलते, बार-बार ख़तरे में पड़ते इस घटना की तह तक तो पहुंचता है लेकिन क्या वह जूही को सुरक्षित निकाल भी पाता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिये पढ़िये… ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस!

A Damsel In DistressAshfaq Ahmad
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Published on July 24, 2024 18:42 Tags: crime-fiction

डार्क साइड

क्राईम फिक्शन हैशटैग के अंतर्गत डेविड फ्रांसिस सीरीज का यह चौथा प्रकाशित उपन्यास है— लेकिन क्रम में यह तीसरा है तो कवर पर सीरियल नंबर उसी हिसाब से दिया गया है। यह ‘काया पलट’ से डेढ़ सयानी तक दस कहानियों का एक रोमांचक सफ़र है, जहां धीरे-धीरे एक एक चरित्र का विकास होता है और वह अपने शिखर को हासिल करता है। शृंखला शायद उसके बाद भी जारी रहे, मगर अभी इस सीरीज का यह पहला सेट दस कहानियों तक का सफ़र ऑलरेडी तय कर चुका है, जिनमें धीरे-धीरे क्रम के हिसाब से कहानियां प्रकाशित की जा रही हैं।

अब चूंकि यह सीरीज डेविड फ्रांसिस के किरदार पर आधारित है तो कुछ बातें उसके बारे में जान लेनी ज़रूरी हैं… यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है, जिसके पिता आइसलैंड से थे और माँ महाराष्ट्रियन थीं। बचपन से ही जासूसी कहानियां पढ़ने और जासूसी फिल्में देखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सर पर वैसा ही कैरेक्टर हो जाने का खब्त ही सवार हो गया और इस बात के पीछे उसने बचपन से ही हर तरह का प्रशिक्षण लिया और स्वंय को मानसिक रूप से तैयार किया। कुदरत ने भी उसका साथ दिया और ऐसे ख़तरनाक रास्ते पर चलने के लिये उसे जो आज़ादी चाहिये थी, वह माता-पिता के एक रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिल गई— और वह जेम्स बाॅण्ड बनने निकल खड़ा हुआ।

अब डेविड फ्रांसिस नाम का यह शख़्स अपने को आज़माने चल पड़ा है, जो हर बंधन से मुक्त है, और पागलपन की हद तक जिसके तीन ही शौक हैं— भ्रमण, लड़की और अपराधियों से पंगे… जिसे दुनिया के हर हिस्से को देखना है, और जिसे वर्स्ट से वर्स्ट लोकेशन में भी प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेने की ज़िद रहती है। जो दुनिया की हर रंग, हर नस्ल और हर हिस्से में पाई जाने वाली लड़की को भोग लेने की तमन्ना रखता है— ठरकी है, मगर किसी को भी प्यार से जीतना पसंद करता है। हर कहीं दूसरों के फटे में टांग अड़ाना और अपराधियों की ओखली ढूंढ कर अपना सर दे देने की सनक ख़तरनाक स्तर तक सवार रहती है।

इसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसने अपने मन में ही अपने एक प्रतिरूप को स्थापित कर रखा है, जिसे यह ‘अंदर वाले डेविड’ या ‘मिनी मी’ कह कर सम्बोधित करता है और न सिर्फ़ उससे विचार-विमर्श करता रहता है, बल्कि जो वह सीधे नहीं हो पाता— वह मिनी मी के रूप में हो जाना चाहता है और अपनी हर फीलिंग को उसके मुंह से हर तरह के शब्दों में बयान कर लेता है। दोनों में अक्सर नोक-झोंक भी होती है। एक तरह से यह मेंटल डिसऑर्डर लग सकता है, लेकिन डेविड के लिये यह संबल का एक कारक है।

जहां तक इस कहानी ‘डार्क साइड’ की बात है, यह कहानी बेशुमार पैसे और प्रसिद्धि वाली चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया से जुड़े एक स्याह पहलू पर आधारित है। इस डार्क साइड में न सिर्फ़ ब्लैक मनी का दखल है, शोषण एक आम समस्या है वहीं दिनों-दिन मज़बूत हो रही उस एडल्ट कंटेंट परोसने वाली पैरेलल इंडस्ट्री को भी उकेरा गया है जो बहुत तेज़ी से अपनी जगह बनाने में लगी हुई है।

प्रस्तुत कहानी में डेविड को जिन तीन लड़कियों का साथ मिला है, उनमें तीनों ही इस स्याह पक्ष से जुड़े लोगों की बेटी हैं, बीवी हैं या हिरोइन हैं— कहानी की शुरुआत जिस हिरोईन के अपहरण की नाकाम कोशिश से होती है, वह डेविड के लिये अंत तक एक पहेली बनी रहती है। जिसे ले कर वह यह फैसला नहीं कर पाता कि वह विक्टिम है या ख़ुद इस खेल की शातिर खिलाड़ी है। जो उसे इस्तेमाल करती है, मगर इस्तेमाल की वैलिड वजह भी देती है।

जिन दो दूसरे लोगों को वह सीधे तौर पर इस सिलसिले में खलनायक के तौर पर स्थापित करता है, उन्हीं में से एक की बीवी से उसे इस तमाशे को समझने में मदद मिलती है तो दूसरे की बेटी न सिर्फ़ क़दम-क़दम पर उसका साथ देती है— बल्कि उसके लिये ख़ुद ही ट्रबल शूटर बन जाती है। वह इस बड़ी सी स्याह दुनिया में एक बहुत मामूली इंसान था— जो इस आग में हाथ डाल तो देता है मगर एक ही किस्से में कई बार मौत के मुंह तक पहुंच जाता है। सवाल यह था कि क्या वह इस पहलू को उजागर कर पायेगा?

Dark Side (Crime Fiction by Ashfaq Ahmad Book 3)
Ashfaq Ahmad
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Published on October 18, 2024 21:47 Tags: crime-fiction

द अफ़ग़ान हाउंड

क्राईम फिक्शन के नाम पर मेरे द्वारा इस समय दो शृंखलाएं लिखी जा रही हैं, जिन्हें पहचान के लिये 'क्राईम फिक्शन' और 'स्पाईवर्स' के रूप में दो अलग-अलग हैशटैग के साथ चिन्हित किया गया है। क्राईम फिक्शन डेविड फ्रांसिस के रूप में एक अकेले किरदार से सम्बंधित शृंखला है— जो एक खास तरह के मनोविज्ञान की उपज है। वह यायावर है, जो दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता है। वह ठरकी है जो दुनिया की हर नस्ल और हर रंग की लड़की को भोग लेना चाहता है… और वह सनकी है, जो दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचा देना चाहता है।

लेकिन उसका तरीका थोड़ा अनोखा है… वह अपनी पसंद की किसी जगह पहुंच कर, वहां कोई ऐसी हसीना ढूंढता है जो मुसीबत की मारी हो और उसे मुसीबत से निकालने में लग जाता है, जो अक्सर उसके लिये ही मुसीबत का कारण बन जाती है— इस सिलसिले में जो कहानी जन्मती है, वह ‘क्राईम फिक्शन’ हैशटैग के अंतर्गत प्रकाशित होती है। यह किरदार अभी ढलने की प्रक्रिया में है और इस प्रक्रिया के तहत इसकी पहली कहानी ‘काया पलट’ के रूप में प्रकाशित हुई है— जिसके बाद ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ और ‘डार्क साइड’ भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

क्राईम फिक्शन के अंतर्गत जो दूसरी शृंखला है, वह ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के साथ प्रकाशित होती है— जिसमें ‘कोड ब्लैक पर्ल’ पहला, ‘मिशन ओसावा’ दूसरा और ‘द अफ़ग़ान हाउंड’ तीसरा उपन्यास था। जहां डेविड सीरीज केवल एक किरदार पर आधारित है, वहीं स्पाईवर्स की कहानियां एक ऐसी एजेंसी पर आधारित हैं— जिसे ‘राॅ’ की एडीशनल डेस्क के रूप में परिभाषित किया गया है और जो बेसिकली विदेश विभाग से जुड़े मसलों में अपने स्पेशल एजेंट्स के साथ परफार्म करने के लिये डिजाइन की गई है, लेकिन तार किसी बाहरी साजिश से जुड़े हों और ज़मीन देश की ही इस्तेमाल की जा रही हो, तो भी वे डील कर सकते हैं।

इस एजेंसी में मुख्यतः आरव, निहाल और संग्राम के रूप में तीन मेल एजेंट्स तो रूबी, सबीना और रोजीना के रूप में तीन फीमेल एजेंट्स हैं— जिनके अपने मिज़ाज हैं और काम करने के अपने तरीके… इन्हें अलग-अलग मिशन दिये जाते हैं जहां इन्हें फिलहाल एक जोड़े के रूप में परफार्म करना होता है— जिसमें इन्हें ग्रेड बी के कुछ एजेंट्स से भी मदद मिलती है। स्पाइवर्स के अंतर्गत पहली कहानी ‘कोड ब्लैक पर्ल’ संग्राम सीरीज का इंट्रोडक्टरी उपन्यास था, तो इसी तरह ‘मिशन ओसावा’ एजेंसी के दूसरे एजेंट आरव आकाश का पहला और इंट्रोडक्टरी उपन्यास था। इसी तर्ज़ पर ‘द अफ़ग़ान हाउंड’ एजेंसी के तीसरे मेन एजेंट निहाल सिंह की पहली कहानी है।

‘कोड ब्लैक पर्ल’ फिनलैंड में किये एक मिशन की कहानी थी तो ‘मिशन ओसावा’ कश्मीर से सम्बंधित ऐसी कहानी जिसमें विदेशी शक्तियों का जुड़ाव था— जबकि स्पाईवर्स की यह तीसरी कहानी अफ़गानिस्तान से सम्बंधित है, जो एक अरसे से विदेशी शक्तियों का अखाड़ा बना रहा है। प्रस्तुत कहानी में एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल ऑर्गेनाइजेशन का भी समावेश है, जिसके फलसफे अलग हैं, जिसके लक्ष्य अलग हैं और जिसके तरीके भी सबसे अलग हैं— जो बतौर आर्गेनाइजेशन भी किसी विकसित देश जितनी पाॅवर रखती है।

अपने किन्हीं दूरगामी लक्ष्यों के लिये उस अपराधिक संस्था ने पूर्वी अफ़गानिस्तान के एक सरहदी इलाके को फुटबाल ग्राउंड बना रखा है और अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार उस खेल को रोकना तो दूर, उसे समझने में भी असमर्थ है। जिससे निपटने के लिये वे आईएसआई से ले कर राॅ तक की मदद लेना मंज़ूर करते हैं और इस मदद के नाम पर वह मिशन अमल में आता है जहां से स्पाईवर्स में निहाल का प्रवेश होता है। क्या वह उन हादसों का मुअम्मा हल कर पायेगा, जिन्होंने अफ़गान हुकूमत को हिला रखा है? क्या वह उस संस्था के खेल को सबके सामने ला पायेगा— ला पायेगा तो कैसे? जानने के लिये पढ़िये… द अफ़ग़ान हाउंड!

The Afghan Hound
Ashfaq Ahmad
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Published on October 18, 2024 21:49 Tags: crime-fiction

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Ashfaq  Ahmad
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