Ashfaq Ahmad's Blog: Lafztarash
October 14, 2025
इक्वोडो
‘मिरोव’ ‘ओरियन’ और ‘विलाद’ के बाद ‘अर्ल्ज़वर्स’ के कांसेप्ट की चौथी और अंतिम कहानी ‘इक्वोडो’ के रूप में पेश है— यह पूरी कहानी आठ भाग में है और सभी भाग एक साथ ही प्रकाशित किये जा रहे हैं।
पिछली तीन कहानियों में और इक्वोडो में एक बेसिक फ़र्क यह है कि वे कहानियां पृथ्वी के अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़ी थीं तो उनके पहले पन्ने से ही समझा जा सकता था कि क्या चल रहा है— जबकि इक्वोडो में ऐसा नहीं है, तो इसे समझने के लिये यह समझना ज़रूरी है कि इसकी कहानी सीधे यूनिवर्स के दूसरे ग्रहों से शुरू होती है, जहां-अलग-अलग तरह की इंटेलिजेंट लाईफ़ मौजूद है।
यूं तो इस कांसेप्ट की पहली कहानी ‘मिरोव’ भी तीसरे भाग में पृथ्वी से हट कर शैडो यूनिवर्स में शिफ्ट हुई थी, लेकिन चूंकि उसकी शुरुआत पृथ्वी के वर्तमान से हुई थी तो जब तक कहानी पृथ्वी से हटी थी, तब तक पाठक कहानी से कनेक्ट हो चुके थे और इसलिये किरदारों के साथ एकदम अलग यूनिवर्स में पहुंच जाना अटपटा नहीं लगा था— जितना इक्वोडो में लग सकता है।
‘इक्वोडो’ की शुरुआत ही खुले यूनिवर्स से होती है— जहां 'थ्य ओ राॅन' के रूप में एक नई ताक़त सामने आती है, जो सीधे ईश्वर होने का दावा करता है, और इसके पक्ष में वह कई तरह की शक्तियों का प्रदर्शन भी करता है। जो अब यूनिवर्स में मौजूद हर तरह के जीवन को अपने कंट्रोल में ले कर अपने तरीके से चलाना चाहता है, जहां किसी भी सुप्रीम क्रीचर के पास बस नाम की और कंडीशनल फ्री विल होगी और सभी ज्यादातर जीवन किसी रोबोट की तरह नियंत्रण के साथ जियेंगे— जिनके पास इंसानों जैसी वह छूट बिलकुल नहीं होगी कि वह मनमाने तरीकों से जीवन जीते हुए अपने ही प्लेनेट को तबाह कर लें।
कहानी की शुरुआत ऐसे ग्रहों से होती है— जो वूडर्स या हेलिडर्स के बनाये हैं। हेलिडर के बसाये प्लेनेट की मूल प्रजाति फिएंडर्स की है, जो कि हेलिडर्स की रचना हैं— यानि वही प्राणी, जो ‘ओरियन’ और ‘विलाद’ में जाॅगर्स और हेलब्रीड्स यानि शैतान के रूप में सामने आ चुके हैं। 'इक्वोडो' की शुरुआत ही इन बाहरी जीवों से होती है, जो अपनी प्रजाति को फिएंडर्स के रूप में पहचानते हैं। एक इंसान की नज़र से हम कह सकते हैं कि इक्वोडो की कहानी यूनिवर्स और एलियंस के साथ शुरू होती है।
अब इस कहानी को समझने के लिये ओरियन और विलाद में परोसे गये ‘अर्ल्ज़वर्स’ के कांसेप्ट को वापस याद करते हैं… एक सिस्टम है, उसमें बाकी सब दूसरे एप्स हैं, करोड़ों तरह की फाइलें हैं— लेकिन इस सिस्टम में एक वायरस है, जिससे जूझने के लिये, उसे रोकने या ख़त्म करने के लिये एक एंटी-वायरस इंस्टाल किया जाता है… ऐसे में इसे ऐसे समझिये कि यह पूरा यूनिवर्स, इसमें शामिल सभी तत्वों समेत वह सिस्टम है, जिसमें हेलिडर वायरस की और वूडर या इक्वोडियंस एंटी-वायरस की हैसियत रखते हैं। हालांकि यह पूरी तस्वीर का बस एक पहलू है।
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि किसी शोमार नाम के क्रियेटर ने इस पूरी सृष्टि को रचा है— और किसी अननोन कारण से इसमें सुर-असुर, दोनों तरह की शक्तियों को मौजूद रखा है, यह अच्छाई और बुराई का प्रतीक हैं, अंधेरे और उजाले का प्रतीक हैं, सृजन और विनाश का प्रतीक हैं। जितना एक ज़रूरी है, उतना ही दूसरा ज़रूरी है— बिना एक के, दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं। जैसे न बिना रात के दिन का कोई अस्तित्व है और न बिना दिन के रात का। एक के होने के लिये ही दूसरे का होना ज़रूरी है और जब दोनों होंगे, तभी सृष्टि होगी।
अब हम इंसान एक पाले में आते हैं, जिनके लिये शोमार सृष्टि का पालनहार है, वूडर्स उसके बनाये फरिश्ते हैं, जो यूनिवर्स भर में जीवन का सृजन करते हैं— और इस सृष्टि में हेलिडर्स शैतान हैं, जिन्हें खुला छोड़ा गया है, वूडर्स से ज्यादा शक्तियों से लैस किया गया है, ताकि वे हम सभी का इम्तहान ले सकें… क्योंकि उनसे मिलने वाली अपने विनाश की चुनौतियां और प्रतिक्रिया में इससे उत्पन्न जीजिविषा ही हमें सर्वाइवल के पैमाने पर टिकने लायक मज़बूत बनायेगी।
लेकिन इन सारी बातों के बावजूद, तस्वीर के इस पहलू में यह मात्र एक पक्ष का सच है— दूसरे पक्ष की मान्यता क्या है? इक्वोडो का पहला भाग इसी पक्ष को सामने रखता है और यह अंतर समझ में आता है कि हर चीज़ को देखने का सभी का नज़रिया अलग होता है— जहां इंसान सबकुछ इक्वोडियंस की नज़र से देखते हैं, और उनकी दुनिया में हेलिडर्स घिनौने, ख़तरनाक और शैतान होते हैं… ठीक इसके उलट फिएंडर और हेलिडर की नज़र में वूडर्स शैतान थे, जबकि उनके बनाये इंसान बस गंदे, तुच्छ कीड़े सरीखे जीव।
तो इस कांसेप्ट को समझने के लिये फिएंडर को समझना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना हेलिडर्स की फिलाॅस्फी। जैसे वूडर्स शोमार की बनाई एक शक्ति थे और वे जीवन पनपने लायक अलग-अलग ग्रहों पर विविधता भरे जीवन का सृजन करते थे— उनके लिये सैटन या हमन, कोई भी सर्वोपरि नहीं था, बल्कि उन्होंने जेनेटिक इंजीनियरिंग के ज़रिये ढेरों तरह के जीवों की रचना की थी… वहीं हेलिडर्स भी वही काम अपने तरीके से करते थे, लेकिन वे विविधता के पैरोकार नहीं थे, तो उनका बनाया जीवन सभी ग्रहों पर एक ही रूप में पनपता था और अपने अंश से अपने ही जैसे जो जीव वे बनाते थे, वे फिएंडर कहलाते थे। पृथ्वी पर इन्हीं जीवों को 'ओरियन' में ‘जाॅगर्स’ की संज्ञा दी गई थी।
इक्वोडो में वूडर्स और हेलब्रीड्स से हट कर नया इस यूनिवर्स में ‘थ्य ओ राॅन’ का प्रवेश है— जो बाकी दोनों शक्तियों से अलग हैं, असल में वह ईश्वर होने का दावा करता है और किसी भी प्लेनेट के सुप्रीम क्रीचर के डिजाइन में व्याप्त उसकी डिफाॅल्ट त्रुटियों को दूर कर के एक बेहतर जीव और बेहतर प्लेनेट्स बनाना चाहता है और उसकी कोशिशों में उसके सबसे बड़े दुश्मन खुद वूडर्स और हेलब्रीड्स हैं— जिनसे निपटने के साथ ही वह अपने सफ़र की शुरुआत करता है और उन्हें सीमित करने में कामयाब रहता है।
अपने देवत्व को स्थापित करने और अपनी स्वीकार्यता पाने के लिये वह दो आकाशगंगाओं को पूरी तरह तबाह कर देने वाली एक गैलेक्टिक जंग को चुनता है— जिसके तीन पक्ष होते हैं, एक हेलब्रीड्स के बनाये फिएंडर्स से भरी गैलेक्सी नेलिडो, दूसरे वूडर्स के बनाये इंसानों के सदृश जीवों से भरी ससेन गैलेक्सी और तीसरे विलुप्त हो चुके वूडर्स, जो पृथ्वीवासियों जैसे अगवा किये जीवों के सहारे अपनी पुनर्स्थापना की कोशिश में लगे थे।
थ्य ओ राॅन उस जंग से जुड़े अहम किरदारों के अतीत में घुसपैठ कर के उनके साथ घटी घटनाओं को मैनीपुलेट करता है, जिससे इस गैलेक्टिक जंग के परिणाम बदलें और न सिर्फ़ एक बड़ी तबाही टल जाये— बल्कि इस बहाने उसे एक झटके से हज़ारों उन्नत सभ्यताओं के बीच ईश्वर के तौर पर स्थापित होने का मौका भी मिले। उसके चुने सभी मोहरे भयंकर किस्म के संघर्षों में उलझे थे, जहां अब थ्य ओ राॅन का हस्तक्षेप अपना प्रभाव पैदा करता है और चीज़ें बदलनी शुरू होती हैं— लेकिन क्या जंग का वास्तविक परिणाम भी बदल पायेगा?
Ikwodo Chapter 1: The Rise of Thya O Ron
Ikwodo Chapter 2: Planet of the Dead
Ikwodo Chapter 3: Cosmic Insurgents
Ikwodo Chapter 4: The Mysterious World of Lenor
Ikwodo Chapter 7: Battle of the Galaxies
Ikwodo Chapter 8: The Final Apocalypse
पिछली तीन कहानियों में और इक्वोडो में एक बेसिक फ़र्क यह है कि वे कहानियां पृथ्वी के अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़ी थीं तो उनके पहले पन्ने से ही समझा जा सकता था कि क्या चल रहा है— जबकि इक्वोडो में ऐसा नहीं है, तो इसे समझने के लिये यह समझना ज़रूरी है कि इसकी कहानी सीधे यूनिवर्स के दूसरे ग्रहों से शुरू होती है, जहां-अलग-अलग तरह की इंटेलिजेंट लाईफ़ मौजूद है।
यूं तो इस कांसेप्ट की पहली कहानी ‘मिरोव’ भी तीसरे भाग में पृथ्वी से हट कर शैडो यूनिवर्स में शिफ्ट हुई थी, लेकिन चूंकि उसकी शुरुआत पृथ्वी के वर्तमान से हुई थी तो जब तक कहानी पृथ्वी से हटी थी, तब तक पाठक कहानी से कनेक्ट हो चुके थे और इसलिये किरदारों के साथ एकदम अलग यूनिवर्स में पहुंच जाना अटपटा नहीं लगा था— जितना इक्वोडो में लग सकता है।
‘इक्वोडो’ की शुरुआत ही खुले यूनिवर्स से होती है— जहां 'थ्य ओ राॅन' के रूप में एक नई ताक़त सामने आती है, जो सीधे ईश्वर होने का दावा करता है, और इसके पक्ष में वह कई तरह की शक्तियों का प्रदर्शन भी करता है। जो अब यूनिवर्स में मौजूद हर तरह के जीवन को अपने कंट्रोल में ले कर अपने तरीके से चलाना चाहता है, जहां किसी भी सुप्रीम क्रीचर के पास बस नाम की और कंडीशनल फ्री विल होगी और सभी ज्यादातर जीवन किसी रोबोट की तरह नियंत्रण के साथ जियेंगे— जिनके पास इंसानों जैसी वह छूट बिलकुल नहीं होगी कि वह मनमाने तरीकों से जीवन जीते हुए अपने ही प्लेनेट को तबाह कर लें।
कहानी की शुरुआत ऐसे ग्रहों से होती है— जो वूडर्स या हेलिडर्स के बनाये हैं। हेलिडर के बसाये प्लेनेट की मूल प्रजाति फिएंडर्स की है, जो कि हेलिडर्स की रचना हैं— यानि वही प्राणी, जो ‘ओरियन’ और ‘विलाद’ में जाॅगर्स और हेलब्रीड्स यानि शैतान के रूप में सामने आ चुके हैं। 'इक्वोडो' की शुरुआत ही इन बाहरी जीवों से होती है, जो अपनी प्रजाति को फिएंडर्स के रूप में पहचानते हैं। एक इंसान की नज़र से हम कह सकते हैं कि इक्वोडो की कहानी यूनिवर्स और एलियंस के साथ शुरू होती है।
अब इस कहानी को समझने के लिये ओरियन और विलाद में परोसे गये ‘अर्ल्ज़वर्स’ के कांसेप्ट को वापस याद करते हैं… एक सिस्टम है, उसमें बाकी सब दूसरे एप्स हैं, करोड़ों तरह की फाइलें हैं— लेकिन इस सिस्टम में एक वायरस है, जिससे जूझने के लिये, उसे रोकने या ख़त्म करने के लिये एक एंटी-वायरस इंस्टाल किया जाता है… ऐसे में इसे ऐसे समझिये कि यह पूरा यूनिवर्स, इसमें शामिल सभी तत्वों समेत वह सिस्टम है, जिसमें हेलिडर वायरस की और वूडर या इक्वोडियंस एंटी-वायरस की हैसियत रखते हैं। हालांकि यह पूरी तस्वीर का बस एक पहलू है।
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि किसी शोमार नाम के क्रियेटर ने इस पूरी सृष्टि को रचा है— और किसी अननोन कारण से इसमें सुर-असुर, दोनों तरह की शक्तियों को मौजूद रखा है, यह अच्छाई और बुराई का प्रतीक हैं, अंधेरे और उजाले का प्रतीक हैं, सृजन और विनाश का प्रतीक हैं। जितना एक ज़रूरी है, उतना ही दूसरा ज़रूरी है— बिना एक के, दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं। जैसे न बिना रात के दिन का कोई अस्तित्व है और न बिना दिन के रात का। एक के होने के लिये ही दूसरे का होना ज़रूरी है और जब दोनों होंगे, तभी सृष्टि होगी।
अब हम इंसान एक पाले में आते हैं, जिनके लिये शोमार सृष्टि का पालनहार है, वूडर्स उसके बनाये फरिश्ते हैं, जो यूनिवर्स भर में जीवन का सृजन करते हैं— और इस सृष्टि में हेलिडर्स शैतान हैं, जिन्हें खुला छोड़ा गया है, वूडर्स से ज्यादा शक्तियों से लैस किया गया है, ताकि वे हम सभी का इम्तहान ले सकें… क्योंकि उनसे मिलने वाली अपने विनाश की चुनौतियां और प्रतिक्रिया में इससे उत्पन्न जीजिविषा ही हमें सर्वाइवल के पैमाने पर टिकने लायक मज़बूत बनायेगी।
लेकिन इन सारी बातों के बावजूद, तस्वीर के इस पहलू में यह मात्र एक पक्ष का सच है— दूसरे पक्ष की मान्यता क्या है? इक्वोडो का पहला भाग इसी पक्ष को सामने रखता है और यह अंतर समझ में आता है कि हर चीज़ को देखने का सभी का नज़रिया अलग होता है— जहां इंसान सबकुछ इक्वोडियंस की नज़र से देखते हैं, और उनकी दुनिया में हेलिडर्स घिनौने, ख़तरनाक और शैतान होते हैं… ठीक इसके उलट फिएंडर और हेलिडर की नज़र में वूडर्स शैतान थे, जबकि उनके बनाये इंसान बस गंदे, तुच्छ कीड़े सरीखे जीव।
तो इस कांसेप्ट को समझने के लिये फिएंडर को समझना भी उतना ही ज़रूरी है, जितना हेलिडर्स की फिलाॅस्फी। जैसे वूडर्स शोमार की बनाई एक शक्ति थे और वे जीवन पनपने लायक अलग-अलग ग्रहों पर विविधता भरे जीवन का सृजन करते थे— उनके लिये सैटन या हमन, कोई भी सर्वोपरि नहीं था, बल्कि उन्होंने जेनेटिक इंजीनियरिंग के ज़रिये ढेरों तरह के जीवों की रचना की थी… वहीं हेलिडर्स भी वही काम अपने तरीके से करते थे, लेकिन वे विविधता के पैरोकार नहीं थे, तो उनका बनाया जीवन सभी ग्रहों पर एक ही रूप में पनपता था और अपने अंश से अपने ही जैसे जो जीव वे बनाते थे, वे फिएंडर कहलाते थे। पृथ्वी पर इन्हीं जीवों को 'ओरियन' में ‘जाॅगर्स’ की संज्ञा दी गई थी।
इक्वोडो में वूडर्स और हेलब्रीड्स से हट कर नया इस यूनिवर्स में ‘थ्य ओ राॅन’ का प्रवेश है— जो बाकी दोनों शक्तियों से अलग हैं, असल में वह ईश्वर होने का दावा करता है और किसी भी प्लेनेट के सुप्रीम क्रीचर के डिजाइन में व्याप्त उसकी डिफाॅल्ट त्रुटियों को दूर कर के एक बेहतर जीव और बेहतर प्लेनेट्स बनाना चाहता है और उसकी कोशिशों में उसके सबसे बड़े दुश्मन खुद वूडर्स और हेलब्रीड्स हैं— जिनसे निपटने के साथ ही वह अपने सफ़र की शुरुआत करता है और उन्हें सीमित करने में कामयाब रहता है।
अपने देवत्व को स्थापित करने और अपनी स्वीकार्यता पाने के लिये वह दो आकाशगंगाओं को पूरी तरह तबाह कर देने वाली एक गैलेक्टिक जंग को चुनता है— जिसके तीन पक्ष होते हैं, एक हेलब्रीड्स के बनाये फिएंडर्स से भरी गैलेक्सी नेलिडो, दूसरे वूडर्स के बनाये इंसानों के सदृश जीवों से भरी ससेन गैलेक्सी और तीसरे विलुप्त हो चुके वूडर्स, जो पृथ्वीवासियों जैसे अगवा किये जीवों के सहारे अपनी पुनर्स्थापना की कोशिश में लगे थे।
थ्य ओ राॅन उस जंग से जुड़े अहम किरदारों के अतीत में घुसपैठ कर के उनके साथ घटी घटनाओं को मैनीपुलेट करता है, जिससे इस गैलेक्टिक जंग के परिणाम बदलें और न सिर्फ़ एक बड़ी तबाही टल जाये— बल्कि इस बहाने उसे एक झटके से हज़ारों उन्नत सभ्यताओं के बीच ईश्वर के तौर पर स्थापित होने का मौका भी मिले। उसके चुने सभी मोहरे भयंकर किस्म के संघर्षों में उलझे थे, जहां अब थ्य ओ राॅन का हस्तक्षेप अपना प्रभाव पैदा करता है और चीज़ें बदलनी शुरू होती हैं— लेकिन क्या जंग का वास्तविक परिणाम भी बदल पायेगा?
Ikwodo Chapter 1: The Rise of Thya O Ron
Ikwodo Chapter 2: Planet of the Dead
Ikwodo Chapter 3: Cosmic Insurgents
Ikwodo Chapter 4: The Mysterious World of Lenor
Ikwodo Chapter 7: Battle of the Galaxies
Ikwodo Chapter 8: The Final Apocalypse
Published on October 14, 2025 07:50
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February 8, 2025
ऑपरेशन साल्जर
‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के अंतर्गत ‘कोड ब्लैक पर्ल,’ ‘मिशन ओसावा’ और ‘द अफ़गान हाउंड’ के बाद इस सीरीज का यह चौथा उपन्यास है— और जहां पहले तीन उपन्यास इस सीरीज के मुख्य छः किरदारों के इंट्रोडक्टरी उपन्यास थे… वहीं पहली बार ‘ऑप्रेशन साल्जर’ में जो दो मुख्य किरदार रिपीट हो रहे हैं वह हैं— निहाल सिंह और रूबी भाटिया।
कहानी से पहले इस सीरीज के बारे में कुछ शब्द… अमूमन कोई सीरीज किसी एक किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसके कुछ सहयोगी होते हैं जो उसके साथ ही हर कहानी में अपनी उपस्थिति बनाये रखते हैं— लेकिन ‘स्पाईवर्स’ किसी एक किरदार की सीरीज नहीं है, बल्कि यह एक एजेंसी से सम्बंधित सीरीज हो, जिसकी कल्पना ‘राॅ’ से जुड़ी एक एडीशनल डेस्क के रूप में की गई है, जो एक्सटर्नल अफेयर्स से जुड़े केस देखने वाली एजेंसी है और जिसके लिये बाकायदा ‘जेम्स बाॅण्ड’, ‘ईथन हंट’ और ‘जेसन बोर्न’ के पैटर्न पर एजेंट तैयार किये हैं।
यह इस प्रोग्राम की शुरुआत है और अभी इससे जुड़े ए-बी ग्रेड के सदस्यों की संख्या तेरह है— जिनमें मुख्य हैं संग्राम थापर, आरव आकाश, निहाल सिंह, रूबी भाटिया, रोज़ीना रेयान और सबीना शाह। एजेंसी की कमान राहुल आचार्य नाम के कर्नल रैंक के शख़्स के हाथ है, जिसने यह प्रोग्राम डिजाइन किया है।
मेन परफार्मर के तौर पर सभी छः लोग अलग-अलग मिज़ाज के हैं, अलग तरह का स्टाईल रखते हैं ख़ुद को तराशने के तरीके भी सबके अलग-अलग ही हैं। छोटे-छोटे दर्जनों मिशन उन्हें अकेले करने होते हैं लेकिन कोई बड़ा मिशन हो तो उन्हें युगल के रूप में उस मिशन को पूरा करना होता है, जहां सहयोगी के रूप में ग्रेड बी वाले कुछ सदस्य भी उपलब्ध रहते हैं। ऐसे ही मुख्य मिशनों को ले कर ‘स्पाईवर्स’ की कहानियां कही गई हैं।
ऑप्रेशन साल्जर निहाल और रूबी को दिये गये एक मिशन की कहानी है— जिसके पीछे उन्हें साउथ चायना सी तक की यात्रा करनी पड़ती है और फिर समंदर से ले कर इंडोनेशिया के जावा, सुमात्रा और मलेशिया की ज़मीन पर यह कहानी पूरी होती है।
अब जैसा इस सीरीज का मिज़ाज है कि इससे विषय जिओ पाॅलिटिक्स से जुड़े होते हैं— तो ऑप्रेशन साल्जर का विषय भी ऐसी ही राजनीति से जुड़ा है जो एक अरसे से साउथ चायना सी में उथल-पुथल का कारण बनी हुई है। इस पूरे इलाके में चीन अपना वर्चस्व चाहता है जिससे इस हिस्से से सम्बंधित कुछ देश बुरी तरह असहज होते हैं, और उनका फायदा उठाने, उन्हें अपने फेवर में करने अमेरिका अपना दखल इस क्षेत्र में बढ़ा देता है— जिससे स्थितियां और भी खराब होती हैं।
प्रस्तुत कहानी के केन्द्र में एक लग्ज़री क्रूज़ है जो एलीट वर्ग के लिये एक सी एडवेंचर है। यहां उनके हिसाब से ही सारी व्यवस्थाएं रहती हैं और उनके स्तर के टूर ऑर्गेनाइज़ किये जाते हैं— जिससे आसपास के देशों के अहम लोग तो ऐशो आसाइश के लिये उस पर पहुंचते ही हैं, बाहर के देशों के भी कुछ महत्वपूर्ण लोग पहुंच जाते हैं… जिनमें भारत से सम्बंधित एक राजनीतिक हस्ती भी थी, जो अपने गुप्त दौरे पर वहां मौज-मस्ती करने पहुंची थी।
क्रूज़ जब रियाऊ आइलैंड्स से हो कर मीरी और मनीला की तरफ़ जा रहा था, तब एक रात अचानक उसे हाईजैक कर लिया जाता है और सारे अति-विशिष्ट लोग बंधक बना लिये जाते हैं। अब निहाल और रूबी को अपने लोगों की सुरक्षित वापसी का मिशन दिया जाता है, जिसके लिये वे साउथ चायना सी पहुंचते हैं और लोकल सपोर्ट से अपना काम शुरू करते हैं।
लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, इस पूरे कांड को ले कर बनने वाली थ्योरीज स्विच होना शुरू हो जाती हैं… कभी लगता है कि इस हाईजैकिंग का उद्देश्य केवल धन उगाही थी, कभी लगता है कि यह साउथ चायना सी की राजनीति से जुड़ी रस्साकशी है। कभी लगता है कि इस कांड की जड़ में अमेरिका है तो कभी लगता है कि इस कांड के पीछे चीन है।
तो आख़िर क्या था इस हाईजैकिंग का उद्देश्य? और अगर यह वाक़ई साउथ चायना सी की राजनीति से जुड़ा था तो इसके पीछे असल में कौन था? भारत इस जगह बाहरी खिलाड़ी था और उसके भेजे एजेंट्स का काम केवल अपने लोगों की सुरक्षित वापसी था, लेकिन क्या ऐसा हो पाया?
Operation Saaljar
Operation Saaljar (Spyverse Book 4)
कहानी से पहले इस सीरीज के बारे में कुछ शब्द… अमूमन कोई सीरीज किसी एक किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसके कुछ सहयोगी होते हैं जो उसके साथ ही हर कहानी में अपनी उपस्थिति बनाये रखते हैं— लेकिन ‘स्पाईवर्स’ किसी एक किरदार की सीरीज नहीं है, बल्कि यह एक एजेंसी से सम्बंधित सीरीज हो, जिसकी कल्पना ‘राॅ’ से जुड़ी एक एडीशनल डेस्क के रूप में की गई है, जो एक्सटर्नल अफेयर्स से जुड़े केस देखने वाली एजेंसी है और जिसके लिये बाकायदा ‘जेम्स बाॅण्ड’, ‘ईथन हंट’ और ‘जेसन बोर्न’ के पैटर्न पर एजेंट तैयार किये हैं।
यह इस प्रोग्राम की शुरुआत है और अभी इससे जुड़े ए-बी ग्रेड के सदस्यों की संख्या तेरह है— जिनमें मुख्य हैं संग्राम थापर, आरव आकाश, निहाल सिंह, रूबी भाटिया, रोज़ीना रेयान और सबीना शाह। एजेंसी की कमान राहुल आचार्य नाम के कर्नल रैंक के शख़्स के हाथ है, जिसने यह प्रोग्राम डिजाइन किया है।
मेन परफार्मर के तौर पर सभी छः लोग अलग-अलग मिज़ाज के हैं, अलग तरह का स्टाईल रखते हैं ख़ुद को तराशने के तरीके भी सबके अलग-अलग ही हैं। छोटे-छोटे दर्जनों मिशन उन्हें अकेले करने होते हैं लेकिन कोई बड़ा मिशन हो तो उन्हें युगल के रूप में उस मिशन को पूरा करना होता है, जहां सहयोगी के रूप में ग्रेड बी वाले कुछ सदस्य भी उपलब्ध रहते हैं। ऐसे ही मुख्य मिशनों को ले कर ‘स्पाईवर्स’ की कहानियां कही गई हैं।
ऑप्रेशन साल्जर निहाल और रूबी को दिये गये एक मिशन की कहानी है— जिसके पीछे उन्हें साउथ चायना सी तक की यात्रा करनी पड़ती है और फिर समंदर से ले कर इंडोनेशिया के जावा, सुमात्रा और मलेशिया की ज़मीन पर यह कहानी पूरी होती है।
अब जैसा इस सीरीज का मिज़ाज है कि इससे विषय जिओ पाॅलिटिक्स से जुड़े होते हैं— तो ऑप्रेशन साल्जर का विषय भी ऐसी ही राजनीति से जुड़ा है जो एक अरसे से साउथ चायना सी में उथल-पुथल का कारण बनी हुई है। इस पूरे इलाके में चीन अपना वर्चस्व चाहता है जिससे इस हिस्से से सम्बंधित कुछ देश बुरी तरह असहज होते हैं, और उनका फायदा उठाने, उन्हें अपने फेवर में करने अमेरिका अपना दखल इस क्षेत्र में बढ़ा देता है— जिससे स्थितियां और भी खराब होती हैं।
प्रस्तुत कहानी के केन्द्र में एक लग्ज़री क्रूज़ है जो एलीट वर्ग के लिये एक सी एडवेंचर है। यहां उनके हिसाब से ही सारी व्यवस्थाएं रहती हैं और उनके स्तर के टूर ऑर्गेनाइज़ किये जाते हैं— जिससे आसपास के देशों के अहम लोग तो ऐशो आसाइश के लिये उस पर पहुंचते ही हैं, बाहर के देशों के भी कुछ महत्वपूर्ण लोग पहुंच जाते हैं… जिनमें भारत से सम्बंधित एक राजनीतिक हस्ती भी थी, जो अपने गुप्त दौरे पर वहां मौज-मस्ती करने पहुंची थी।
क्रूज़ जब रियाऊ आइलैंड्स से हो कर मीरी और मनीला की तरफ़ जा रहा था, तब एक रात अचानक उसे हाईजैक कर लिया जाता है और सारे अति-विशिष्ट लोग बंधक बना लिये जाते हैं। अब निहाल और रूबी को अपने लोगों की सुरक्षित वापसी का मिशन दिया जाता है, जिसके लिये वे साउथ चायना सी पहुंचते हैं और लोकल सपोर्ट से अपना काम शुरू करते हैं।
लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, इस पूरे कांड को ले कर बनने वाली थ्योरीज स्विच होना शुरू हो जाती हैं… कभी लगता है कि इस हाईजैकिंग का उद्देश्य केवल धन उगाही थी, कभी लगता है कि यह साउथ चायना सी की राजनीति से जुड़ी रस्साकशी है। कभी लगता है कि इस कांड की जड़ में अमेरिका है तो कभी लगता है कि इस कांड के पीछे चीन है।
तो आख़िर क्या था इस हाईजैकिंग का उद्देश्य? और अगर यह वाक़ई साउथ चायना सी की राजनीति से जुड़ा था तो इसके पीछे असल में कौन था? भारत इस जगह बाहरी खिलाड़ी था और उसके भेजे एजेंट्स का काम केवल अपने लोगों की सुरक्षित वापसी था, लेकिन क्या ऐसा हो पाया?
Operation Saaljar
Operation Saaljar (Spyverse Book 4)
Published on February 08, 2025 19:33
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ओरका केरास्टा
‘क्राईम फिक्शन विद डेविड फ्रांसिस’ में यह क्रमानुसार चौथा उपन्यास है, भले क्रम में दसवें नंबर का ‘डेढ़ सयानी’ पहले प्रकाशित हुआ हो और अब तक इस सीरीज के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हों— ‘ओरका केरास्टा’ उस वर्तमान डेविड के तैयार होने की प्रक्रिया की चौथी कड़ी है, जिसे लगता है कि अब वह पूरी तरह पक कर एक ऐसा शाहकार हो चुका है कि जिसमें दुनिया भर के जासूसी किरदारों का थोड़ा-थोड़ा अंश मौजूद है।
डेविड के बारे में जैसा कि पहले बताया गया है कि यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है— जिसके पिता आइसलैंड के थे और माँ मुंबई की महाराष्ट्रियन फैमिली से। जिसे बचपन से ही फिक्शनल जासूसी किरदारों से ऐसा मोह था कि वह केबल और मोबाइल के दौर में भी ऐसी किताबें पढ़ता था और फिल्में देखता था। भारत से ले कर विश्व के दूसरे हिस्सों में लिखे गये ऐसे किरदारों को ख़ुद में उतारना चाहता था और इसके लिये उसने अपने पढ़ाई-लिखाई के दौर में ही हर तरह की प्रापर ट्रेनिंग भी ली थी, जो ऐसे किसी जासूस के लिये ज़रूरी होती है।
फिर भी, यह कोई उसका अकेला ख़ब्त नहीं था… वह एक पक्का प्रकृति प्रेमी और यायावर भी था। वह इसी एक जीवन में दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता था। उसका एस्थेनिक सेंस इतना ज़बर्दस्त था कि वह वर्स्ट से वर्स्ट कंडीशन में भी एक सौंदर्य ढूंढ लेता था। उसका मानना था कि बुरा या बकवास इंसान के बनाये में हो सकता है। अगर प्रकृति ने कुछ रचा है तो वह अनुपम है— बस उसकी ख़ूबसूरती देखने वाली आँखें होनी चाहिये।
उसका तीसरा शौक था लड़की— उसे अपने आप को संसार का महानतम ठरकी कहने से कोई गुरेज़ नहीं था। उसकी यह विश थी कि वह इसी एक जीवन में इस दुनिया के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर नस्ल की दोशेजा को भोग ले— जो उसके लिये माँ की उम्र की न हो, और बहन या बेटी के खांचे में फिट न हो बैठती हो… लेकिन उसके लिये कनसेंट सर्वोपरि था। सहमति के संसर्ग के सिवा उसकी और किसी तरह के संसर्ग में कोई रूचि नहीं थी।
इन बातों के अतिरिक्त उसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी था कि अपने शौक के मद्देनज़र ‘अनालैसिस’ को प्राथमिकता देते हुए उसने अपने अंदर अपने एक आभासी रूप का विस्तार किया था, जिसे वह ‘मिनी मी’ के रूप में सम्बोधित करता था। यह फीचर न सिर्फ़ अपने आप में विचार-विमर्श करते किसी नतीजे पर पहुंचने के काम आता था— बल्कि इसी आपसी विचार-विमर्श से उसका मनोरंजन भी होता रहता था। उसका यह आभासी रूप लड़की के मामले में उससे एक क़दम आगे था। जो बातें वह ख़ुद शाब्दिक आवरणों में लपेट कर कहता था— ‘मिनी मी’ खुल के कहना पसंद करता था।
‘ओरका केरास्टा’ कहानी है डेविड के अपने पैतृक रिश्तेदारों के पास जाने के दौरान घटी एक अहम घटना की— जो उसकी नज़र में लिखी जाने लायक एक कांड की संज्ञा पा सकी। इस कहानी की पृष्ठभूमि नार्वे है तो जगहों से ले कर बाकी किरदारों के नाम थोड़े अटपटे लग सकते हैं, लेकिन यह नार्वेजियन के हिसाब से हैं— जो कि कहानी को वास्तविकता का पुट देने के लिये ज़रूरी थे।
कहानी की शुरुआत डेविड के अपनी कज़िन के साथ उत्तरी नार्वे की एक बर्फ़ीली जगह पर कैम्पिंग करने से होती है— जहां उसके सामने एक आदमी मौसम का शिकार हो कर मर जाता है और उसके लिये एक चाबी और दो शब्द छोड़ जाता है… ओरका केरास्टा! अब अपनी सहजवृत्ति के चलते उसकी दिलचस्पी इस बात में हो जाती है कि उसे मृतक के जायज़ वारिस तक यह चीज़ें पहुंचा देनी चाहिये— शायद वह उनके लिये बड़े काम का हो। आख़िर मरता हुआ आदमी कुछ खास ही बोलता है।
लेकिन वारिस था कौन और कहां? पता चलता है कि जहां वह मरा, वहां बस एक विजिट पर था और उसका असली ठिकाना ओस्लो में था— तो वहीं वारिस भी थे। अब वारिसों में या तो वह वह बीवी और बच्चा था, जिसमें बीवी अपने पति से नफ़रत करती थी और बच्चा मेंटली चैलेंज्ड था, किसी विरासत को ढोने लायक नहीं था— या फिर एक के बाद एक कर के आठ सामने आने लगे ऐसे लोग थे, जो अपने को मृतक के ‘छोड़े हुए’ का हक़दार बताते थे… लेकिन वे एक दूसरे के दुश्मन थे और जिन्हें एक दूसरे की जान लेने से भी गुरेज़ नहीं था।
डेविड को इतना समझ में आ जाता है कि यह सिलसिला शराफ़त वाला तो नहीं था, बल्कि ऐसा कुछ तो था जो अपराध से जुड़ा हो और यह तो उसकी गिज़ा थी— उसकी रूह की तस्कीन थी। उसकी ज़िंदगी जिन तीन पिलर पर टिकी थी, उनमें से एक पिलर थी। वह दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाने का ख़्वाहा था— अब कुछ अपराधी उसके सामने थे तो वह पीछे कैसे हट सकता था।
भले उसे प्रेरित करने के लिये इस केस में कोई ‘डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ न हो, जो उसकी पहली प्राथमिकता होती थी और जिसके बिना उसकी हालत बाल कटे सैमसन जैसी हो जाती थी। यह उसकी अब तक की ज़िंदगी का पहला ऐसा कांड था, जहां उसने बिना किसी डैमसेल इन डिस्ट्रेस के ही दूसरे के फटे में टांग अड़ाई हो। अपने फटे में टांग अड़ाना और बात थी, जो न्यूयार्क से ले कर अलास्का तक अड़ानी पड़ी थी— जहां से उसके इस हंगामाखेज़ जीवन की शुरुआत हुई थी।
अब जब वह उन लोगों के पीछे पड़ता है तो एक के बाद एक चीज़ें सामने आती जाती हैं— और अंत में एक ख़ुशहाल और सम्पन्न समाज से जुड़े एक वर्ग से जुड़ा एक घिनौना राज़ खुलता है… जहां अपनी-अपनी फैंटेसीज को पूरा करने के पीछे नैतिक-अनैतिक की बाधाएं ही ख़त्म कर दी गई थीं।
Orka Kaerasta
Orka Kaerasta (Crime Fiction With David Francis Book 4)
डेविड के बारे में जैसा कि पहले बताया गया है कि यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है— जिसके पिता आइसलैंड के थे और माँ मुंबई की महाराष्ट्रियन फैमिली से। जिसे बचपन से ही फिक्शनल जासूसी किरदारों से ऐसा मोह था कि वह केबल और मोबाइल के दौर में भी ऐसी किताबें पढ़ता था और फिल्में देखता था। भारत से ले कर विश्व के दूसरे हिस्सों में लिखे गये ऐसे किरदारों को ख़ुद में उतारना चाहता था और इसके लिये उसने अपने पढ़ाई-लिखाई के दौर में ही हर तरह की प्रापर ट्रेनिंग भी ली थी, जो ऐसे किसी जासूस के लिये ज़रूरी होती है।
फिर भी, यह कोई उसका अकेला ख़ब्त नहीं था… वह एक पक्का प्रकृति प्रेमी और यायावर भी था। वह इसी एक जीवन में दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता था। उसका एस्थेनिक सेंस इतना ज़बर्दस्त था कि वह वर्स्ट से वर्स्ट कंडीशन में भी एक सौंदर्य ढूंढ लेता था। उसका मानना था कि बुरा या बकवास इंसान के बनाये में हो सकता है। अगर प्रकृति ने कुछ रचा है तो वह अनुपम है— बस उसकी ख़ूबसूरती देखने वाली आँखें होनी चाहिये।
उसका तीसरा शौक था लड़की— उसे अपने आप को संसार का महानतम ठरकी कहने से कोई गुरेज़ नहीं था। उसकी यह विश थी कि वह इसी एक जीवन में इस दुनिया के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर नस्ल की दोशेजा को भोग ले— जो उसके लिये माँ की उम्र की न हो, और बहन या बेटी के खांचे में फिट न हो बैठती हो… लेकिन उसके लिये कनसेंट सर्वोपरि था। सहमति के संसर्ग के सिवा उसकी और किसी तरह के संसर्ग में कोई रूचि नहीं थी।
इन बातों के अतिरिक्त उसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी था कि अपने शौक के मद्देनज़र ‘अनालैसिस’ को प्राथमिकता देते हुए उसने अपने अंदर अपने एक आभासी रूप का विस्तार किया था, जिसे वह ‘मिनी मी’ के रूप में सम्बोधित करता था। यह फीचर न सिर्फ़ अपने आप में विचार-विमर्श करते किसी नतीजे पर पहुंचने के काम आता था— बल्कि इसी आपसी विचार-विमर्श से उसका मनोरंजन भी होता रहता था। उसका यह आभासी रूप लड़की के मामले में उससे एक क़दम आगे था। जो बातें वह ख़ुद शाब्दिक आवरणों में लपेट कर कहता था— ‘मिनी मी’ खुल के कहना पसंद करता था।
‘ओरका केरास्टा’ कहानी है डेविड के अपने पैतृक रिश्तेदारों के पास जाने के दौरान घटी एक अहम घटना की— जो उसकी नज़र में लिखी जाने लायक एक कांड की संज्ञा पा सकी। इस कहानी की पृष्ठभूमि नार्वे है तो जगहों से ले कर बाकी किरदारों के नाम थोड़े अटपटे लग सकते हैं, लेकिन यह नार्वेजियन के हिसाब से हैं— जो कि कहानी को वास्तविकता का पुट देने के लिये ज़रूरी थे।
कहानी की शुरुआत डेविड के अपनी कज़िन के साथ उत्तरी नार्वे की एक बर्फ़ीली जगह पर कैम्पिंग करने से होती है— जहां उसके सामने एक आदमी मौसम का शिकार हो कर मर जाता है और उसके लिये एक चाबी और दो शब्द छोड़ जाता है… ओरका केरास्टा! अब अपनी सहजवृत्ति के चलते उसकी दिलचस्पी इस बात में हो जाती है कि उसे मृतक के जायज़ वारिस तक यह चीज़ें पहुंचा देनी चाहिये— शायद वह उनके लिये बड़े काम का हो। आख़िर मरता हुआ आदमी कुछ खास ही बोलता है।
लेकिन वारिस था कौन और कहां? पता चलता है कि जहां वह मरा, वहां बस एक विजिट पर था और उसका असली ठिकाना ओस्लो में था— तो वहीं वारिस भी थे। अब वारिसों में या तो वह वह बीवी और बच्चा था, जिसमें बीवी अपने पति से नफ़रत करती थी और बच्चा मेंटली चैलेंज्ड था, किसी विरासत को ढोने लायक नहीं था— या फिर एक के बाद एक कर के आठ सामने आने लगे ऐसे लोग थे, जो अपने को मृतक के ‘छोड़े हुए’ का हक़दार बताते थे… लेकिन वे एक दूसरे के दुश्मन थे और जिन्हें एक दूसरे की जान लेने से भी गुरेज़ नहीं था।
डेविड को इतना समझ में आ जाता है कि यह सिलसिला शराफ़त वाला तो नहीं था, बल्कि ऐसा कुछ तो था जो अपराध से जुड़ा हो और यह तो उसकी गिज़ा थी— उसकी रूह की तस्कीन थी। उसकी ज़िंदगी जिन तीन पिलर पर टिकी थी, उनमें से एक पिलर थी। वह दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाने का ख़्वाहा था— अब कुछ अपराधी उसके सामने थे तो वह पीछे कैसे हट सकता था।
भले उसे प्रेरित करने के लिये इस केस में कोई ‘डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ न हो, जो उसकी पहली प्राथमिकता होती थी और जिसके बिना उसकी हालत बाल कटे सैमसन जैसी हो जाती थी। यह उसकी अब तक की ज़िंदगी का पहला ऐसा कांड था, जहां उसने बिना किसी डैमसेल इन डिस्ट्रेस के ही दूसरे के फटे में टांग अड़ाई हो। अपने फटे में टांग अड़ाना और बात थी, जो न्यूयार्क से ले कर अलास्का तक अड़ानी पड़ी थी— जहां से उसके इस हंगामाखेज़ जीवन की शुरुआत हुई थी।
अब जब वह उन लोगों के पीछे पड़ता है तो एक के बाद एक चीज़ें सामने आती जाती हैं— और अंत में एक ख़ुशहाल और सम्पन्न समाज से जुड़े एक वर्ग से जुड़ा एक घिनौना राज़ खुलता है… जहां अपनी-अपनी फैंटेसीज को पूरा करने के पीछे नैतिक-अनैतिक की बाधाएं ही ख़त्म कर दी गई थीं।
Orka Kaerasta
Orka Kaerasta (Crime Fiction With David Francis Book 4)
Published on February 08, 2025 19:32
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February 3, 2025
विलाद
सत्तर हज़ार साल पहले… धरती का पहला महायुद्ध हुआ था— जो था पृथ्वी के बाहर से आने वाली दो एलियन प्रजातियों के बीच, जिसमें उन्होंने धरती पर पनप रही और विकसित हो चुकी हमंस और सैटंस की प्रजातियों को भी उस जंग में शामिल कर लिया था। ओरियन की टाईमलाईन से तीस हज़ार साल पहले की कहानी।
कहानी इक्वोडियंस द्वारा पृथ्वी पर जीवन के सृजन की, जीवन को डिजाइन करने और उसे परिष्कृत करने की और फिर अपनी गाइडेंस में उसे विकसित करने की। कहानी सैटंस की विकास यात्रा की, जो उन्होंने स्थाई बस्ती बसाने से ले कर पहला बड़ा राज्य बनाने तक तय की थी। कहानी हमंस की, जिन्होंने जंगल से निकल कर बाहरी दुनिया देखी, ग़ुलाम बने, शोषण और अत्याचार झेला और फिर एक दिन उसके खिलाफ़ खड़ी भी हुए।
कहानी उस दौर की, जहां एक साथ रह रहे, पनप रहे हमंस और सैटंस धीरे-धीरे उस मोड़ पर पहुंच जाते हैं— कि जहां उनका एक साथ सर्वाइव कर पाना असंभव हो जाता है और वे दुश्मन की तरह एक दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं… एक दूसरे को मिटाने के लिये। जिसका अंतिम फैसला उस अलगाव के रूप में सामने आता है जिसने भविष्य में उनके एक दूसरे से बिलकुल अलग, पनपने और विकसित होने की नींव रखी।
विलाद की कहानी ओरियन में वर्णित उस दौर की है, जब शैतानों का भेजा वह बायोशिप धरती पर आया था और फिर एक तरफ़ उसे रोकने आसमान से इक्वोडियंस के रूप में फरिश्ते आये थे तो दूसरी तरफ़ उसे एक्टिवेट करने हेलब्रीड्स के रूप में शैतान… और सैटंस के इतिहास में दर्ज वह महायुद्ध हुआ था जो फ़रिश्तों और शैतानों के मध्य हुआ था और जिसमें इक्वोडियंस ने सैटंस और हमंस को भी अपने साथ शामिल किया था।
कहानी बताती है कि पृथ्वी पर जीवन किस तरह परिष्कृत हुआ था, कैसे बुद्धिमान प्रजातियां अस्तित्त्व में आई थीं, कैसे उनका विकास हुआ था, कैसे उनके बीच आपसी संघर्षों का दौर शुरू हुआ था और कैसे सर्वाइवल के पैमाने पर कमज़ोर रही प्रजातियां एक के बाद एक कर के विलुप्त होती चली गई थीं। कैसे उसी दौर में सत्तर हज़ार साल बाद के उस भविष्य की नींव पड़ी थी, जिसने आगे पूरी पृथ्वी को ही ट्रांसफार्म कर दिया था।
विलाद की कहानी प्रमुखता से दो तरह के संघर्षों को उकेरती है। एक संघर्ष है इक्वोडियंस के सहयोग के चलते अपनी विकास यात्रा में आगे चल रहे सैटंस और उनके बीच जानवरों की तरह पनप रहे हमंस के बीच का— जो धीरे-धीरे अपनी आत्म-चेतना को जगाते हैं, अपने आत्मविश्वास को अर्जित करते हैं और फिर एक दिन अपने हक़ के लिये खड़े हो जाते हैं सैटंस के सामने। जहां पहले से ही उनके लिये वे बाग़ी सैटंस हालात को मुश्किल बनाये थे— जो उन्हें कीड़े-मकोड़े से ज्यादा समझने को तैयार नहीं थे।
वहीं दूसरा संघर्ष है पृथ्वी के बाहर से आने वाली दोनों एलियन प्रजातियों के बीच का… जिसमें जहां शैतान कहे जाने वाले हेलब्रीड्स कई इंसानों को अपना मोहरा बना कर उस बायोशिप की खोज में लगे थे, जो उनकी प्रापर्टी था और उस भविष्य के ट्रांसफार्मेशन का ज़िम्मेदार था और फ़रिश्ते कहे जाने वाले इक्वोडियंस पूरी धरती पर भटकते अपने लोगों को तलाशने और मेडिटेरेनियन के आसपास पनप रहे सैटंस और हमंस को एक करने में लगे थे— कि वे हेलब्रीड्स के खिलाफ़ पृथ्वी के अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी जंग में उन्हें अपना सहयोगी बना सकें।
कहानी का अंतिम मरहला वह नर्क है जो हेलब्रीड्स ने मध्य धरती पर विकसित कर रखा है— और जहां वे सभी को बुला कर अपने सर्वाइवल का युद्ध लड़ना चाहते हैं। यह वह जगह थी, जहां पहुंच कर कथा नायक का ड्रैगन तक बेबस हो कर रह जाता है और धरती का कोई भी जीव एक-एक सांस के लिये संघर्ष करता है। क्या उस नर्क में पहुंच कर इक्वोडियंस, सैटंस और हमंस उनसे लड़ पायेंगे? क्या वे उन शैतानों को रोक पायेंगे— जो किसी भी तरह उसी बायोशिप को एक्टिवेट करना चाहते हैं? अंतिम रूप से क्या होगा इन संघर्षों का परिणाम?
Vilaad Chapter 1: Dastaar
Vilaad Chapter 2: Defiant
Vilaad Chapter 3: Migets
Vilaad Chapter 4: La Perinjo
कहानी इक्वोडियंस द्वारा पृथ्वी पर जीवन के सृजन की, जीवन को डिजाइन करने और उसे परिष्कृत करने की और फिर अपनी गाइडेंस में उसे विकसित करने की। कहानी सैटंस की विकास यात्रा की, जो उन्होंने स्थाई बस्ती बसाने से ले कर पहला बड़ा राज्य बनाने तक तय की थी। कहानी हमंस की, जिन्होंने जंगल से निकल कर बाहरी दुनिया देखी, ग़ुलाम बने, शोषण और अत्याचार झेला और फिर एक दिन उसके खिलाफ़ खड़ी भी हुए।
कहानी उस दौर की, जहां एक साथ रह रहे, पनप रहे हमंस और सैटंस धीरे-धीरे उस मोड़ पर पहुंच जाते हैं— कि जहां उनका एक साथ सर्वाइव कर पाना असंभव हो जाता है और वे दुश्मन की तरह एक दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं… एक दूसरे को मिटाने के लिये। जिसका अंतिम फैसला उस अलगाव के रूप में सामने आता है जिसने भविष्य में उनके एक दूसरे से बिलकुल अलग, पनपने और विकसित होने की नींव रखी।
विलाद की कहानी ओरियन में वर्णित उस दौर की है, जब शैतानों का भेजा वह बायोशिप धरती पर आया था और फिर एक तरफ़ उसे रोकने आसमान से इक्वोडियंस के रूप में फरिश्ते आये थे तो दूसरी तरफ़ उसे एक्टिवेट करने हेलब्रीड्स के रूप में शैतान… और सैटंस के इतिहास में दर्ज वह महायुद्ध हुआ था जो फ़रिश्तों और शैतानों के मध्य हुआ था और जिसमें इक्वोडियंस ने सैटंस और हमंस को भी अपने साथ शामिल किया था।
कहानी बताती है कि पृथ्वी पर जीवन किस तरह परिष्कृत हुआ था, कैसे बुद्धिमान प्रजातियां अस्तित्त्व में आई थीं, कैसे उनका विकास हुआ था, कैसे उनके बीच आपसी संघर्षों का दौर शुरू हुआ था और कैसे सर्वाइवल के पैमाने पर कमज़ोर रही प्रजातियां एक के बाद एक कर के विलुप्त होती चली गई थीं। कैसे उसी दौर में सत्तर हज़ार साल बाद के उस भविष्य की नींव पड़ी थी, जिसने आगे पूरी पृथ्वी को ही ट्रांसफार्म कर दिया था।
विलाद की कहानी प्रमुखता से दो तरह के संघर्षों को उकेरती है। एक संघर्ष है इक्वोडियंस के सहयोग के चलते अपनी विकास यात्रा में आगे चल रहे सैटंस और उनके बीच जानवरों की तरह पनप रहे हमंस के बीच का— जो धीरे-धीरे अपनी आत्म-चेतना को जगाते हैं, अपने आत्मविश्वास को अर्जित करते हैं और फिर एक दिन अपने हक़ के लिये खड़े हो जाते हैं सैटंस के सामने। जहां पहले से ही उनके लिये वे बाग़ी सैटंस हालात को मुश्किल बनाये थे— जो उन्हें कीड़े-मकोड़े से ज्यादा समझने को तैयार नहीं थे।
वहीं दूसरा संघर्ष है पृथ्वी के बाहर से आने वाली दोनों एलियन प्रजातियों के बीच का… जिसमें जहां शैतान कहे जाने वाले हेलब्रीड्स कई इंसानों को अपना मोहरा बना कर उस बायोशिप की खोज में लगे थे, जो उनकी प्रापर्टी था और उस भविष्य के ट्रांसफार्मेशन का ज़िम्मेदार था और फ़रिश्ते कहे जाने वाले इक्वोडियंस पूरी धरती पर भटकते अपने लोगों को तलाशने और मेडिटेरेनियन के आसपास पनप रहे सैटंस और हमंस को एक करने में लगे थे— कि वे हेलब्रीड्स के खिलाफ़ पृथ्वी के अब तक के इतिहास की सबसे बड़ी जंग में उन्हें अपना सहयोगी बना सकें।
कहानी का अंतिम मरहला वह नर्क है जो हेलब्रीड्स ने मध्य धरती पर विकसित कर रखा है— और जहां वे सभी को बुला कर अपने सर्वाइवल का युद्ध लड़ना चाहते हैं। यह वह जगह थी, जहां पहुंच कर कथा नायक का ड्रैगन तक बेबस हो कर रह जाता है और धरती का कोई भी जीव एक-एक सांस के लिये संघर्ष करता है। क्या उस नर्क में पहुंच कर इक्वोडियंस, सैटंस और हमंस उनसे लड़ पायेंगे? क्या वे उन शैतानों को रोक पायेंगे— जो किसी भी तरह उसी बायोशिप को एक्टिवेट करना चाहते हैं? अंतिम रूप से क्या होगा इन संघर्षों का परिणाम?
Vilaad Chapter 1: Dastaar
Vilaad Chapter 2: Defiant
Vilaad Chapter 3: Migets
Vilaad Chapter 4: La Perinjo
Published on February 03, 2025 21:17
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ओरियन
यह एक पंद्रह भाग लंबी कहानी है— जिसकी शुरुआत एक ऐसी घटना से होती है, जो हर किसी का दिमाग़ नचा कर रख देती है। एथेंस के लोगों को क्रिसमस की अगली सुबह बीच चौराहे पर एक ऐसा कटा हुआ पंजा मिलता है, जो ज़िंदा था— लेकिन इस दुनिया के किसी जीव का नहीं था और उसका आकार बताता था कि वह किसी जायंट का था, जो इस दुनिया का नहीं हो सकता।
घटना के कुछ वक़्त बाद ही कहानी के नायक को अपनी दादी से और अपने घर से कुछ ऐसे सबूत मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि उसके दादा के पिता को उसके जन्मने से ले कर जवान होने तक की सारी घटनाओं का पता था और जो उसके लिये कुछ ज़रूरी इंसट्रक्शंस छोड़ गये थे— जिनमें से एक था बेलिज्रेंट ब्लूज़ के दिये एक ऑनलाइन टास्क को पूरा करना और उनसे जुड़ना।
यहीं से इस पंद्रह भाग लंबी कहानी की शुरुआत होती है और उन्हें पृथ्वी की एक्चुअल टाईमलाईन दिखाई जाती है, जो उनके समय से काफ़ी आगे की थी और उन्हें पता चलता है कि भविष्य में पृथ्वी पूरी तरह ट्रांसफार्म हो गई थी, जहां पृथ्वी का मौजूदा सभी तरह का जीवन एक्सटिंक्ट हो चुका था। पृथ्वी के उस निश्चित भविष्य को बदलने और इसके ज़िम्मेदार रहे अतीत में आये एक एरर को फिक्स करने के लिये इक्कीसव लोगों को एक मिशन मिलता है— अतीत में चालीस हज़ार साल पहले के समय में जाने का और उस प्राब्लम की जड़ को ढूंढ कर उसे ख़त्म करने का… जिसने बाद में दुनिया ही बदल दी थी।
इस मुख्य मिशन पर भेजने से पहले उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से तैयार करने के लिये दो दूसरे टास्क भी दिये जाते हैं— जिनमें एक टास्क होता है पांच सौ साल पहले के कैनरी आइलैंड पर स्पेनियों के हमले से ठीक पहले सर्वाइव करना और दूसरा टास्क होता है करीब नब्बे साल पहले हिटलर के उभार के वक़्त के आस्ट्रिया में जा कर एक ऐसी गुत्थी को सुलझाना, जिससे भविष्य के कुछ राज़ भी जुड़े थे और जिससे जुड़ा था कहानी के नायक ख़ुद ओरियन का वजूद।
एक लंबे और जानलेवा संघर्ष के लिये तैयार हो कर जब वे चालीस हज़ार साल पहले के दौर में पहुंचते हैं तो अपनी तलाश के सिलसिले में उन्हें, अतीत में विलुप्त हो चुकी और इतिहास से मिट चुकी, मेडिटेरेनियन और अटलांटिक के आसपास पनप रही दो अलग-अलग प्रजातियों हमंस और सैटंस के बीच खपना पड़ता है— जिनके विकास की स्टेज अलग-अलग थी। भूमध्यसागर के आसपास पनप रहे हमंस जहां अभी बाद के इंसानी इतिहास के हिसाब से चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी के दौर में जी रहे थे तो अटलांटिक के आसपास पनपते सैटंस उन्नीसवीं शताब्दी के दौर वाले विकास तक पहुंच चुके थे।
दोनों सभ्यताओं के अपने-अपने संघर्ष थे— अपनी-अपनी लड़ाईयां थीं, जिनमें अनचाहे ही भविष्य से गये उन सभी लोगों को जूझना पड़ता है… क्योंकि तब के लोगों में स्थापित होने और बिना ज्यादा ख़तरा उठाये अपने मिशन को पूरा करने की यह पहली और ज़रूरी शर्त थी। वहां उस दौर में उनका सामना होता है उन तमाम जीवों से, जिन्हें वे दुनिया भर की अलग-अलग माइथालाॅजी के ज़रिये जानते तो थे, मगर जिन्हें वे मानव मन की कल्पना भर समझते थे। वहां वे यह समझ पाते हैं कि वे कभी अतीत में रहे वास्तविक जीव थे, लेकिन बाद में विलुप्त हो गये थे और जिनकी कहानियां भर बाद के लोगों तक पहुंची थीं।
वहां उन्हें यह भी पता चलता है कि भविष्य की जिस समस्या की जड़ें वे उस दौर में ढूंढने पहुंचे थे, वे अतीत में और हज़ारों साल पीछे थीं— जहां उसी बात के पीछे एक महायुद्ध तक हो चुका था, जिसने उस दौर की पृथ्वी की लगभग आबादी ख़त्म कर दी थी। वहां तब के लोगों के बीच जूझते उन्हें और भी तमाम ऐसे राज पता चलते हैं, जो उनका दिमाग़ हिला कर रख देते हैं और उन्हें कई ऐसी बातें पता चलती हैं— जिन्हें अपने आधुनिक दौर के ज्ञान-विज्ञान के भरोसे वे बस कल्पना भर समझते थे।
फिर उनकी मुश्किल तब दोगुनी हो जाती है, जब पता चलता है कि जिस भविष्य बदलने वे आये थे, उसे रोकने ख़ुद उस भविष्य के जीव भी वहीं पहुंच गये थे और तब उन्हें धरती के दूसरे महायुद्ध में शामिल होना पड़ता है— जहां लाशों के अंबार खड़े हो जाते हैं।
एक ऐसी दुनिया की कहानी… जो पृथ्वी का चालीस हज़ार साल पहले का अतीत थी। जहां इंसान जैसी प्रजाति भी सभ्य हो कर राज्य बनाने की हालत में पहुंच चकी थी तो इंसान से बिलकुल अलग एक दूसरी प्रजाति सैटंस भी मौजूद थी— जो देश और शहर बनाने तक की विकास यात्रा तय कर चुके थे और जिन्हें उसी दौर में विलुप्त होने के चालीस हज़ार साल बाद एलियंस के तौर पर जाना गया था। जहां अनुनाकी थे, जहां नेफिलिम थे, जहां साइक्लाॅप्स थे… और जहां ड्रैगन भी थे।
Orion Chapter 1: Frames of Time
Orion Chapter 2: The Mysterious shadow (ओरियन)
Orion 3: Battle of Daggor Dom
Orion Chapter 4: After the War (ओरियन)
Orion Chapter 5: The Covenant (ओरियन)
Orion Chapter 6: Etadora Rim (ओरियन)
Orion Chapter 7: Nohe Abaaza (ओरियन)
Orion Chapter 8: Fallout (ओरियन)
Orion Chapter 9: Sharzwell Wars (ओरियन)
Orion Chapter 10: The Spacecraft (ओरियन)
Orion Chapter 11: Reunion (ओरियन)
Orion Chapter 12: Journey to the East (ओरियन)
Orion Chapter Chapter 13: The Joggers (ओरियन)
Orion Chapter 14: Saitans versus Hamans (ओरियन)
Orion Chapter 15: The Great War (ओरियन)
घटना के कुछ वक़्त बाद ही कहानी के नायक को अपनी दादी से और अपने घर से कुछ ऐसे सबूत मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि उसके दादा के पिता को उसके जन्मने से ले कर जवान होने तक की सारी घटनाओं का पता था और जो उसके लिये कुछ ज़रूरी इंसट्रक्शंस छोड़ गये थे— जिनमें से एक था बेलिज्रेंट ब्लूज़ के दिये एक ऑनलाइन टास्क को पूरा करना और उनसे जुड़ना।
यहीं से इस पंद्रह भाग लंबी कहानी की शुरुआत होती है और उन्हें पृथ्वी की एक्चुअल टाईमलाईन दिखाई जाती है, जो उनके समय से काफ़ी आगे की थी और उन्हें पता चलता है कि भविष्य में पृथ्वी पूरी तरह ट्रांसफार्म हो गई थी, जहां पृथ्वी का मौजूदा सभी तरह का जीवन एक्सटिंक्ट हो चुका था। पृथ्वी के उस निश्चित भविष्य को बदलने और इसके ज़िम्मेदार रहे अतीत में आये एक एरर को फिक्स करने के लिये इक्कीसव लोगों को एक मिशन मिलता है— अतीत में चालीस हज़ार साल पहले के समय में जाने का और उस प्राब्लम की जड़ को ढूंढ कर उसे ख़त्म करने का… जिसने बाद में दुनिया ही बदल दी थी।
इस मुख्य मिशन पर भेजने से पहले उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से तैयार करने के लिये दो दूसरे टास्क भी दिये जाते हैं— जिनमें एक टास्क होता है पांच सौ साल पहले के कैनरी आइलैंड पर स्पेनियों के हमले से ठीक पहले सर्वाइव करना और दूसरा टास्क होता है करीब नब्बे साल पहले हिटलर के उभार के वक़्त के आस्ट्रिया में जा कर एक ऐसी गुत्थी को सुलझाना, जिससे भविष्य के कुछ राज़ भी जुड़े थे और जिससे जुड़ा था कहानी के नायक ख़ुद ओरियन का वजूद।
एक लंबे और जानलेवा संघर्ष के लिये तैयार हो कर जब वे चालीस हज़ार साल पहले के दौर में पहुंचते हैं तो अपनी तलाश के सिलसिले में उन्हें, अतीत में विलुप्त हो चुकी और इतिहास से मिट चुकी, मेडिटेरेनियन और अटलांटिक के आसपास पनप रही दो अलग-अलग प्रजातियों हमंस और सैटंस के बीच खपना पड़ता है— जिनके विकास की स्टेज अलग-अलग थी। भूमध्यसागर के आसपास पनप रहे हमंस जहां अभी बाद के इंसानी इतिहास के हिसाब से चौदहवीं-पंद्रहवीं शताब्दी के दौर में जी रहे थे तो अटलांटिक के आसपास पनपते सैटंस उन्नीसवीं शताब्दी के दौर वाले विकास तक पहुंच चुके थे।
दोनों सभ्यताओं के अपने-अपने संघर्ष थे— अपनी-अपनी लड़ाईयां थीं, जिनमें अनचाहे ही भविष्य से गये उन सभी लोगों को जूझना पड़ता है… क्योंकि तब के लोगों में स्थापित होने और बिना ज्यादा ख़तरा उठाये अपने मिशन को पूरा करने की यह पहली और ज़रूरी शर्त थी। वहां उस दौर में उनका सामना होता है उन तमाम जीवों से, जिन्हें वे दुनिया भर की अलग-अलग माइथालाॅजी के ज़रिये जानते तो थे, मगर जिन्हें वे मानव मन की कल्पना भर समझते थे। वहां वे यह समझ पाते हैं कि वे कभी अतीत में रहे वास्तविक जीव थे, लेकिन बाद में विलुप्त हो गये थे और जिनकी कहानियां भर बाद के लोगों तक पहुंची थीं।
वहां उन्हें यह भी पता चलता है कि भविष्य की जिस समस्या की जड़ें वे उस दौर में ढूंढने पहुंचे थे, वे अतीत में और हज़ारों साल पीछे थीं— जहां उसी बात के पीछे एक महायुद्ध तक हो चुका था, जिसने उस दौर की पृथ्वी की लगभग आबादी ख़त्म कर दी थी। वहां तब के लोगों के बीच जूझते उन्हें और भी तमाम ऐसे राज पता चलते हैं, जो उनका दिमाग़ हिला कर रख देते हैं और उन्हें कई ऐसी बातें पता चलती हैं— जिन्हें अपने आधुनिक दौर के ज्ञान-विज्ञान के भरोसे वे बस कल्पना भर समझते थे।
फिर उनकी मुश्किल तब दोगुनी हो जाती है, जब पता चलता है कि जिस भविष्य बदलने वे आये थे, उसे रोकने ख़ुद उस भविष्य के जीव भी वहीं पहुंच गये थे और तब उन्हें धरती के दूसरे महायुद्ध में शामिल होना पड़ता है— जहां लाशों के अंबार खड़े हो जाते हैं।
एक ऐसी दुनिया की कहानी… जो पृथ्वी का चालीस हज़ार साल पहले का अतीत थी। जहां इंसान जैसी प्रजाति भी सभ्य हो कर राज्य बनाने की हालत में पहुंच चकी थी तो इंसान से बिलकुल अलग एक दूसरी प्रजाति सैटंस भी मौजूद थी— जो देश और शहर बनाने तक की विकास यात्रा तय कर चुके थे और जिन्हें उसी दौर में विलुप्त होने के चालीस हज़ार साल बाद एलियंस के तौर पर जाना गया था। जहां अनुनाकी थे, जहां नेफिलिम थे, जहां साइक्लाॅप्स थे… और जहां ड्रैगन भी थे।
Orion Chapter 1: Frames of Time
Orion Chapter 2: The Mysterious shadow (ओरियन)
Orion 3: Battle of Daggor Dom
Orion Chapter 4: After the War (ओरियन)
Orion Chapter 5: The Covenant (ओरियन)
Orion Chapter 6: Etadora Rim (ओरियन)
Orion Chapter 7: Nohe Abaaza (ओरियन)
Orion Chapter 8: Fallout (ओरियन)
Orion Chapter 9: Sharzwell Wars (ओरियन)
Orion Chapter 10: The Spacecraft (ओरियन)
Orion Chapter 11: Reunion (ओरियन)
Orion Chapter 12: Journey to the East (ओरियन)
Orion Chapter Chapter 13: The Joggers (ओरियन)
Orion Chapter 14: Saitans versus Hamans (ओरियन)
Orion Chapter 15: The Great War (ओरियन)
Published on February 03, 2025 19:26
October 18, 2024
द अफ़ग़ान हाउंड
क्राईम फिक्शन के नाम पर मेरे द्वारा इस समय दो शृंखलाएं लिखी जा रही हैं, जिन्हें पहचान के लिये 'क्राईम फिक्शन' और 'स्पाईवर्स' के रूप में दो अलग-अलग हैशटैग के साथ चिन्हित किया गया है। क्राईम फिक्शन डेविड फ्रांसिस के रूप में एक अकेले किरदार से सम्बंधित शृंखला है— जो एक खास तरह के मनोविज्ञान की उपज है। वह यायावर है, जो दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता है। वह ठरकी है जो दुनिया की हर नस्ल और हर रंग की लड़की को भोग लेना चाहता है… और वह सनकी है, जो दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचा देना चाहता है।
लेकिन उसका तरीका थोड़ा अनोखा है… वह अपनी पसंद की किसी जगह पहुंच कर, वहां कोई ऐसी हसीना ढूंढता है जो मुसीबत की मारी हो और उसे मुसीबत से निकालने में लग जाता है, जो अक्सर उसके लिये ही मुसीबत का कारण बन जाती है— इस सिलसिले में जो कहानी जन्मती है, वह ‘क्राईम फिक्शन’ हैशटैग के अंतर्गत प्रकाशित होती है। यह किरदार अभी ढलने की प्रक्रिया में है और इस प्रक्रिया के तहत इसकी पहली कहानी ‘काया पलट’ के रूप में प्रकाशित हुई है— जिसके बाद ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ और ‘डार्क साइड’ भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
क्राईम फिक्शन के अंतर्गत जो दूसरी शृंखला है, वह ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के साथ प्रकाशित होती है— जिसमें ‘कोड ब्लैक पर्ल’ पहला, ‘मिशन ओसावा’ दूसरा और ‘द अफ़ग़ान हाउंड’ तीसरा उपन्यास था। जहां डेविड सीरीज केवल एक किरदार पर आधारित है, वहीं स्पाईवर्स की कहानियां एक ऐसी एजेंसी पर आधारित हैं— जिसे ‘राॅ’ की एडीशनल डेस्क के रूप में परिभाषित किया गया है और जो बेसिकली विदेश विभाग से जुड़े मसलों में अपने स्पेशल एजेंट्स के साथ परफार्म करने के लिये डिजाइन की गई है, लेकिन तार किसी बाहरी साजिश से जुड़े हों और ज़मीन देश की ही इस्तेमाल की जा रही हो, तो भी वे डील कर सकते हैं।
इस एजेंसी में मुख्यतः आरव, निहाल और संग्राम के रूप में तीन मेल एजेंट्स तो रूबी, सबीना और रोजीना के रूप में तीन फीमेल एजेंट्स हैं— जिनके अपने मिज़ाज हैं और काम करने के अपने तरीके… इन्हें अलग-अलग मिशन दिये जाते हैं जहां इन्हें फिलहाल एक जोड़े के रूप में परफार्म करना होता है— जिसमें इन्हें ग्रेड बी के कुछ एजेंट्स से भी मदद मिलती है। स्पाइवर्स के अंतर्गत पहली कहानी ‘कोड ब्लैक पर्ल’ संग्राम सीरीज का इंट्रोडक्टरी उपन्यास था, तो इसी तरह ‘मिशन ओसावा’ एजेंसी के दूसरे एजेंट आरव आकाश का पहला और इंट्रोडक्टरी उपन्यास था। इसी तर्ज़ पर ‘द अफ़ग़ान हाउंड’ एजेंसी के तीसरे मेन एजेंट निहाल सिंह की पहली कहानी है।
‘कोड ब्लैक पर्ल’ फिनलैंड में किये एक मिशन की कहानी थी तो ‘मिशन ओसावा’ कश्मीर से सम्बंधित ऐसी कहानी जिसमें विदेशी शक्तियों का जुड़ाव था— जबकि स्पाईवर्स की यह तीसरी कहानी अफ़गानिस्तान से सम्बंधित है, जो एक अरसे से विदेशी शक्तियों का अखाड़ा बना रहा है। प्रस्तुत कहानी में एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल ऑर्गेनाइजेशन का भी समावेश है, जिसके फलसफे अलग हैं, जिसके लक्ष्य अलग हैं और जिसके तरीके भी सबसे अलग हैं— जो बतौर आर्गेनाइजेशन भी किसी विकसित देश जितनी पाॅवर रखती है।
अपने किन्हीं दूरगामी लक्ष्यों के लिये उस अपराधिक संस्था ने पूर्वी अफ़गानिस्तान के एक सरहदी इलाके को फुटबाल ग्राउंड बना रखा है और अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार उस खेल को रोकना तो दूर, उसे समझने में भी असमर्थ है। जिससे निपटने के लिये वे आईएसआई से ले कर राॅ तक की मदद लेना मंज़ूर करते हैं और इस मदद के नाम पर वह मिशन अमल में आता है जहां से स्पाईवर्स में निहाल का प्रवेश होता है। क्या वह उन हादसों का मुअम्मा हल कर पायेगा, जिन्होंने अफ़गान हुकूमत को हिला रखा है? क्या वह उस संस्था के खेल को सबके सामने ला पायेगा— ला पायेगा तो कैसे? जानने के लिये पढ़िये… द अफ़ग़ान हाउंड!
The Afghan Hound
Ashfaq Ahmad
लेकिन उसका तरीका थोड़ा अनोखा है… वह अपनी पसंद की किसी जगह पहुंच कर, वहां कोई ऐसी हसीना ढूंढता है जो मुसीबत की मारी हो और उसे मुसीबत से निकालने में लग जाता है, जो अक्सर उसके लिये ही मुसीबत का कारण बन जाती है— इस सिलसिले में जो कहानी जन्मती है, वह ‘क्राईम फिक्शन’ हैशटैग के अंतर्गत प्रकाशित होती है। यह किरदार अभी ढलने की प्रक्रिया में है और इस प्रक्रिया के तहत इसकी पहली कहानी ‘काया पलट’ के रूप में प्रकाशित हुई है— जिसके बाद ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ और ‘डार्क साइड’ भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
क्राईम फिक्शन के अंतर्गत जो दूसरी शृंखला है, वह ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के साथ प्रकाशित होती है— जिसमें ‘कोड ब्लैक पर्ल’ पहला, ‘मिशन ओसावा’ दूसरा और ‘द अफ़ग़ान हाउंड’ तीसरा उपन्यास था। जहां डेविड सीरीज केवल एक किरदार पर आधारित है, वहीं स्पाईवर्स की कहानियां एक ऐसी एजेंसी पर आधारित हैं— जिसे ‘राॅ’ की एडीशनल डेस्क के रूप में परिभाषित किया गया है और जो बेसिकली विदेश विभाग से जुड़े मसलों में अपने स्पेशल एजेंट्स के साथ परफार्म करने के लिये डिजाइन की गई है, लेकिन तार किसी बाहरी साजिश से जुड़े हों और ज़मीन देश की ही इस्तेमाल की जा रही हो, तो भी वे डील कर सकते हैं।
इस एजेंसी में मुख्यतः आरव, निहाल और संग्राम के रूप में तीन मेल एजेंट्स तो रूबी, सबीना और रोजीना के रूप में तीन फीमेल एजेंट्स हैं— जिनके अपने मिज़ाज हैं और काम करने के अपने तरीके… इन्हें अलग-अलग मिशन दिये जाते हैं जहां इन्हें फिलहाल एक जोड़े के रूप में परफार्म करना होता है— जिसमें इन्हें ग्रेड बी के कुछ एजेंट्स से भी मदद मिलती है। स्पाइवर्स के अंतर्गत पहली कहानी ‘कोड ब्लैक पर्ल’ संग्राम सीरीज का इंट्रोडक्टरी उपन्यास था, तो इसी तरह ‘मिशन ओसावा’ एजेंसी के दूसरे एजेंट आरव आकाश का पहला और इंट्रोडक्टरी उपन्यास था। इसी तर्ज़ पर ‘द अफ़ग़ान हाउंड’ एजेंसी के तीसरे मेन एजेंट निहाल सिंह की पहली कहानी है।
‘कोड ब्लैक पर्ल’ फिनलैंड में किये एक मिशन की कहानी थी तो ‘मिशन ओसावा’ कश्मीर से सम्बंधित ऐसी कहानी जिसमें विदेशी शक्तियों का जुड़ाव था— जबकि स्पाईवर्स की यह तीसरी कहानी अफ़गानिस्तान से सम्बंधित है, जो एक अरसे से विदेशी शक्तियों का अखाड़ा बना रहा है। प्रस्तुत कहानी में एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल ऑर्गेनाइजेशन का भी समावेश है, जिसके फलसफे अलग हैं, जिसके लक्ष्य अलग हैं और जिसके तरीके भी सबसे अलग हैं— जो बतौर आर्गेनाइजेशन भी किसी विकसित देश जितनी पाॅवर रखती है।
अपने किन्हीं दूरगामी लक्ष्यों के लिये उस अपराधिक संस्था ने पूर्वी अफ़गानिस्तान के एक सरहदी इलाके को फुटबाल ग्राउंड बना रखा है और अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार उस खेल को रोकना तो दूर, उसे समझने में भी असमर्थ है। जिससे निपटने के लिये वे आईएसआई से ले कर राॅ तक की मदद लेना मंज़ूर करते हैं और इस मदद के नाम पर वह मिशन अमल में आता है जहां से स्पाईवर्स में निहाल का प्रवेश होता है। क्या वह उन हादसों का मुअम्मा हल कर पायेगा, जिन्होंने अफ़गान हुकूमत को हिला रखा है? क्या वह उस संस्था के खेल को सबके सामने ला पायेगा— ला पायेगा तो कैसे? जानने के लिये पढ़िये… द अफ़ग़ान हाउंड!
The Afghan Hound
Ashfaq Ahmad
Published on October 18, 2024 21:49
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डार्क साइड
क्राईम फिक्शन हैशटैग के अंतर्गत डेविड फ्रांसिस सीरीज का यह चौथा प्रकाशित उपन्यास है— लेकिन क्रम में यह तीसरा है तो कवर पर सीरियल नंबर उसी हिसाब से दिया गया है। यह ‘काया पलट’ से डेढ़ सयानी तक दस कहानियों का एक रोमांचक सफ़र है, जहां धीरे-धीरे एक एक चरित्र का विकास होता है और वह अपने शिखर को हासिल करता है। शृंखला शायद उसके बाद भी जारी रहे, मगर अभी इस सीरीज का यह पहला सेट दस कहानियों तक का सफ़र ऑलरेडी तय कर चुका है, जिनमें धीरे-धीरे क्रम के हिसाब से कहानियां प्रकाशित की जा रही हैं।
अब चूंकि यह सीरीज डेविड फ्रांसिस के किरदार पर आधारित है तो कुछ बातें उसके बारे में जान लेनी ज़रूरी हैं… यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है, जिसके पिता आइसलैंड से थे और माँ महाराष्ट्रियन थीं। बचपन से ही जासूसी कहानियां पढ़ने और जासूसी फिल्में देखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सर पर वैसा ही कैरेक्टर हो जाने का खब्त ही सवार हो गया और इस बात के पीछे उसने बचपन से ही हर तरह का प्रशिक्षण लिया और स्वंय को मानसिक रूप से तैयार किया। कुदरत ने भी उसका साथ दिया और ऐसे ख़तरनाक रास्ते पर चलने के लिये उसे जो आज़ादी चाहिये थी, वह माता-पिता के एक रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिल गई— और वह जेम्स बाॅण्ड बनने निकल खड़ा हुआ।
अब डेविड फ्रांसिस नाम का यह शख़्स अपने को आज़माने चल पड़ा है, जो हर बंधन से मुक्त है, और पागलपन की हद तक जिसके तीन ही शौक हैं— भ्रमण, लड़की और अपराधियों से पंगे… जिसे दुनिया के हर हिस्से को देखना है, और जिसे वर्स्ट से वर्स्ट लोकेशन में भी प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेने की ज़िद रहती है। जो दुनिया की हर रंग, हर नस्ल और हर हिस्से में पाई जाने वाली लड़की को भोग लेने की तमन्ना रखता है— ठरकी है, मगर किसी को भी प्यार से जीतना पसंद करता है। हर कहीं दूसरों के फटे में टांग अड़ाना और अपराधियों की ओखली ढूंढ कर अपना सर दे देने की सनक ख़तरनाक स्तर तक सवार रहती है।
इसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसने अपने मन में ही अपने एक प्रतिरूप को स्थापित कर रखा है, जिसे यह ‘अंदर वाले डेविड’ या ‘मिनी मी’ कह कर सम्बोधित करता है और न सिर्फ़ उससे विचार-विमर्श करता रहता है, बल्कि जो वह सीधे नहीं हो पाता— वह मिनी मी के रूप में हो जाना चाहता है और अपनी हर फीलिंग को उसके मुंह से हर तरह के शब्दों में बयान कर लेता है। दोनों में अक्सर नोक-झोंक भी होती है। एक तरह से यह मेंटल डिसऑर्डर लग सकता है, लेकिन डेविड के लिये यह संबल का एक कारक है।
जहां तक इस कहानी ‘डार्क साइड’ की बात है, यह कहानी बेशुमार पैसे और प्रसिद्धि वाली चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया से जुड़े एक स्याह पहलू पर आधारित है। इस डार्क साइड में न सिर्फ़ ब्लैक मनी का दखल है, शोषण एक आम समस्या है वहीं दिनों-दिन मज़बूत हो रही उस एडल्ट कंटेंट परोसने वाली पैरेलल इंडस्ट्री को भी उकेरा गया है जो बहुत तेज़ी से अपनी जगह बनाने में लगी हुई है।
प्रस्तुत कहानी में डेविड को जिन तीन लड़कियों का साथ मिला है, उनमें तीनों ही इस स्याह पक्ष से जुड़े लोगों की बेटी हैं, बीवी हैं या हिरोइन हैं— कहानी की शुरुआत जिस हिरोईन के अपहरण की नाकाम कोशिश से होती है, वह डेविड के लिये अंत तक एक पहेली बनी रहती है। जिसे ले कर वह यह फैसला नहीं कर पाता कि वह विक्टिम है या ख़ुद इस खेल की शातिर खिलाड़ी है। जो उसे इस्तेमाल करती है, मगर इस्तेमाल की वैलिड वजह भी देती है।
जिन दो दूसरे लोगों को वह सीधे तौर पर इस सिलसिले में खलनायक के तौर पर स्थापित करता है, उन्हीं में से एक की बीवी से उसे इस तमाशे को समझने में मदद मिलती है तो दूसरे की बेटी न सिर्फ़ क़दम-क़दम पर उसका साथ देती है— बल्कि उसके लिये ख़ुद ही ट्रबल शूटर बन जाती है। वह इस बड़ी सी स्याह दुनिया में एक बहुत मामूली इंसान था— जो इस आग में हाथ डाल तो देता है मगर एक ही किस्से में कई बार मौत के मुंह तक पहुंच जाता है। सवाल यह था कि क्या वह इस पहलू को उजागर कर पायेगा?
Dark Side (Crime Fiction by Ashfaq Ahmad Book 3)
Ashfaq Ahmad
अब चूंकि यह सीरीज डेविड फ्रांसिस के किरदार पर आधारित है तो कुछ बातें उसके बारे में जान लेनी ज़रूरी हैं… यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है, जिसके पिता आइसलैंड से थे और माँ महाराष्ट्रियन थीं। बचपन से ही जासूसी कहानियां पढ़ने और जासूसी फिल्में देखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सर पर वैसा ही कैरेक्टर हो जाने का खब्त ही सवार हो गया और इस बात के पीछे उसने बचपन से ही हर तरह का प्रशिक्षण लिया और स्वंय को मानसिक रूप से तैयार किया। कुदरत ने भी उसका साथ दिया और ऐसे ख़तरनाक रास्ते पर चलने के लिये उसे जो आज़ादी चाहिये थी, वह माता-पिता के एक रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिल गई— और वह जेम्स बाॅण्ड बनने निकल खड़ा हुआ।
अब डेविड फ्रांसिस नाम का यह शख़्स अपने को आज़माने चल पड़ा है, जो हर बंधन से मुक्त है, और पागलपन की हद तक जिसके तीन ही शौक हैं— भ्रमण, लड़की और अपराधियों से पंगे… जिसे दुनिया के हर हिस्से को देखना है, और जिसे वर्स्ट से वर्स्ट लोकेशन में भी प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेने की ज़िद रहती है। जो दुनिया की हर रंग, हर नस्ल और हर हिस्से में पाई जाने वाली लड़की को भोग लेने की तमन्ना रखता है— ठरकी है, मगर किसी को भी प्यार से जीतना पसंद करता है। हर कहीं दूसरों के फटे में टांग अड़ाना और अपराधियों की ओखली ढूंढ कर अपना सर दे देने की सनक ख़तरनाक स्तर तक सवार रहती है।
इसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसने अपने मन में ही अपने एक प्रतिरूप को स्थापित कर रखा है, जिसे यह ‘अंदर वाले डेविड’ या ‘मिनी मी’ कह कर सम्बोधित करता है और न सिर्फ़ उससे विचार-विमर्श करता रहता है, बल्कि जो वह सीधे नहीं हो पाता— वह मिनी मी के रूप में हो जाना चाहता है और अपनी हर फीलिंग को उसके मुंह से हर तरह के शब्दों में बयान कर लेता है। दोनों में अक्सर नोक-झोंक भी होती है। एक तरह से यह मेंटल डिसऑर्डर लग सकता है, लेकिन डेविड के लिये यह संबल का एक कारक है।
जहां तक इस कहानी ‘डार्क साइड’ की बात है, यह कहानी बेशुमार पैसे और प्रसिद्धि वाली चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया से जुड़े एक स्याह पहलू पर आधारित है। इस डार्क साइड में न सिर्फ़ ब्लैक मनी का दखल है, शोषण एक आम समस्या है वहीं दिनों-दिन मज़बूत हो रही उस एडल्ट कंटेंट परोसने वाली पैरेलल इंडस्ट्री को भी उकेरा गया है जो बहुत तेज़ी से अपनी जगह बनाने में लगी हुई है।
प्रस्तुत कहानी में डेविड को जिन तीन लड़कियों का साथ मिला है, उनमें तीनों ही इस स्याह पक्ष से जुड़े लोगों की बेटी हैं, बीवी हैं या हिरोइन हैं— कहानी की शुरुआत जिस हिरोईन के अपहरण की नाकाम कोशिश से होती है, वह डेविड के लिये अंत तक एक पहेली बनी रहती है। जिसे ले कर वह यह फैसला नहीं कर पाता कि वह विक्टिम है या ख़ुद इस खेल की शातिर खिलाड़ी है। जो उसे इस्तेमाल करती है, मगर इस्तेमाल की वैलिड वजह भी देती है।
जिन दो दूसरे लोगों को वह सीधे तौर पर इस सिलसिले में खलनायक के तौर पर स्थापित करता है, उन्हीं में से एक की बीवी से उसे इस तमाशे को समझने में मदद मिलती है तो दूसरे की बेटी न सिर्फ़ क़दम-क़दम पर उसका साथ देती है— बल्कि उसके लिये ख़ुद ही ट्रबल शूटर बन जाती है। वह इस बड़ी सी स्याह दुनिया में एक बहुत मामूली इंसान था— जो इस आग में हाथ डाल तो देता है मगर एक ही किस्से में कई बार मौत के मुंह तक पहुंच जाता है। सवाल यह था कि क्या वह इस पहलू को उजागर कर पायेगा?
Dark Side (Crime Fiction by Ashfaq Ahmad Book 3)
Ashfaq Ahmad
Published on October 18, 2024 21:47
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July 24, 2024
ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस
क्राईम फिक्शन के हैशटैग के अंतर्गत यह डेविड फ्रांसिस सीरीज का तीसरा, लेकिन इस सीरीज के क्रम के अनुसार यह दूसरा उपन्यास है, जिसमें डेविड अपने शाहकार बनने की प्रक्रिया से गुज़र रहा है। इस शृंखला में पहला उपन्यास ‘डेढ़ सयानी’ प्रकाशित हुआ था जो क्रमानुसार तब की कहानी है, जब यह किरदार पूरी तरह स्थापित हो चुका था। कायदे से सीरीज में उसका क्रम दसवां आयेगा। डेविड का ‘डेढ़ सयानी’ तक का सफ़र नौ अलग-अलग कहानियों का है, ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ जिसमें से दूसरे नंबर पर है।
कुछ बातें डेविड के बारे में… यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है, जिसके पिता आइसलैंड से थे और माँ महाराष्ट्रियन थीं। बचपन से ही जासूसी कहानियां पढ़ने और जासूसी फिल्में देखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सर पर वैसा ही कैरेक्टर हो जाने का खब्त ही सवार हो गया और इस बात के पीछे उसने बचपन से ही हर तरह का प्रशिक्षण लिया और स्वंय को मानसिक रूप से तैयार किया। कुदरत ने भी उसका साथ दिया और ऐसे ख़तरनाक रास्ते पर चलने के लिये उसे जो आज़ादी चाहिये थी, वह माता-पिता के एक रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिल गई— और वह जेम्स बाॅण्ड बनने निकल खड़ा हुआ।
अब डेविड फ्रांसिस नाम का यह शख़्स अपने को आज़माने चल पड़ा है, जो हर बंधन से मुक्त है, और पागलपन की हद तक जिसके तीन ही शौक हैं— भ्रमण, लड़की और अपराधियों से पंगे… जिसे दुनिया के हर हिस्से को देखना है, और जिसे वर्स्ट से वर्स्ट लोकेशन में भी प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेने की ज़िद रहती है। जो दुनिया की हर रंग, हर नस्ल और हर हिस्से में पाई जाने वाली लड़की को भोग लेने की तमन्ना रखता है— ठरकी है, मगर किसी को भी प्यार से जीतना पसंद करता है। हर कहीं दूसरों के फटे में टांग अड़ाना और अपराधियों की ओखली ढूंढ कर अपना सर दे देने की सनक ख़तरनाक स्तर तक सवार रहती है।
इसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसने अपने मन में ही अपने एक प्रतिरूप को स्थापित कर रखा है, जिसे यह ‘अंदर वाले डेविड’ या ‘मिनी मी’ कह कर सम्बोधित करता है और न सिर्फ़ उससे विचार-विमर्श करता रहता है, बल्कि जो वह सीधे नहीं हो पाता— वह मिनी मी के रूप में हो जाना चाहता है और अपनी हर फीलिंग को उसके मुंह से हर तरह के शब्दों में बयान कर लेता है। दोनों में अक्सर नोक-झोंक भी होती है। एक तरह से यह मेंटल डिसऑर्डर लग सकता है, लेकिन डेविड के लिये यह संबल का एक कारक है।
अब बात इस कहानी की— डेविड की कहानी बिना लड़की के नहीं पनपती, न फलती-फूलती है। तो डेविड की कहानी में लड़की भी होनी है और उसका संकट में फंसना भी तय होता है। डेविड को असल किक इसी बात से मिलती है और यहीं से वह कहानी पनपती है, जो जेम्स, शरलाॅक, नीरो, सैक्सटन के मिश्रण से बने डेविड फ्रांसिस की क्षमताओं का सख़्त इम्तिहान लेती है।
प्रस्तुत कहानी में यह डैमसेल जूही नाम की एक लड़की है, जो एक रहस्य की तरह उससे मिलती है और फिर उसकी आँखों के सामने ही जूही को अगवा कर लिया जाता है। जिसके बाद जब वह अपनी खोजबीन शुरू करता है, तो इस डिस्ट्रेस से जुड़े राज़ धीरे-धीरे सामने आते हैं और पता चलता है कि वह एक ऐसे नेटवर्क का शिकार हुई थी, जो न सिर्फ ड्रग ट्रैफिकिंग से जुड़ा था, बल्कि जिसकी संलिप्तता टेररिज्म में भी थी।
अब सवाल यह था कि किसने उठाया था जूही को? क्या हासिल करना चाहता था वह उसकी किडनैपिंग से? डेविड अपनी जान पर खेलते, बार-बार ख़तरे में पड़ते इस घटना की तह तक तो पहुंचता है लेकिन क्या वह जूही को सुरक्षित निकाल भी पाता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिये पढ़िये… ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस!
A Damsel In DistressAshfaq Ahmad
कुछ बातें डेविड के बारे में… यह एक मिश्रित नस्ल का युवक है, जिसके पिता आइसलैंड से थे और माँ महाराष्ट्रियन थीं। बचपन से ही जासूसी कहानियां पढ़ने और जासूसी फिल्में देखने का ऐसा चस्का लगा कि फिर सर पर वैसा ही कैरेक्टर हो जाने का खब्त ही सवार हो गया और इस बात के पीछे उसने बचपन से ही हर तरह का प्रशिक्षण लिया और स्वंय को मानसिक रूप से तैयार किया। कुदरत ने भी उसका साथ दिया और ऐसे ख़तरनाक रास्ते पर चलने के लिये उसे जो आज़ादी चाहिये थी, वह माता-पिता के एक रोड एक्सीडेंट में मारे जाने के बाद मिल गई— और वह जेम्स बाॅण्ड बनने निकल खड़ा हुआ।
अब डेविड फ्रांसिस नाम का यह शख़्स अपने को आज़माने चल पड़ा है, जो हर बंधन से मुक्त है, और पागलपन की हद तक जिसके तीन ही शौक हैं— भ्रमण, लड़की और अपराधियों से पंगे… जिसे दुनिया के हर हिस्से को देखना है, और जिसे वर्स्ट से वर्स्ट लोकेशन में भी प्राकृतिक सौंदर्य ढूंढ लेने की ज़िद रहती है। जो दुनिया की हर रंग, हर नस्ल और हर हिस्से में पाई जाने वाली लड़की को भोग लेने की तमन्ना रखता है— ठरकी है, मगर किसी को भी प्यार से जीतना पसंद करता है। हर कहीं दूसरों के फटे में टांग अड़ाना और अपराधियों की ओखली ढूंढ कर अपना सर दे देने की सनक ख़तरनाक स्तर तक सवार रहती है।
इसके व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि इसने अपने मन में ही अपने एक प्रतिरूप को स्थापित कर रखा है, जिसे यह ‘अंदर वाले डेविड’ या ‘मिनी मी’ कह कर सम्बोधित करता है और न सिर्फ़ उससे विचार-विमर्श करता रहता है, बल्कि जो वह सीधे नहीं हो पाता— वह मिनी मी के रूप में हो जाना चाहता है और अपनी हर फीलिंग को उसके मुंह से हर तरह के शब्दों में बयान कर लेता है। दोनों में अक्सर नोक-झोंक भी होती है। एक तरह से यह मेंटल डिसऑर्डर लग सकता है, लेकिन डेविड के लिये यह संबल का एक कारक है।
अब बात इस कहानी की— डेविड की कहानी बिना लड़की के नहीं पनपती, न फलती-फूलती है। तो डेविड की कहानी में लड़की भी होनी है और उसका संकट में फंसना भी तय होता है। डेविड को असल किक इसी बात से मिलती है और यहीं से वह कहानी पनपती है, जो जेम्स, शरलाॅक, नीरो, सैक्सटन के मिश्रण से बने डेविड फ्रांसिस की क्षमताओं का सख़्त इम्तिहान लेती है।
प्रस्तुत कहानी में यह डैमसेल जूही नाम की एक लड़की है, जो एक रहस्य की तरह उससे मिलती है और फिर उसकी आँखों के सामने ही जूही को अगवा कर लिया जाता है। जिसके बाद जब वह अपनी खोजबीन शुरू करता है, तो इस डिस्ट्रेस से जुड़े राज़ धीरे-धीरे सामने आते हैं और पता चलता है कि वह एक ऐसे नेटवर्क का शिकार हुई थी, जो न सिर्फ ड्रग ट्रैफिकिंग से जुड़ा था, बल्कि जिसकी संलिप्तता टेररिज्म में भी थी।
अब सवाल यह था कि किसने उठाया था जूही को? क्या हासिल करना चाहता था वह उसकी किडनैपिंग से? डेविड अपनी जान पर खेलते, बार-बार ख़तरे में पड़ते इस घटना की तह तक तो पहुंचता है लेकिन क्या वह जूही को सुरक्षित निकाल भी पाता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिये पढ़िये… ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस!
A Damsel In DistressAshfaq Ahmad
Published on July 24, 2024 18:42
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मिशन ओसावा
क्राईम फिक्शन एक सदाबहार श्रेणी है जिसका आकर्षण कभी भी ख़त्म नहीं हुआ— आम तौर पर अलग-अलग विषयों पर फिक्शन लिखने वाले भी इस श्रेणी में हाथ ज़रूर आज़माते हैं। इस श्रेणी में किसी निरंतरता से मुक्त किरदार भी हो सकते हैं और वे भी जो सीरीज का निर्माण करते हैं और हर अगले भाग में एक नई कहानी जिनके आसपास घूमती है। प्रस्तुत उपन्यास ऐसी ही एक शृंखला की दूसरी कड़ी है, जिसमें एक मिशन है, और उस मिशन के इर्द-गिर्द सिमटी लीनियर रूट पर चलती एक कहानी है।
विशेषतः क्राईम फिक्शन के नाम पर मैंने दो तरह की शृंखलाएं आरम्भ की हैं, जिन्हें पहचान के लिये 'क्राईम फिक्शन' और 'स्पाईवर्स' के रूप में दो अलग-अलग हैशटैग के साथ चिन्हित किया गया है। क्राईम फिक्शन डेविड फ्रांसिस के रूप में एक अकेले किरदार से सम्बंधित सीरीज है— जो एक खास तरह के मनोविज्ञान की उपज है। वह यायावर है, जो दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता है। वह ठरकी है जो दुनिया की हर नस्ल और हर रंग की लड़की को भोग लेना चाहता है… और वह सनकी है, जो दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचा देना चाहता है।
लेकिन उसका तरीका थोड़ा अनोखा है… वह अपनी पसंद की किसी जगह पहुंच कर, वहां कोई ऐसी हसीना ढूंढता है जो मुसीबत की मारी हो और उसे मुसीबत से निकालने में लग जाता है, जो अक्सर उसके लिये ही मुसीबत का कारण बन जाती है— इस सिलसिले में जो कहानी जन्मती है, वह क्राईम फिक्शन हैशटैग के अंतर्गत प्रकाशित होती है। यह किरदार अभी ढलने की प्रक्रिया में है और इस प्रक्रिया के तहत इसकी पहली कहानी ‘काया पलट’ के रूप में प्रकाशित हुई है— तो दूसरी कहानी ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ भी इस कहानी ‘मिशन ओसावा’ के साथ ही प्रकाशित हुई है।
क्राईम फिक्शन के अंतर्गत जो दूसरी शृंखला है, वह ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के साथ प्रकाशित होती है— जिसमें ‘कोड ब्लैक पर्ल’ के बाद ‘मिशन ओसावा’ दूसरा उपन्यास है। जहां डेविड सीरीज केवल एक किरदार पर आधारित है, वहीं स्पाईवर्स की कहानियां एक एजेंसी पर आधारित हैं— जिसे ‘राॅ’ की एडीशनल डेस्क के रूप में परिभाषित किया गया है और जो बेसिकली विदेश विभाग से जुड़े मसलों में अपने स्पेशल एजेंट्स के साथ परफार्म करने के लिये डिजाइन की गई है, लेकिन तार किसी बाहरी साजिश से जुड़े हों और ज़मीन देश की ही इस्तेमाल की जा रही हो, तो भी वे डील कर सकते हैं।
इस एजेंसी में मुख्यतः आरव, निहाल और संग्राम के रूप में तीन मेल एजेंट्स तो रूबी, सबीना और रोजीना के रूप में तीन फीमेल एजेंट्स हैं— जिनके अपने मिज़ाज हैं और काम करने के अपने तरीके… इन्हें अलग-अलग मिशन दिये जाते हैं जहां इन्हें फिलहाल एक जोड़े के रूप में परफार्म करना होता है— जिसमें इन्हें ग्रेड बी के कुछ एजेंट्स से भी मदद मिलती है।
जैसे ‘मिशन ओसावा’ दरअसल एक नाॅन-स्टेट एक्टर की कहानी है, जिसे भारतीय सीमा में डिस्टर्बेंस पैदा करने के लिये कश्मीर में लांच किया गया है— अब इस शख़्स को ढूंढना, उसे पकड़ना या ख़त्म कर देना उन चार लोगों का मिशन है, जिन्हें इस काम के लिये अलग-अलग रूट से कश्मीर भेजा गया है। कहानी में लीड कैरेक्टर आरव आकाश और रूबी भाटिया हैं… साथ ही इन्हें विराट और रंजीत नाम के ग्रेड बी के दो एजेंट्स का सहयोग भी मिलता है।
आरव एजेंसी के बाकी दो मेन एजेंट्स संग्राम और निहाल से अलग मिज़ाज का है… वह दिमाग़ से बेहद शातिर है, लेकिन एक नंबर का मसखरा है और ज्यादातर मौकों और जगहों पर ख़ुद को किसी मूर्ख के तौर पर पेश करने से उसे एतराज़ नहीं। उसे किसी भी हाल में अपना काम निकालना होता है और उसे यह तरीका इसलिये बेस्ट लगता है क्योंकि यह उसके स्वभाव में शामिल है। हां, उसकी एक गंदी आदत यह भी है कि वह किसी टास्क को पूरा करने में लांग रूट के बजाय शार्टकट तलाशता है और इस चक्कर में कई बार गड़बड़ भी होती है। एजेंसी की दूसरी लड़कियों से इतर रूबी भी उसी के जैसे मसखरे स्वभाव की है— लेकिन उसे ख़ुद को मूर्ख दिखाने से सख्त परहेज रहता है।
एक महत्वपूर्ण बात और… कहानियां कई तरह की हो सकती हैं, लेकिन या तो उनमें सस्पेंस होगा, या ढेर से ट्विस्ट एंड टर्न्स होंगे— जो पाठक को अंत तक बांधे रख सकें… या फिर वह बिना ऐसे ट्विस्ट या टर्न के सीधी, सपाट होगी, जहां कहानी का ट्रीटमेंट और उसकी घटनाएं ही मुख्य होंगी— जो बजाय उलझावों के अपने संवादों, वर्णित दृश्यों, गति और घटनाओं के सहारे शुद्ध मनोरंजन उत्पन्न करती है, जो पाठक को बांध के रखता है। इस हिसाब से क्राईम फिक्शन के अंतर्गत लिखी डेविड सीरीज की कहानियां पहली श्रेणी में आती हैं तो स्पाईवर्स के अंतर्गत लिखी ‘इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया’ से जुड़ी कहानियां दूसरी श्रेणी में।
अगर ढेर से सस्पेंस, ट्विस्ट और टर्न की अपेक्षा के साथ ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग वाली कहानी पढ़ेंगे तो निराशा हाथ लगेगी। उस अपेक्षा से दिमाग़ को मुक्त कर के शुद्ध मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़ेंगे तो आपको यक़ीनन पसंद आयेंगी। इस विषय में एक अहम बात यह भी ध्यान रखनी ज़रूरी है कि स्पाईवर्स हैशटैग से जुड़ी यह कहानियां वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से वर्ल्ड पाॅलिटिक्स और डिप्लोमेसी आदि से सम्बंधित होती हैं— तो उस विषय में अगर आपको थोड़ी-बहुत पहले से जानकारी है तो आप ज्यादा बेहतर ढंग से रिलेट कर पायेंगे। या चाहें तो पढ़ने के साथ ही गूगल की मदद से भी थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं।
प्रस्तुत कहानी में भी इन बातों को इस्तेमाल में लिया गया है— कहानी का बेस ही वर्तमान वैश्विक परिदृश्य है कि किस तरह चौधराहट को लेकर चालें चली जा रही हैं, किन बातों से बार्डर डिस्टर्ब किये जा रहे हैं और कैसे अनदेखी सत्ताएं किसी देश की कंट्रोलिंग बाॅडी को पीछे से ऑपरेट करती हैं। मिशन ओसावा जिस किरदार को ले कर है— वह एक खास मकसद से भेजा गया ऐसा ही एक टूल है, जिससे इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया को निपटना है। अब इस सिलसिले में लद्दाख से कश्मीर तक क्या-क्या होता है… जानने के लिये पढ़िये स्पाईवर्स हैशटैग के अंतर्गत लिखी गई आरव आकाश सीरीज की ‘मिशन ओसावा’!
Mission Osava (Spyverse)
विशेषतः क्राईम फिक्शन के नाम पर मैंने दो तरह की शृंखलाएं आरम्भ की हैं, जिन्हें पहचान के लिये 'क्राईम फिक्शन' और 'स्पाईवर्स' के रूप में दो अलग-अलग हैशटैग के साथ चिन्हित किया गया है। क्राईम फिक्शन डेविड फ्रांसिस के रूप में एक अकेले किरदार से सम्बंधित सीरीज है— जो एक खास तरह के मनोविज्ञान की उपज है। वह यायावर है, जो दुनिया के चप्पे-चप्पे को देख लेना चाहता है। वह ठरकी है जो दुनिया की हर नस्ल और हर रंग की लड़की को भोग लेना चाहता है… और वह सनकी है, जो दुनिया के हर अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचा देना चाहता है।
लेकिन उसका तरीका थोड़ा अनोखा है… वह अपनी पसंद की किसी जगह पहुंच कर, वहां कोई ऐसी हसीना ढूंढता है जो मुसीबत की मारी हो और उसे मुसीबत से निकालने में लग जाता है, जो अक्सर उसके लिये ही मुसीबत का कारण बन जाती है— इस सिलसिले में जो कहानी जन्मती है, वह क्राईम फिक्शन हैशटैग के अंतर्गत प्रकाशित होती है। यह किरदार अभी ढलने की प्रक्रिया में है और इस प्रक्रिया के तहत इसकी पहली कहानी ‘काया पलट’ के रूप में प्रकाशित हुई है— तो दूसरी कहानी ‘ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ भी इस कहानी ‘मिशन ओसावा’ के साथ ही प्रकाशित हुई है।
क्राईम फिक्शन के अंतर्गत जो दूसरी शृंखला है, वह ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग के साथ प्रकाशित होती है— जिसमें ‘कोड ब्लैक पर्ल’ के बाद ‘मिशन ओसावा’ दूसरा उपन्यास है। जहां डेविड सीरीज केवल एक किरदार पर आधारित है, वहीं स्पाईवर्स की कहानियां एक एजेंसी पर आधारित हैं— जिसे ‘राॅ’ की एडीशनल डेस्क के रूप में परिभाषित किया गया है और जो बेसिकली विदेश विभाग से जुड़े मसलों में अपने स्पेशल एजेंट्स के साथ परफार्म करने के लिये डिजाइन की गई है, लेकिन तार किसी बाहरी साजिश से जुड़े हों और ज़मीन देश की ही इस्तेमाल की जा रही हो, तो भी वे डील कर सकते हैं।
इस एजेंसी में मुख्यतः आरव, निहाल और संग्राम के रूप में तीन मेल एजेंट्स तो रूबी, सबीना और रोजीना के रूप में तीन फीमेल एजेंट्स हैं— जिनके अपने मिज़ाज हैं और काम करने के अपने तरीके… इन्हें अलग-अलग मिशन दिये जाते हैं जहां इन्हें फिलहाल एक जोड़े के रूप में परफार्म करना होता है— जिसमें इन्हें ग्रेड बी के कुछ एजेंट्स से भी मदद मिलती है।
जैसे ‘मिशन ओसावा’ दरअसल एक नाॅन-स्टेट एक्टर की कहानी है, जिसे भारतीय सीमा में डिस्टर्बेंस पैदा करने के लिये कश्मीर में लांच किया गया है— अब इस शख़्स को ढूंढना, उसे पकड़ना या ख़त्म कर देना उन चार लोगों का मिशन है, जिन्हें इस काम के लिये अलग-अलग रूट से कश्मीर भेजा गया है। कहानी में लीड कैरेक्टर आरव आकाश और रूबी भाटिया हैं… साथ ही इन्हें विराट और रंजीत नाम के ग्रेड बी के दो एजेंट्स का सहयोग भी मिलता है।
आरव एजेंसी के बाकी दो मेन एजेंट्स संग्राम और निहाल से अलग मिज़ाज का है… वह दिमाग़ से बेहद शातिर है, लेकिन एक नंबर का मसखरा है और ज्यादातर मौकों और जगहों पर ख़ुद को किसी मूर्ख के तौर पर पेश करने से उसे एतराज़ नहीं। उसे किसी भी हाल में अपना काम निकालना होता है और उसे यह तरीका इसलिये बेस्ट लगता है क्योंकि यह उसके स्वभाव में शामिल है। हां, उसकी एक गंदी आदत यह भी है कि वह किसी टास्क को पूरा करने में लांग रूट के बजाय शार्टकट तलाशता है और इस चक्कर में कई बार गड़बड़ भी होती है। एजेंसी की दूसरी लड़कियों से इतर रूबी भी उसी के जैसे मसखरे स्वभाव की है— लेकिन उसे ख़ुद को मूर्ख दिखाने से सख्त परहेज रहता है।
एक महत्वपूर्ण बात और… कहानियां कई तरह की हो सकती हैं, लेकिन या तो उनमें सस्पेंस होगा, या ढेर से ट्विस्ट एंड टर्न्स होंगे— जो पाठक को अंत तक बांधे रख सकें… या फिर वह बिना ऐसे ट्विस्ट या टर्न के सीधी, सपाट होगी, जहां कहानी का ट्रीटमेंट और उसकी घटनाएं ही मुख्य होंगी— जो बजाय उलझावों के अपने संवादों, वर्णित दृश्यों, गति और घटनाओं के सहारे शुद्ध मनोरंजन उत्पन्न करती है, जो पाठक को बांध के रखता है। इस हिसाब से क्राईम फिक्शन के अंतर्गत लिखी डेविड सीरीज की कहानियां पहली श्रेणी में आती हैं तो स्पाईवर्स के अंतर्गत लिखी ‘इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया’ से जुड़ी कहानियां दूसरी श्रेणी में।
अगर ढेर से सस्पेंस, ट्विस्ट और टर्न की अपेक्षा के साथ ‘स्पाईवर्स’ के हैशटैग वाली कहानी पढ़ेंगे तो निराशा हाथ लगेगी। उस अपेक्षा से दिमाग़ को मुक्त कर के शुद्ध मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़ेंगे तो आपको यक़ीनन पसंद आयेंगी। इस विषय में एक अहम बात यह भी ध्यान रखनी ज़रूरी है कि स्पाईवर्स हैशटैग से जुड़ी यह कहानियां वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से वर्ल्ड पाॅलिटिक्स और डिप्लोमेसी आदि से सम्बंधित होती हैं— तो उस विषय में अगर आपको थोड़ी-बहुत पहले से जानकारी है तो आप ज्यादा बेहतर ढंग से रिलेट कर पायेंगे। या चाहें तो पढ़ने के साथ ही गूगल की मदद से भी थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं।
प्रस्तुत कहानी में भी इन बातों को इस्तेमाल में लिया गया है— कहानी का बेस ही वर्तमान वैश्विक परिदृश्य है कि किस तरह चौधराहट को लेकर चालें चली जा रही हैं, किन बातों से बार्डर डिस्टर्ब किये जा रहे हैं और कैसे अनदेखी सत्ताएं किसी देश की कंट्रोलिंग बाॅडी को पीछे से ऑपरेट करती हैं। मिशन ओसावा जिस किरदार को ले कर है— वह एक खास मकसद से भेजा गया ऐसा ही एक टूल है, जिससे इंद्रप्रस्थ इंटेलिजेंसिया को निपटना है। अब इस सिलसिले में लद्दाख से कश्मीर तक क्या-क्या होता है… जानने के लिये पढ़िये स्पाईवर्स हैशटैग के अंतर्गत लिखी गई आरव आकाश सीरीज की ‘मिशन ओसावा’!
Mission Osava (Spyverse)
Published on July 24, 2024 18:40
•
Tags:
crime-fiction
April 29, 2024
काया पलट
क्राईम फिक्शन के हैशटैग के अंतर्गत डेविड फ्रांसिस सीरीज़ का ‘डेढ़ सयानी’ के बाद यह दूसरा उपन्यास है— लेकिन क्रम में इसे पहले नंबर पर रखा जायेगा, क्योंकि डेविड के जीवन का पहला लिखने योग्य पंगा इसी कहानी में सामने आता है। यूं समझिये कि ‘डेढ़ सयानी’ प्रकाशित भले पहले हुई हो, लेकिन वह कहानी बाद की है, जिसे अगले एडिशन में सही क्रम दिया जायेगा… इसी वजह से इसे इस सीरीज़ का पहला क्रमांक दिया गया है, जो चीज़ पाठकों को कन्फ्यूज कर सकती है। डेढ़ सयानी का क्रम उन कहानियों के बाद आयेगा, जो डेविड ने अब याद करनी और लिखनी शुरू की हैं।
यह एक तरह से डेविड की अतीत यात्रा है— वह पैसिफिक के एक आईलैंड पर बैठ कर अपने उस अतीत को याद कर रहा है, जो लिखने योग्य है। इस अतीत में ही उसके चरित्र का विकास है। उसके साधारण से श्रेष्ठ बनने का सफ़र है। एक आम आदमी से जेम्स बॉण्ड बनने की पड़ावों से भरी प्रक्रिया है। जो आदमी वर्तमान में दस गुंडों को अकेले और निहत्थे पीटने की क्षमता रखता हो— उसके अपने से कम दो मामूली लड़कों से पिट जाने की दास्तान है। इस यात्रा में डेविड के अतीत से जुड़ी नौ कहानियां सामने आयेंगी— जिन्होंने इस कैरेक्टर को दशा और दिशा दी है।
जिन पाठकों ने ‘डेढ़ सयानी’ नहीं पढ़ी, उन्हें इस कैरेक्टर के बारे में बता दूं कि यह एक योरोपियन पिता और भारतीय माँ से उत्पन्न संतान है, जो आर्थिक रूप से काफ़ी सम्पन्न है। किसी तरह जिसे बचपन से ही जासूसी किताबों और फिल्मों का चस्का लग गया और उसकी फितरत में वैसा ही कोई कैरेक्टर बनने की जो ललक पैदा हुई तो उसके व्यक्तित्व का विकास भी उसी मिज़ाज के अनुरूप होने लगा। इस आकर्षण के चलते ही जिसने शुरू से ही हर तरह की ट्रेनिंग ली, और हर तरह के तकनीकी ज्ञान में भी दक्षता हासिल की। फिर जब जवान होने और पढ़ाई पूरी होने के साथ ही माता-पिता एक रोड एक्सीडेंट में एक्सपायर हो गये, तो वह भी मुक्त हो कर अपने जेम्स बॉण्ड बनने के सफ़र पर निकल पड़ा।
लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा कुछ हो पाना आसान नहीं होता। क़दम-क़दम पर पेश होने वाली मुसीबतें असल स्किल और जीजिविषा का सख़्त इम्तिहान लेती हैं— यह अलग बात है कि इन मुसीबतों से हार मान कर पीछे हटने के बजाय वह आगे बढ़ता जाता है और उसकी शख्सियत निखरती जाती है। ख़ुद को बारहा ख़तरे में डाल कर, निश्चित दिखती मौत के मुंह से अपने को वापस खींच कर, अंततः वह वैसा बनने में कामयाबी पाता है, जो वह होना चाहता था। ख़ुद को जासूसी दुनिया के किसी फिक्शनल किरदार की तरह ड्वेलप करना और दुनिया भर के अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की सोच रखना उसका एक खब्त था— लेकिन यही अकेला खब्त नहीं था।
उसे प्रकृति से भी कम लगाव नहीं था, वह ज़र्रे-ज़र्रे में एक अप्रतिम सौंदर्य ढूंढने का जज़्बा रखता था। उसे सब्ज़ जंगलों से प्यार था, उसे सूखे रेगिस्तानों से प्यार था, उसे गहरे समंदरों से प्यार था, उसे गर्व से सीना ताने खड़े पहाड़ों से प्यार था। वह पूरी दुनिया को घूम लेना और देख लेना चाहता था— चप्पे-चप्पे को महसूस करना चाहता था और सृष्टि रचियता की उस कारीगरी को निहारना चाहता था, जो हर जगह थी… ज़मीन के हर हिस्से में थी।
लेकिन यह दो शौक ही नहीं थे, जो उसके सर पर खब्त की तरह सवार थे, बल्कि जितनी दिलचस्पी उसे इन दोनों चीज़ों में थी, लड़कियों में उससे कम दिलचस्पी नहीं थी। औरत के मामले में उसका अपना दर्शन था— वह ज़मीन के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर रंग और नस्ल की औरत को भोग लेना चाहता था लेकिन ऐसे किसी रिश्ते में बंधना उसे स्वीकार नहीं था, जो उससे ज़िम्मेदारी की डिमांड करता हो। लड़कियां उसकी कमज़ोरी थीं और उसने जवान होने के बाद से ही ‘आई कांट सी ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ के सिद्धांत को अपना रखा था— उसकी ज़िंदगी के ज्यादातर पंगे तो इसी सिद्धांत के चलते थे।
तो यह कैरेक्टर ड्वेलप होने के साथ वह सब पाता है, जो इसने पाना चाहा था, लेकिन जहां से इसकी यह फसादी यात्रा शुरू होती है— वहां इसके साथ कुछ चमत्कार जैसा घटा था… जब सात अक्तूबर की रात दिल्ली से मुंबई पहुंच कर वह अपने घर में सोता है और उठता है तो पाता है कि तारीख़ पंद्रह अक्तूबर हो चुकी थी, वह अपनी वास्तविक उम्र से पच्चीस-तीस साल बड़ा और अधेड़ हो चुका था, उसका शरीर भी काफ़ी हद तक बदल चुका था, मुंबई के बजाय अब वह न्यूयार्क में किसी जगह था, अपने घर के बजाय एक आलीशान घर में था और सबसे बड़ी बात कि अब वह डेविड भी नहीं रहा था, बल्कि न्यूयार्क के टॉप लिस्टेड अमीरों में से एक अमीर राईन स्मिथ बन चुका था।
अब ऐसा कैसे हुआ… सोते-सोते उसका शरीर, उसकी उम्र, उसकी जगह, उसकी हैसियत कैसे बदल गई— इस गुत्थी को सुलझाने का नाम ही ‘काया पलट’ है।
Kaya Palat
Ashfaq Ahmad
यह एक तरह से डेविड की अतीत यात्रा है— वह पैसिफिक के एक आईलैंड पर बैठ कर अपने उस अतीत को याद कर रहा है, जो लिखने योग्य है। इस अतीत में ही उसके चरित्र का विकास है। उसके साधारण से श्रेष्ठ बनने का सफ़र है। एक आम आदमी से जेम्स बॉण्ड बनने की पड़ावों से भरी प्रक्रिया है। जो आदमी वर्तमान में दस गुंडों को अकेले और निहत्थे पीटने की क्षमता रखता हो— उसके अपने से कम दो मामूली लड़कों से पिट जाने की दास्तान है। इस यात्रा में डेविड के अतीत से जुड़ी नौ कहानियां सामने आयेंगी— जिन्होंने इस कैरेक्टर को दशा और दिशा दी है।
जिन पाठकों ने ‘डेढ़ सयानी’ नहीं पढ़ी, उन्हें इस कैरेक्टर के बारे में बता दूं कि यह एक योरोपियन पिता और भारतीय माँ से उत्पन्न संतान है, जो आर्थिक रूप से काफ़ी सम्पन्न है। किसी तरह जिसे बचपन से ही जासूसी किताबों और फिल्मों का चस्का लग गया और उसकी फितरत में वैसा ही कोई कैरेक्टर बनने की जो ललक पैदा हुई तो उसके व्यक्तित्व का विकास भी उसी मिज़ाज के अनुरूप होने लगा। इस आकर्षण के चलते ही जिसने शुरू से ही हर तरह की ट्रेनिंग ली, और हर तरह के तकनीकी ज्ञान में भी दक्षता हासिल की। फिर जब जवान होने और पढ़ाई पूरी होने के साथ ही माता-पिता एक रोड एक्सीडेंट में एक्सपायर हो गये, तो वह भी मुक्त हो कर अपने जेम्स बॉण्ड बनने के सफ़र पर निकल पड़ा।
लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा कुछ हो पाना आसान नहीं होता। क़दम-क़दम पर पेश होने वाली मुसीबतें असल स्किल और जीजिविषा का सख़्त इम्तिहान लेती हैं— यह अलग बात है कि इन मुसीबतों से हार मान कर पीछे हटने के बजाय वह आगे बढ़ता जाता है और उसकी शख्सियत निखरती जाती है। ख़ुद को बारहा ख़तरे में डाल कर, निश्चित दिखती मौत के मुंह से अपने को वापस खींच कर, अंततः वह वैसा बनने में कामयाबी पाता है, जो वह होना चाहता था। ख़ुद को जासूसी दुनिया के किसी फिक्शनल किरदार की तरह ड्वेलप करना और दुनिया भर के अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की सोच रखना उसका एक खब्त था— लेकिन यही अकेला खब्त नहीं था।
उसे प्रकृति से भी कम लगाव नहीं था, वह ज़र्रे-ज़र्रे में एक अप्रतिम सौंदर्य ढूंढने का जज़्बा रखता था। उसे सब्ज़ जंगलों से प्यार था, उसे सूखे रेगिस्तानों से प्यार था, उसे गहरे समंदरों से प्यार था, उसे गर्व से सीना ताने खड़े पहाड़ों से प्यार था। वह पूरी दुनिया को घूम लेना और देख लेना चाहता था— चप्पे-चप्पे को महसूस करना चाहता था और सृष्टि रचियता की उस कारीगरी को निहारना चाहता था, जो हर जगह थी… ज़मीन के हर हिस्से में थी।
लेकिन यह दो शौक ही नहीं थे, जो उसके सर पर खब्त की तरह सवार थे, बल्कि जितनी दिलचस्पी उसे इन दोनों चीज़ों में थी, लड़कियों में उससे कम दिलचस्पी नहीं थी। औरत के मामले में उसका अपना दर्शन था— वह ज़मीन के हर हिस्से में पाई जाने वाली, हर रंग और नस्ल की औरत को भोग लेना चाहता था लेकिन ऐसे किसी रिश्ते में बंधना उसे स्वीकार नहीं था, जो उससे ज़िम्मेदारी की डिमांड करता हो। लड़कियां उसकी कमज़ोरी थीं और उसने जवान होने के बाद से ही ‘आई कांट सी ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस’ के सिद्धांत को अपना रखा था— उसकी ज़िंदगी के ज्यादातर पंगे तो इसी सिद्धांत के चलते थे।
तो यह कैरेक्टर ड्वेलप होने के साथ वह सब पाता है, जो इसने पाना चाहा था, लेकिन जहां से इसकी यह फसादी यात्रा शुरू होती है— वहां इसके साथ कुछ चमत्कार जैसा घटा था… जब सात अक्तूबर की रात दिल्ली से मुंबई पहुंच कर वह अपने घर में सोता है और उठता है तो पाता है कि तारीख़ पंद्रह अक्तूबर हो चुकी थी, वह अपनी वास्तविक उम्र से पच्चीस-तीस साल बड़ा और अधेड़ हो चुका था, उसका शरीर भी काफ़ी हद तक बदल चुका था, मुंबई के बजाय अब वह न्यूयार्क में किसी जगह था, अपने घर के बजाय एक आलीशान घर में था और सबसे बड़ी बात कि अब वह डेविड भी नहीं रहा था, बल्कि न्यूयार्क के टॉप लिस्टेड अमीरों में से एक अमीर राईन स्मिथ बन चुका था।
अब ऐसा कैसे हुआ… सोते-सोते उसका शरीर, उसकी उम्र, उसकी जगह, उसकी हैसियत कैसे बदल गई— इस गुत्थी को सुलझाने का नाम ही ‘काया पलट’ है।
Kaya Palat
Ashfaq Ahmad
Published on April 29, 2024 06:21
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