Ashfaq Ahmad's Blog: Lafztarash - Posts Tagged "books-by-ashfaq-ahmad"

CRN-45

जिस हिसाब से दुनिया में बेतहाशा भीड़ बढ़ रही है... कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है... लोग प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपभोग करके उन्हें खत्म कर रहे हैं... और लगातार अपने लिये स्पेस बढ़ाते हुए बाकी सभी क्रीचर्स के लिये जगह और मौके सीमित करते जा रहे हैं, जिनसे हमारा इको सिस्टम प्रभावित हो सकता है... तो ऐसे में एक दिन कुदरत भी कोई मौका निकाल कर बदला लेने पर उतर आये तो?
अपने देश को देखिये... देश के लोगों को देखिये... क्या इन्हें एक नागरिक के तौर पर अपनी भूमिका की समझ है? क्या एक इंसान के तौर पर अपनी प्राथमिकताओं का पता है इन्हें? आपको व्यवस्था वैसी ही मिलती है जैसे आप होते हैं और अगर आप खुद ही समझदार और जागरूक नहीं हैं— तो यह तय है कि आपको सिस्टम भी वैसा ही लापरवाह मिलेगा।
ऐसी हालत में कोई डेडली वायरस इनवेशन हो तो? फिर वह वायरस नेचुरल हो या बायोवेपन... उससे ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारी व्यवस्था उस अटैक को संभाल पायेगी? क्या हमारे द्वारा चुनी गयी सरकारों ने हमें वह सिस्टम दिया है जो किसी मेडिकल इमर्जेंसी को संभाल सके? शायद नहीं... कल्पना कीजिये कि ऐसे ही किसी विश्वव्यापी वायरस संक्रमण के सामने हमारी व्यवस्था कैसी लचर साबित होगी और करोड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होंगे।
सीआरएन फोर्टी फाईव ऐसे ही एक विश्वव्यापी संक्रमण की कहानी है— जिसका शिकार हो कर दुनिया की तीन चौथाई आबादी खत्म हो गयी थी और गिने-चुने विकसित देशों को छोड़ कर सभी देशों की व्यवस्थायें इस त्रासदी के आगे दम तोड़ गयी थीं और त्रासदी से उबरने के बाद भी सभी सिस्टम कोलैप्स हो जाने की वजह से ऐसी अराजकता फैली थी कि लाखों सर्वाइव करने वाले लोग फिर भी मारे गये थे... और बचे खुचे लोगों में करोड़ों की भीड़ तो वह थी जो इस संक्रमण का शिकार हो कर अपनी मेमोरी पूरी तरह खो चुकी थी और ताजे पैदा हुए बच्चे जैसी हो गयी थी।
यह वह मौका था जिसने उन सभी दबंग, बाहुबली और ताकतवर लोगों के लिये संभावनाओं के द्वार खोल दिये थे जो इस त्रासदी के बाद भी अपनी ताकत सहेजे रखने में कामयाब रहे थे। उन्होंने व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेकर उनकी सूरत बदल दी... देशों के बजाय ढेरों टैरेट्रीज खड़ी हो गयीं और उन्होंने बची खुची आबादियों को नियंत्रित कर लिया।
लेकिन क्या यह व्यवस्थायें भी हमेशा कायम रह सकती थीं... एक न एक दिन तो कहीं न कहीं बगावत का बिगुल फूंका जाना तय था और यह कहानी एक ऐसी ही बगावत की है, जो दुनिया को वापस पहले जैसा बना देने की कूवत तो रखती है... लेकिन सभी पिछली गलतियों से सबक लेकर एकदम नये रूप में... उस रूप में जो प्रकृति के साथ संतुलन बना कर चल सके और बाकी सभी क्रीचर्स के सह-अस्तित्व को पूरा सम्मान देते हुए उन्हें उनके हिस्से का स्पेस और मौके उपलब्ध करा सके और एक नया एडवांस डेमोक्रेटिक सिस्टम स्थापित कर सके।
CRN-45
Ashfaq Ahmad
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Published on July 05, 2023 04:15 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

सर्वाइवर्स ऑफ़ अर्थ

कहानी है उस दौर की जब हम इंसानों ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते-करते उसे प्रतिक्रिया देने, पलटवार करने पर मजबूर कर दिया था और प्रकृति जब अपनी पर आती है तो इंसान जैसी ताकतवर प्रजाति का भी उसके सामने कुछ भी नहीं।
कहानी के केंद्र में चार लोग हैं जो दुनिया के चार अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। एक राजस्थान भारत का रहने वाला विनोद है— जो अपने आप से संघर्ष कर रहा है। उसे डिग्री हासिल करने के बाद जिंदगी की हकीकत से सामना करने के बाद अब अफसोस है कि उसने अपनी ऊर्जा अन्न हासिल करने के पीछे क्यों न लगाई, बजाय ज्ञान हासिल करने के… और वह पश्चाताप करने के लिये मां और बहनों के जिस्मों से गुजर कर उसके पेट तक पहुंचते अन्न को त्याग कर चल देता है जिंदगी के संघर्षों का सामना करने।
दूसरी ऑकलैंड न्यूजीलैण्ड में पैदा होने वाली एमिली है— जिसे न सिर्फ दूसरे कहते हैं बल्कि खुद उसने भी स्वीकार कर रखा है कि वह मन्हूस है। उसकी ईश्वर में कोई आस्था नहीं थी और न ही वह किस्मत को मानती थी लेकिन कभी इस पहेली को सुलझा नहीं पाई थी कि क्यों कोई अदृश्य शक्ति जैसे लगातार उस पर नजर रखती है और उसके बनते काम भी बिगाड़ देती है। वह इतनी मन्हूस थी कि मरने की कोशिशों में भी इस तरह नाकाम हुई थी कि जिंदगी में सजा के तौर पर उसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। कभी अमीर कारोबारी रहा पिता उसकी वजह से होने वाले नुकसानों की भरपाई करते-करते कंगाली की कगार पे पहुंच गया था तो उसने एमिली को घर से ही निकाल दिया था और अब वह आस्ट्रेलिया और आसपास के छोटे-छोटे देशों में रोजी रोटी के पीछे भटकती फिर रही थी लेकिन बुरे इत्तेफाक कहीं भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे।
तीसरा है माली में रहने वाला सावो— जो कभी नाईजर नदी के किनारे बसे एक खुशहाल कबीले में रहा करता था लेकिन बदलते मौसम ने उसे ऐसे ठिकाने लगाया था कि अब उसके लिये दाने-दाने के पीछे संघर्ष था और जो थोड़ा बहुत उसे मिल भी रहा था, उसकी जड़ में उसकी बहन थी, जिसके लिये उसने मान लिया था कि बहन पेट से बड़ी नहीं हो सकती। वह उस जमीन पर था जहाँ कोई फसल नहीं थी और जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर था लेकिन बदलते मौसम ने पूरी दुनिया में ऐसी तबाही फैला रखी थी कि खाद्यान्न उत्पादक देश भी अब बेबस हो गये थे और नतीजे में वे देश जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर थे, एक-एक दाने के लिये खूनी संघर्ष कर रहे थे। सावो भी बहन और अमेरिकी बेस के सहारे जो कुछ पा रहा था, वह इसी संघर्ष के हत्थे चढ़ जाता है और उसे फिर चल देना पड़ता है किसी नयी जमीन की तरफ।
चौथा कैरेक्टर है इजाबेल— जो कैनेडा की रहने वाली है और जहाँ एक तरफ तीन चौथाई दुनिया संघर्षों में फंसी थी, वहीं वह उन चंद लोगों में थी जिनके लिये इस बर्बादी में भी बेहतरी थी। इजाबेल हद दर्जे की कन्फ्यूज्ड कैरेक्टर है जो लड़कों की जिंदगी भी जीना चाहती है लेकिन अपने स्त्रीत्व से भी मुक्त नहीं होना चाहती और अंततः एक दोहरी जिंदगी जीती है। जहाँ निजी पलों में वह एक लड़की होती है, वहीं बाहरी दुनिया में वह एक लड़का होती है। उसके लिये अगर कोई चीज बुरी थी तो वह था मौसम… कनाडा ऊपरी ग्लोब पर होने की वजह से बेशुमार चक्रवाती तूफानों की चपेट में रहता है और बढ़ता समुद्री जलस्तर जहाँ बाकी दुनिया के तटीय शहरों को निगल रहा था— वहीं उसके शहर को भी उसने आधा कर दिया था और एक चक्रवाती तूफान के साथ जिस दिन पूरी तरह गर्क कर देने पर उतारू था। वह शहर छोड़ कर चल तो देती है लेकिन बदनसीबी ऐसी कि कुछ ऐसे लोगों के चक्कर में फंस जाती है जो मानव अंगों के व्यापारी थे।
चारों अपने-अपने सफर में हैं कि तभी प्रकृति अपना तांडव शुरू करती है और नव निर्माण से पूर्व के विध्वंस का सिलसिला शुरू हो जाता है। वह विध्वंस जो जमीनों को उखाड़ देता है, पहाड़ों को तोड़ देता है और समुद्रों को उबाल देता है। कुदरत हर निर्माण को ध्वस्त कर देती है और पृथ्वी एक प्रलय को आत्मसात कर के जैसे अपनी पिछली केंचुली को उतार कर एक नये रूप का वरण करती है।
यह चारों किरदार किस तरह मौत से लगातार जूझते और संघर्ष करते इंसानी जींस को इस कयामत से गुजार कर अगले दौर में ले जाते हैं और नयी पीढ़ी की बुनियाद रखते हैं… यह जानने के लिये आपको इस कहानी के साथ जीना पड़ेगा।
Survivors of the EarthSurvivors of the EarthSurvivors of the EarthAshfaq Ahmad
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Published on August 10, 2023 22:23 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

वन मिसिंग डे

कभी-कभी इंसान के साथ यह हादसा भी हो जाता है कि किसी झटके या चोट से उसकी मेमोरी का एक छोटा सा हिस्सा ही ग़ायब हो जाये और मुश्किल यह हो कि उसी हिस्से में कुछ बहुत महत्वपूर्ण राज़ दफन हो गये हों। ऐसा ही एक हादसा समीर के साथ होता है जब वह पूरा एक दिन ही भूल जाता है और उस दिन की उसकी गतिविधियां भी कम हंगामाखेज नहीं थीं।
उसकी जान के पीछे ऐसे लोग पड़ गये थे जो उसकी औकात से ही बाहर के लोग थे और उसके लिये वह सारे अजनबी लोग थे... उनका जो सबसे अहम सवाल था, वह भी उसके लिये एक अबूझ पहेली था जिसका कोई जवाब उसके पास नहीं था और उसकी अज्ञानता उसके बड़े अहित का कारण बन रही थी।
उसके पास सिवा इसके कोई चारा नहीं था कि वह किसी तरह हर जानने वाले से उस भूले हुए दिन की बिखरी-बिखरी बातें इकट्ठा कर के उनकी एक सिक्वेंस बनाये और उस अहम पल को खोजने की कोशिश करे जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल का जवाब छुपा था... लेकिन क्या यह आसान था?
उसकी दिमाग़ी हालत से वह लोग तो अनजान थे, जिन्हें उससे अपने किसी सामान की रिकवरी करनी थी और समीर की अपनी कोशिशों में वह हर जगह अड़ंगा लगाने की कोशिश कर रहे थे, जिससे उसका काम मुश्किल से मुश्किल होता जा रहा था। उसे उन लोगों से अपनी जान भी बचानी थी और उस खोये हुए दिन से वह राज़ भी खोज निकालना था जो उसकी जान का बवाल बना हुआ था।

One Missing Day
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 08:23 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

आतशीं & बुत-ए-अस्वा

यह एक महागाथा है इंसान और जिन्नात के बीच बनी उस कहानी की, जो जाहिरी तौर पर आपको अलग और अनकनेक्टेड लग सकती है, लेकिन हकीक़त में दोनों के ही सिरे आपस में जुड़े हुए हैं। इंसान की बैकग्राउंड पख्तूनख्वा की है, जहां आप पख्तून पठानों की सामाजिक संरचना के साथ उनके आपसी संघर्ष और जिन्नातों के साथ उनके इंटरेक्शन के बारे में पढ़ेंगे और जिन्नातों की बैकग्राउंड पश्चिमी पाकिस्तान से लेकर तुर्कमेनिस्तान, सीरिया और ओमान के बीच रेगिस्तानी और सब्ज़ मगर बियाबान इलाकों में बसी उनकी चार अलग-अलग सल्तनतों की हैं, जो कभी एक बड़ा साम्राज्य थीं।
पख्तूनों के बारे में मोटा-मोटी जानकारी यह है कि इनके सरबानी, ग़रग़श्त, ख़रलानी और बैतानी नाम के चार गुट होते हैं और हर गुट के 18 से 38 तक कबीले और उपकबीले होते हैं। मौखिक परंपरा के हिसाब से समस्त पख्तूनों के मूल पिता कैस अब्दुल रशीद के चार बेटों के नाम से बने कबीलों से यह गुट वजूद में आये, जिनमें आगे चल कर ढेरों शाखायें बनीं। इनमें ज़मन (बेटे), ईमासी (पोते), ख़्वासी (पर पोते), ख़्वादी (पर-पर पोते) के रूप में परिवार बनता है जिसे कहोल कहा जाता है। कई कहोल आपस में मिल कर एक प्लारीना बनाते हैं और कई प्लारीना मिलने से एक खेल बनता है और कई खेल का समूह त्ताहर यानि एक कबीला बनता है। यह जानने की ज़रूरत इसलिये है कि कहानी में इन बातों का ज़िक्र आ सकता है।
कहानी के केंद्र में इन्हीं के बीच के सदाज़ोई, हमार, आफरीदी, ख़सूर कबीलों से सम्बंधित बग़रात, माहेपोरा, कांवाबील, शाहेलार नाम की जागीरों वाले चार परिवार हैं जो अलग-अलग चारों गुट से हैं और स्वात, अपर-लोअर दीर के बीच बसे हैं... और उनके बीच भी ज़बरदस्त अंतर्विरोध है, जहां जान ले लेना एक मामूली बात समझी जाती है और औरत जीतने लायक चीज़ समझी जाती है, जिससे अपना वक़ार (सम्मान) बढ़ाया जा सकता है।
ठीक इनकी तरह ही जिन्नातों की भी भले अलग-अलग छोटी-छोटी ढेरों आबादियां हैं जिन्हें मिला कर अतीत में ग्रेटर अल्तूनिया नाम की एक सल्तनत खड़ी की गई थी, जो एक कर्स (श्राप) के चलते रखआन, अरामिन, पंजशीर और क़ज़ार नाम की चार अलग-अलग टैरेट्रीज में बंट गई। अब हर टैरेट्री न सिर्फ आंतरिक संघर्षों में उलझी हुई है बल्कि चारों आपस में भी जूझ रही हैं। अब जिन्नातों के बारे में भी मोटा-मोटा जान लीजिये कि यह होते क्या हैं और इनकी संरचना कैसी होती है।
किंवदंतियों के अनुसार यह इंसानों से अलग एक एंटिटी होती है जो यूं तो इंसानों से अलग बियाबानों में रहती है, और ज्यादातर इबादत में रत् रहती है। इनकी ज़िंदगी, मौत और पारिवारिक संरचना भी हमारे जैसी हो सकती है। कहा जाता है कि इंसान ही मरने के एक से आठ हज़ार साल बाद जिन्न बन जाता है और एक अलग आयाम में वास करता है जो यूं तो हमारे साथ ही एग्जिस्ट करता है लेकिन हम उसे नहीं देख पाते। हालांकि इनके बहुत से लोग हमारे बीच इंसानी शक्लों में ही रहते हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं जान पाते।
मूलतः यह चार कैटेगरी के होते हैं, जिनमें मुख्य प्रजाति इफरित होती है, यह जिन्न ठीक इंसानी तर्ज की सामाजिक संरचना रखते हैं और जिन्नातों से सम्बंधित जो भी कहानियां सुनी जाती हैं, वे इफरित जिन्नातों की ही होती हैं और प्रस्तुत कहानी में भी जो मूल जिन्नात हैं वे इसी कैटेगरी के हैं। इनके सिवा एक मरीद प्रजाति होती है... यह बड़े ताक़तवर और ख़तरनाक होते हैं, हवा में उड़ सकते हैं और इन्हें पानी के पास पाया जा सकता है। इनकी अवधारणा कुछ-कुछ पौराणिक यक्ष के जैसी ही है। इनके सिवा एक प्रजाति सिला भी होती है, इस प्रजाति में सिर्फ जिनी यानि महिला जिन्नात ही होती हैं। यह बेहद ख़ूबसूरत और आकर्षक होती हैं, उतनी ही बुद्धिमान भी... इन्हें यक्षिणी के सिमिलर रखा जा सकता है। जिन्नातों की चौथी मुख्य प्रजाति घूल होती है। यह गोश्तखोर और ख़तरनाक होते हैं और कब्रिस्तानों के आसपास पाये जाते हैं... आप तुलनात्मक रूप से इन्हें पिशाच समझ सकते हैं।
यह पूरा कांसेप्ट अरेबिक है और इस्लामिक मान्यताओं से जुड़ा है, इसके सच झूठ होने पर बहस हो सकती है, इसे शुद्ध रूप से अंधविश्वास भी कहा जा सकता है, लेकिन कहानी लिखने का उद्देश्य शुद्ध रूप से मनोरंजन होता है और प्रस्तुत कहानी भी ठीक इसी उद्देश्य से लिखी गई है। तो अगर आप तार्किकता और साइंटिफिक फैक्ट्स को साईड में रख कर मात्र मनोरंजन के उद्देश्य से कहानी को पढ़ेंगे, तो ही सही मायने में इसका आनंद ले पायेंगे।
इस कहानी के मूल में तीन प्रेम कहानियां हैं और उससे जुड़ा एक व्यापक संघर्ष है जिसकी जड़ में एक कर्स (श्राप) है। एक प्रेम कहानी वह है जो दो इंसानों के बीच है... एक प्रेम कहानी वह है जो दो जिन्नातों के बीच है और एक प्रेम कहानी वह है जिसमें एक इंसान और एक जिन्नात है... असली खेल इसी कहानी में है, क्योंकि यह एक ऐसी पेशेनगोई (भविष्यवाणी) पर टिकी है जिसके हिसाब से इन दो अलग-अलग दुनियाओं में चलता भीषण संघर्ष इसी की वजह से अपने अंजाम तक पहुंच कर खत्म होना था।
कहानी की बैकग्राउंड उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी है, जो पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक फैली है, और टाईमलाईन है जब अमेरिकी फौजों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था और देश के हर इलाके पर तालिबान का कब्ज़ा होता जा रहा था। स्वात, अफगान सीमा से लगा वह इलाका था, जहां तहरीक-ए-तालिबान के कई अलग-अलग गुट सक्रिय थे और पाकिस्तान आर्मी के साथ उनका लगातार संघर्ष होता रहता था। हालांकि इस इलाके में हावी टीटीपी वाले ही रहते हैं और फौज को अक्सर पीछे हटना पड़ता है। यह ग्रुप्स अफगानिस्तान वाले तालिबानियों से अलग होते हैं, और न सिर्फ इनके बीच आपस में झड़पें होती रहती हैं, बल्कि अफगानिस्तान वाले तालिबानियों से भी इनका संघर्ष चलता रहता है।
कहानी में इस्लामिक बैकग्राउंड के चलते उर्दू के शब्दों का भी अच्छा खासा प्रयोग किया जायेगा लेकिन कठिन शब्दों के हिंदी अर्थ ब्रैकेट में लिख दिये जायेंगे। कहानी का शीर्षक है आतशीं, जिसका अर्थ होता है आग से बना... दरअसल यह शब्द जिन्नात को रिप्रजेंट करता है, जिनके लिये कहा जाता है कि वे बिना धुएं की आग से बने होते हैं। अब चूंकि कहानी का मूल सब्जेक्ट यही प्रजाति है तो इसे दरशाने के लिये ही शीर्षक आतशीं दिया है। खरीद के लिये सभी लिंक्स कमेंट बाॅक्स में उपलब्ध हैं।

Aatashin
But-e-Aswa
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 08:25 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

ज़रा सा इश्क़

अमूमन अपने देश में लोगों के दो क्लास मिल जायेंगे— एक वे जो ज़िंदगी को जीते हैं और दूसरे वे जो ज़िंदगी को गुज़ारते हैं। जो गुज़ारते हैं, उनकी ज़िंदगी बड़े बंधे-टके ढर्रे पर गुजरती है। रोज़ सुबह उठना, नाश्ता पानी करना, खाना लेकर बतौर दुकानदार, रेहड़ी-फड़ के कारोबारी, कारीगर, नौकरीपेशा, मजदूर काम पर निकल लेना और दिन भर अपने काम से जूझना। रात को थक-हार कर घर लौटना और खा पी कर सो जाना— अगले दिन फिर वही रूटीन। रोज़ वही रोबोट जैसी जिंदगी जीते चले जाना और फिर जब शरीर थक कर चलने से इनकार करने लगे तब थम जाना। जरा सा एडवेंचर या एंजाय, शादी या कहीं घूमने जाने के वक़्त नसीब होता है और वे सारी ज़िंदगी रियलाईज नहीं कर पाते कि वे ज़िंदगी को जी नहीं रहे, बल्कि गुज़ार रहे हैं।
सुबोध ऐसे ही एक परिवार का लड़का है।
दूसरे वे होते हैं जो जिंदगी को जीते हैं, क्योंकि वे हर सुख सुविधाओं से लैस होते हैं। उन्हें जीविका कमाने के लिये दिन रात अपने काम-धंधों में, नौकरी में किसी ग़रीब की तरह खटना नहीं होता। जिनके हिस्से की मेहनत दूसरे करते हैं और जो बिजनेस और बढ़िया नौकरी के बीच भी अपने लिये एक वक़्त बचा कर रखते हैं, जहां वे अपनी ज़िंदगी को जी सकें। एंजाय कर सकें। हर किस्म के एडवेंचर का मज़ा ले सकें। उनके लिये जिंदगी कोई कोर्स नहीं होती कि बस एक ढर्रे पर उसका पालन करना है— बल्कि वह दसियों रंगों के फूलों से भरे गुलदस्ते जैसी है, जहां हर दिन एक नये फूल की सुगंध का आनंद लिया जा सकता है।
ईशानी ऐसी ही लड़की है।
अगर भीड़ से अलग करके देखें और जवानी को ही एक पैमाना मान लें तो भी इंसान दो तरह के होते हैं… एक वे जो स्पेशल होते हैं, शक्ल-सूरत में, शरीर में, हैसियत में— जिन्हें होश संभालते ही सबका अट्रैक्शन मिलता है। जो स्टार वैल्यू रखते हैं। जिनके आगे पीछे लड़के या लड़कियां फिरते हैं उनकी नज़दीकी पाने के लिये। जिन्हें पाने की हसरत जानें कितने दिलों में होती है और जिनके सपने जानें कितनी आँखों में पलते हैं। जो खास होते हैं— एलीट होते हैं। जिस महफ़िल में चले जायें— सब उन्हें नोटिस करते हैं।
ईशानी ऐसी ही लड़की थी।
वहीं कुछ वे लड़के या लड़की होते हैं जो बस भीड़ का एक हिस्सा भर होते हैं। जिनमें खास जैसा कुछ नहीं होता। जिनका शरीर साधारण होता है करोड़ों लोगों की तरह, जिनकी शक्ल साधारण होती है करोड़ों लोगों की तरह, जिनकी रंगत डल होती है और स्किन भी ऐसी कि आदमी दूर से देख के भी किसी लोअर क्लास, आम, गरीब के रूप में अलग कर ले। वे इतने ऑर्डिनरी होते हैं कि भीड़ में तो कोई क्या नोटिस करेगा, चार लोगों में भी खड़े हों तो भी कोई नोटिस न करे। जिन्हें काम के सिवा कहीं कोई अतिरिक्त तवज्जो नहीं मिलती। अरेंज मैरिज जैसी व्यवस्था न हो तो वे सेक्स पाने के लिये एक अदद पार्टनर को तरस जायें।
सुबोध ऐसा ही लड़का है।
अब यह कहानी है सुबोध और ईशानी की। सुबोध के सपनों की और ईशानी के दर्शन और एंबिशंस की। वे दो अलग दुनियाओं के लोग थे, दो अलग धरातल पर खड़े लोग थे। उनके बीच क्लास का, स्टेटस का ऐसा फर्क था जो कभी नहीं खत्म होने वाला था। ईशानी के लिये सुबोध के दिल में मुहब्बत पैदा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। जाने कितने सुबोध तो उसे पहली बार देखते ही अपना दिल दे बैठते थे— उसे अपने सपनों में बसा लेते थे। उसे चाह लेना नार्मल था लेकिन इस चाहत के बदले अगर वह ईशानी से कोई उम्मीद रखता तो वह नार्मल नहीं था।
ईशानी उसके लिये आसमान का चांद थी, जिसे देख कर वह उसकी हसरत कर सकता था, उसके ख्वाब देख सकता था, उसे पाने के लिये मचल सकता था— लेकिन रियलिटी तो यही थी कि वह चांद थी, जिसे पाना सुबोध जैसों के लिये एक नामुमकिन सपना देखने जैसी बात थी। सुबोध के लिये तो इतना भी बहुत होता कि कभी वह उसे नोटिस करती, उसे नज़र भर के देखती और कभी उससे सीधे मुखातिब हो कर एक बार 'हलो' ही कह देती। पूरे सात साल तो उसने इस उम्मीद में ही गुज़ार दिये थे।
लेकिन ईशानी की अपनी ज़िंदगी थी— जहां सुबोध जैसों के लिये भला क्या जगह होती, जब एक से बढ़कर एक अमीर, हैंडसम और स्टार वैल्यू वाले लड़के उसके आगे-पीछे नाचते हों। जिसकी बचपन से आदत रही हो, अपने लिये अच्छा और बेस्ट चूज़ करने की। जिसे साधारण, अनाकर्षक और बदसूरत लोगों और चीजों से हमेशा एलर्जी रही हो… वह भला सुबोध जैसों पर नज़र टिकाती भी तो क्यों टिकाती। वह एलीट क्लास की थी— उसकी पसंद एलीट थी।
लेकिन ज़िंदगी उसे ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां उसे न चाहते हुए भी एक नाटक करना पड़ता है— अपने घरवालों की ज़िद और दबाव से छुटकारा पाने के लिये ख़ुद को शादीशुदा प्रूव साबित करना पड़ता है और ऐसे नाज़ुक मौके पर उसके क्लास का कोई लड़का नहीं मिलता— मिलता है तो सुबोध, जो जाने कब से बस उसकी एक नज़र के लिये तरस रहा था। जानती थी कि उसके घरवाले सुबोध को नहीं एक्सेप्ट कर पायेंगे और यही तो वह चाहती भी थी।
लेकिन यह नाटक जब रियलिटी बनता है तब बहुत कुछ बदल भी जाता है। बदल जाता है लोगों का व्यवहार और इस नाटक से जुड़े लोगों की भावनाएं— इससे जुड़े सारे लोगों के सोचने का तरीका। ख़ुद सुबोध को ज़िंदगी में पहली बार खुद को लेकर आत्मविश्वास पैदा होता है… लेकिन अगर कुछ नहीं बदलता तो उसकी किस्मत। जो ईशानी से मिलने से पहले भी उसे अकेला किये थी, ईशानी के इतना पास आने के बावजूद उसे तन्हाई महसूस कराती थी और उस नाटक के खत्म होने के बाद भी जहां उसका सिंगल रहना ही लिखा था।
फिर पांच साल और यूं ही गुज़र जाते हैं— ज़िंदगी की नदी में और तमाम पानी बह जाता है। तमाम क़ीमती वक़्त और खर्च हो जाता है लेकिन वह जहां ठहरा था, वहीं ठहरा रह जाता है। उसके लिये ईशानी वह चीज़ थी, जिसकी जगह वह किसी और को देने को तैयार नहीं था और ईशानी तो अपनी ज़िंदगी जी रही थी, तरक्की के नये मकाम तय कर रही थी।
लेकिन ज़िंदगी उसे फिर एक मौका देती है, फिर एक इत्तेफाक पैदा करती है— ईशानी से मिलने का, उसके पास होने का, उसे पाने का। अब सवाल यह था कि क्या कभी उसका सपना पूरा भी हो पायेगा? दो ऐसे अलग धरातलों पर खड़े लोग एक हो भी पायेंगे? स्टार वैल्यू वाली ईशानी एक ऑर्डिनरी से सुबोध को कभी अपनी ज़िंदगी में शामिल करने के लिये तैयार भी हो पायेगी? जानने के लिये पढ़िये…

Zara Sa Ishq
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 19:28 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

वो लड़की भोली भाली सी & वो लड़की सयानी सी

वो लड़की भोली भाली सी

"वो लड़की भोली भाली सी" नाम सुन कर रोमांटिक कहानी लगती है, लेकिन ऐसा है नहीं... यह कहानी यूं तो थ्रिल, रोमांच और सस्पेंस से भरी है, लेकिन चूंकि पूरी कहानी एक ऐसी लड़की पर है जिसकी जिंदगी कहानी के दौरान एक सौ अस्सी डिग्री चेंज होती है, तो बस उसी बदलाव को इंगित करते हुए शीर्षक दिया गया है— वो लड़की भोली भाली सी। शुरुआत तो उसके भोलेपन और उसके शोषण से ही होती है लेकिन फिर मज़बूत होने के साथ वह बदलती चली जाती है।
अब कहानी चूंकि थोड़ी कांपलीकेटेड है तो शुरु करने से पहले सभी पाठकों के लिये कुछ बातों पर गौर करना जरूरी है, जिससे आपको सभी सिरों को समझने में मदद मिलेगी।
सबसे पहली और मुख्य चीज़ यह है कि यह कहानी वेब सीरीज के परपज से लिखी गई है, तो इसके दृश्यों की सिक्वेंस भी उसी तरह से रखी गई है... हालांकि लिखने में नॉवल का फार्मेट ही इस्तेमाल किया गया है न कि स्क्रीनप्ले का, लेकिन फिर भी आपके लिये यह जानना ज़रूरी है कि कहानी कहने का तरीका क्या है, इसी से आप अलग-अलग टाईमलाईन में चलते दृश्यों को ठीक से समझ पायेंगे।
मूलतः कहानी तीन अलग-अलग टाईमलाईन में चलती है जिसमें दो हिस्से एकदम अनकनेक्टेड लग सकते हैं लेकिन ऐसा है नहीं और कहानी के अलग-अलग सभी सिरे कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए ही हैं। हर टाईमलाईन के साथ तारीख मेंशन की गई है, जिस पर पढ़ते वक़्त आपको खास ध्यान रखना है, अन्यथा आप बुरी तरह कनफ्यूज्ड हो जायेंगे।
अगर कहानी के मुख्य पात्रों की बात की जाये तो कहानी के केंद्र में एक फीमेल पात्र है, जिसके कई रूप हैं और कई नाम हैं, एक से ज्यादा शेड है। विकास अहलावत नाम का एक पुलिस इंस्पेक्टर है, जिसकी अपनी जिंदगी बीवी और उसके आशिक के बीच बुरी तरह उलझी हुई है, लेकिन प्रोफेशनली उसे एक ऐसे मर्डर केस को सॉल्व करना है— जिसमें बंद घर में मकतूल के आसपास मौजूद पाये गये लोगों में कोई भी अपराधी नहीं साबित होता और न उनसे हत्यारे तक पहुंचने में कोई मदद ही मिलती है।
एक क्राईम वर्ल्ड से रिलेटेड शख़्स संदीप चौरसिया है जिसके अतीत में बड़े पेंच हैं। आतिफ, अनिर्बान, सुनील और माधुरी नाम के किरायेदार हैं, और सलीम, दयाल और माया नाम के मेहमान— जिनकी मौजूदगी मगर बेखबरी में मकान मालकिन की हत्या हुई। एक तरफ़ कहानी वर्तमान से अतीत की तरफ़ जाती है, तो दूसरी तरफ़ अतीत से वर्तमान की तरफ़ आती है और इन दोनों ही टाईमलाईन में आगे-पीछे होते हुए ऐसे ही ढेरों कैरेक्टर्स अवतरित होते रहते हैं।
चूंकि कहानी वेब सीरीज के परपज से शुद्ध मनोरंजन के लिये लिखी गई है तो इसके किरदार रियलिस्टिक वर्ल्ड से जैसे के तैसे लिये गये हैं, उनसे बहुत ज्यादा नैतिकता की अपेक्षा न रखियेगा, वे देवता तुल्य नायक या देवी तुल्य नायिका की बाउंड्री से बाहर हैं और ज्यादातर किरदार ग्रे शेड के हैं। दूसरे, कहानी में कोई मैसेज नहीं है कि उसके नाम पर इसे जस्टीफाई किया जाये। बस मनोरंजन परोसने के नजरिये से लिखी गई कहानी है— तो इसे इसी उद्देश्य तक सीमित समझिये।
कहानी दो लाख से ऊपर वर्ड्स की है, इसे एक भाग में समेटना ठीक नहीं था, तो इसके दो पार्ट्स कर दिये हैं और कहानी का दूसरा पार्ट 'वो लड़की सयानी सी' भी इसी कहानी के साथ पब्लिश की गई है, ताकि पाठक को इंतज़ार न करना पड़े और वह एक साथ पूरी कहानी का आनंद ले सके।


वो लड़की सयानी सी


यह कहानी उस सिलसिले को आगे बढ़ाती है जो 'वो लड़की भोली भाली सी' से शुरु हुआ था और अपने अंजाम तक पहुंचती है। सुहाना या संदीप के अतीत में जो कुछ भी हुआ था, वह धीरे-धीरे विकास की इन्क्वायरी के ज़रिये सामने आता रहता है। उन दोनों की ज़िंदगी में ढेरों पेंच थे, ढेरों उलझनें थीं और उनमें सबा को उन सबसे डील करते हुए, एक सरकारी मिशन के तहत अपनी एक जगह बनानी थी— और जिसके लिये वह हर स्तर तक जाती है।
पिछले भाग में जहां कहानी तीन अलग टाईमलाईन में चली थी, वहीं इस भाग में कहानी दो अलग टाईमलाईन में चलती है और जहां सबा के सफ़र के साथ अतीत का एक कालखंड सामने आता रहता है, जहां वह शोषण से भरे बचपन से उबरते हुए एक ताक़तवर संगठन में घुसपैठ करती है और धीरे-धीरे शीर्ष तक पहुंचती है, जहां पहुंच कर उसे फिर एक मौका मिलता है, एक नये अवतार को ग्रहण करने का… वहीं वर्तमान में विकास की खोजबीन के साथ उस अतीत के उलझे हुए सिरे धीरे-धीरे खुलते रहते हैं और एक बिखरी-बिखरी सी कहानी परिपूर्णता लेते हुए सामने आती है।
उस गुमशुदा अतीत में कुछ ऐसा था, जिसने गोवा को अपने मज़बूत पंजों में जकड़े बादेस से मुक्ति तो दिला दी थी, लेकिन अपना वक़्त लेकर, संभलने के बाद वह फिर से खड़े होने की कोशिश करती है और उसके बचे हुए बागी सिपहसालारों को फिर उसके झंडे के नीचे आना पड़ता है। उसी गुमशुदा अतीत में एक बहुत बड़ी रकम भी गुम हुई थी, जिसका कोई पता ठिकाना नहीं था और अब जैसे वह सारे लोग उसी की तलाश में थे— जो उसके बारे में जानते थे। वे उस रकम के लिये किसी भी हद से गुज़रने को तैयार थे।
जो गोवा में होता है, वही अंतिम मोड़ पर दिल्ली में होता है और अतीत में आपस में असम्बंधित रहे विकास, टोनी, बब्बू, माया और आरज़ू सब एक दूसरे के सामने प्रतिद्वंदी के तौर पर आ खड़े होते हैं— जहां ख़ुद सर्वाईव करने के लिये दूसरे को खत्म करना ज़रूरी हो जाता है। अब सवाल यह था कि उस अंतिम दौर में कौन मरता है और कौन बचता है?

Wo Ladki Bholi Bhali Si
Wo Ladki Sayani Si (Wo Ladki Bholi Bhali Si Book 2)
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 19:35 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

फेक कपल

आसिफ और अरीबा— कहानी के दो मुख्य किरदार, जो एक दूसरे से अजनबी थे, जो एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं जानते थे और जिनके मिज़ाज और आदतें ज्यादातर एक दूसरे से अपोजिट थे… उनकी ज़िंदगी में एक मोड़ आता है जब उन्हें मुंबई जैसे महानगर में सिर्फ रहने की ग़रज से एक मनपसंद ठिकाना पाने के लिये आपस में एक समझौता करना पड़ता है— रहने की शर्त के मुताबिक ख़ुद को मियां-बीवी बताने का, दिखाने का, और ज़रूरत पड़े तो इस रिश्ते को साबित करने का।
लेकिन क्या यह कैसे भी आसान था? जब वे एक दूसरे से इतने अलग थे, उनके काम अलग थे, उनके सपने, उनके गोल अलग थे और उनके मिज़ाज अलग थे। कई मौकों पर उनके बीच झगड़ने तक की नौबत आ जाती— लेकिन यह झगड़े भी उन्हें हकीक़ी मियां-बीवी ही साबित करते। शायद ऐसे ही तो होते हैं असलियत के पति-पत्नी— एक दूसरे से अलग, मगर एक दूसरे के साथ निभाने की जद्दोजहद करते। वे असल में जितने अलग दिखने की कोशिश करते थे— उतने ही वे एक लगते थे।
दोनों की आर्थिक स्थिति भी अलग थी— आसिफ जहां एक निम्न वर्गीय परिवार से था, जिस पर इतनी ज़िम्मेदारियां लदी हुई थीं कि वह ख़ुद के बारे में सोचना ही भूल गया था, ख़ुद की जरूरतों को दरकिनार कर दिया था और एक लंबे अरसे से अच्छा बेटा और अच्छा भाई होने की जैसे अंतहीन जद्दोजहद में उलझा हुआ था— वहीं अरीबा एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती, एक अच्छे खाते-पीते मगर ऑर्थोडॉक्स टाईप घराने से ताल्लुक रखती थी, जहां लड़की होने का मतलब ज़रूरत भर पढ़ाई, फिर शादी और चूल्हे-चौके के इर्द-गिर्द सिमटी, पति की सेवा और बच्चों की परवरिश भर होता था और वह इस सोच के ही खिलाफ थी, और अपने घर-खानदान में सबसे अलग कुछ कर दिखाने के ख़ब्त से भरी थी।
किसी और के लिये शायद ऐसी सोच को ख़ब्त कहना ठीक न होता लेकिन अरीबा के लिये यही शब्द ठीक था… जो वह करना चाहती थी, वह उनके लिये भी नामुमकिन की हद तक मुश्किल होता है जिन्हें फैमिली सपोर्ट मिलता है तो उसके लिये तो लगभग नामुमकिन ही था, जिसे बस एक साल का वक़्त और ज़रूरत भर पैसे दिये गये थे ख़ुद को साबित करने के— और वह भी कई शर्तो के साथ। उन शर्तों में एक शर्त वह भी थी, जिसे निभाने की मजबूरी में उसे आसिफ के साथ शादीशुदा होने का दिखावा करते, रहने के लिये वह जगह हासिल करनी पड़ रही थी जो उसके घर वालों के दिये क्राइटेरिया पर खरी उतरती थी। बात सिर्फ दो-चार दिन की होती तो भी आई-गई हो जाती लेकिन उसे तो एक अजनबी मर्द के साथ बाकायदा लंबे वक़्त तक रहना था— बतौर बीवी।
फिर यह कहां आसान था कि एक बेडरूम को शेयर करते, उन दोनों की भावनायें एक दूसरे के लिये अछूती रहतीं? दो अजनबियों का यूं साथ-साथ रहना, एक कमरे में रहना, कब तक उन्हें एक दूसरे से दूर रखता— वह भी ऐसी हालत में जब उनका कहीं और कोई कमिटमेंट भी न हो। यह तो आग और पेट्रोल के आसपास रह कर भी अप्रभावित रहने वाली बात होती, जो मुमकिन ही नहीं थी— न उनके लिये ही बहुत दूर तक और बहुत देर तक एक दूसरे के आकर्षण से मुक्त रह पाना मुमकिन था… लेकिन एक दूसरे की आग में जलने में भी कम अड़चनें कहाँ थीं?
ज़िंदगी ऐसे ही थोड़े सबकुछ आपको दे देती है, जो आपको चाहिये होता है— बल्कि हर अहम हासिल के बदले सख़्त इम्तिहान लेती है। अक्सर लोग नाकाम रहते हैं इन इम्तिहानों में— और अक्सर कामयाब भी होते हैं। उन दोनों की किस्मत में क्या था? नाकामी या कामयाबी? मिलना या बिछड़ना? यह जानने के लिये तो आपको इस हसीन सफ़र पर उनके साथ चलना होगा— उनके साथ जीना होगा। उनके हर तजुर्बे और हर अहसास में हिस्सेदारी करनी होगी, जहां बहुतेरी बातें आपके मन को गुदगुदायेंगी तो बहुतेरी बातें आपको क्षणिक तनाव भी देंगी।
फिर कहानी में इन दो किरदारों की ही ज़िंदगी नहीं उकेरी गई है, बल्कि और भी कई किरदार हैं, जिनके पास अपने तल्ख या खुशगवार तजुर्बे हैं, अपने किस्से हैं, जो कभी मुस्कुराने की वजह देते हैं तो कभी आँख नम करने की ताक़त भी रखते हैं। हर किरदार, जो इस कहानी का हिस्सा है— अपनी जगह अहम है। तो आइये, शुरू करते हैं इन सब किरदारों के साथ एक हसीन सफ़र।

Fake Couple
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 19:47 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

लिलिथियंस

कुछ अजीब सा नाम है न? समझना भी मुश्किल है कि इसका क्या मतलब हो सकता है और उस मतलब का इस कहानी से क्या ताल्लुक हो सकता है। चलिये, कहानी शुरु करने से पहले इस नाम को और इसके संदर्भ को समझ लेते हैं, ताकि आगे कहानी समझने में आसानी हो। इसके लिये हमें अब्राहमिक धर्मों के मूल कांसेप्ट में जा कर एक किरदार को जानना होगा, जिसका नाम लिलिथ है।
हममें से अधिकांश लोग शायद लिलिथ नाम के उस कैरेक्टर से परिचित न हों, जो मूल बाईबिल के हिसाब से आदम के साथ बनाई गई संसार की पहली नारी थी, लेकिन जो मर्द के नीचे नहीं, बल्कि ऊपर रहना चाहती थी और बजाय मर्द के अपना डॉमिनेंस चाहती थी। उसे एडम के डॉमिनेंस में रहना मंजूर नहीं था, और वह एडम को स्वर्ग में छोड़ पृथ्वी पर भाग आती है— जिसके बाद यहुवा एडम की पसली से ही ईव का सृजन करता है ताकि प्रतीकात्मक रूप से यह स्थापित हो सके कि नारी, नर से बनी है और नर के लिये बनी है, जिससे आगे चल कर मर्द की सत्ता को स्वीकारने में उसे कोई बाधा न आये। सारा संसार इस ईव को बाईबिल के हिसाब से ही पहली औरत मानता है।
लेकिन जैसा कि रिवाज़ है कि इस संसार में जहां हर तरह के लोग हैं— तो उस लिलिथ में विश्वास रखने वाले भी लोग हैं, फिर भले लिलिथ को ऐविल पॉवर या शैतान की संज्ञा क्यों न दी गई हो। जब दुनिया में सीधे शैतान को पूजने वाले समुदाय हो सकते हैं तो लिलिथ के वे उपासक भी हो सकते हैं, जो मानते हैं कि एक दिन लिलिथ अंधेरों से निकल कर आयेगी और सारे संसार पर हुकूमत करेगी। ऐसी ही मान्यता में विश्वास रखने वाले, और उसे देवी की तरह पूजने वाले एक कल्ट का नाम है "लिलिथियंस", जो इस कहानी के केंद्र में है। इस कल्ट के लोग एक मिशन पर हैं और पूरी कहानी उसी मिशन से जुड़े संघर्ष को उकेरती है।
इन लिलिथियंस की कमान संसार के कुछ ऐसे ताक़तवर लोगों के हाथ में है, जिन्हें सामान्यतः इलुमिनाती से जोड़ा जाता है और वे दुनिया के लगभग हर बड़े फैसले में शामिल रहते हैं। उनकी इस दुनिया और इस सृष्टि को लेकर अपनी ही एक अलग थ्योरी है, जिसके अकार्डिंग वे एक ऐसे समझौते से बंधे हैं, जिसके चलते उन्हें पूरी दुनिया के माहौल में किसी न किसी तरह उथल-पुथल मचाये रखनी है, जिससे उस हायर बीईंग को एनर्जी मिलती है, जो फीड करती है लोगों के लालच, डर, नफरत, क्रोध, खून-खराबे और मौतों से— और बदले में इस वर्ग को नवाज़ती है बेशुमार पैसे और ताक़त से। इस थ्योरी के हिसाब से हमारी औकात एक बैक्टीरिया भर की है और हम उस हायर बीईंग के शरीर में वैसे ही वास करते हैं, जैसे हमारे ख़ुद के शरीर में बैक्टीरिया और वायरस अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं।
उस हायर बीईंग के साथ हुए उस समझौते के अनुसार उन्हें हर कुछ सालों में ऐसा कुछ करना है, जिसके चलते पूरी दुनिया प्रभावित हो, बड़े पैमाने पर केआस फैले, खास कर योरप के उन इलाकों में, जहां लोगों को अमूमन किसी तरह के संघर्ष से नहीं जूझना पड़ता है, बल्कि हैप्पीनेस इंडेक्स में जो अग्रणी रहते हैं और उस हायर बीईंग के हिसाब से वे उसके लिये सबसे ज्यादा यूज़लेस देश और लोग हैं। युद्ध या कोई बड़ा संक्रमण, कुछ भी उन्हें इस इलाके में चाहिये ही चाहिये और यह सब एक के बाद एक होता है और इसी कोशिश में एक संक्रमण कोरोना की तरह ही बेलगाम हो कर पूरे योरप को निगलना शुरु कर देता है— अब सवाल यह भी है कि पूरी तरह फैल कर भी यह बस योरप तक ही सीमित रहेगा या कोरोना की तरह ही पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेगा?
इस कहानी के केंद्र में सिर्फ लिलिथियंस ही नहीं हैं, बल्कि भारत के एक अमीर घराने में जन्मे दो भारतीय युवक आरव और अहान भी हैं, जो अनजाने में ही इस जानलेवा चक्कर में उलझते चले जाते हैं। वे दोनों भाई थे और जहां आरव पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद और पर्सनैलिटी के हिसाब से एक स्टार किड था, वहीं आरव एक कलात्मक रूचि वाला एवरेज शख़्स, जो अपने भाई की स्टार पर्सनैलिटी के हिसाब के नीचे दब के कहीं खो कर रह गया था और इस चीज़ ने उसमें एक हीनता पैदा कर दी थी, जिसकी वजह से उसके व्यक्तित्व में आई नकारात्मकता ने उसे घर वालों से और दूर कर दिया था।
आरव के लिये तो सबकुछ मयस्सर था, एक बढ़िया नौकरी के सिलसिले में वह स्वीडन जाता है और स्वीडन से ही उसकी ज़िंदगी में उथल-पुथल शुरु हो जाती है, जो उसे फिनलैंड ले जाती है, जहां आखिरकार वह ग़ायब हो जाता है और जब अरसे तक उसकी कोई ख़बर नहीं मिलती और उसकी वजह से माँ-बाप हलकान हो जाते हैं, तब न चाहते हुए भी अहान अपने भाई को वापस लाने की ज़िम्मेदारी अपने सर लेता है और निकल पड़ता है अपने उस भाई की खोज में, जिसने स्वीडन से फिनलैंड तक अपने पीछे ढेरों निशान छोड़े थे— जिन्हें ट्रेस करते अहान को धीरे-धीरे, टुकड़ों में पता चलता है कि उसके भाई के साथ क्या हुआ था और वह कहाँ-कहाँ से गुज़रा था।
इस खोज में जो उसके साथ होते हैं, वह उन्हें नहीं जानता, लेकिन उनकी मदद उसे बराबर मिलती रहती है— हालांकि वह यह ठीक से समझ भी नहीं पाता कि वे दोस्तों में थे या दुश्मनों में… और धीरे-धीरे चलते उसकी खोज के इस सफ़र का जहां अंत होता है— वहां से एक नये काल की शुरुआत हो रही थी, जो आगे पूरी दुनिया को हदसाने वाला था। अब सवाल यह है कि आरव के साथ आखिर क्या हुआ था, और वह कहां खो गया था? अहान उसकी तलाश में निकला तो था, लेकिन क्या वह उसके जीतेजी उससे मिल भी पाता है? क्या अंत होता है उसकी खोज का और कैसी शुरुआत थी उस अंत से जुड़ी जो आगे पूरी दुनिया के लिये आफत बनने वाली थी?

Lilithiyans
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 20:15 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

कहानी जंक्शन

वस्तुतः "कहानी जंक्शन" एक कहानी संग्रह है, जहां अलग-अलग सात कहानियों को आकार दिया गया है। इस कहानी संग्रह में सभी सात कहानियां किसी न किसी सामाजिक मुद्दे से जुड़ी हैं और सभी अंधेरे और अवसाद की स्थिति से निकाल कर रोशनी की ओर ले जाती हैं और एक उम्मीद की किरण जगाती हैं। यह मुद्दे हमारे आसपास के है, हमारे जानने वालों के हैं, हमारे घरों के हैं। जब पढ़ेंगे तो हर कहानी से आपको कोई जानी-पहचानी सी गंध आयेगी।
संग्रह की पहली कहानी 'बाग़ी लड़कियां’ है, जो दो ऐसी लड़कियों के अपने संघर्ष की दास्तान है, जिन्हें अपने आसपास सदियों से पनपता आ रहा पुरुष वर्चस्ववाद स्वीकार नहीं था। जो किसी मर्द के साये से इतर अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व, अपनी एक अलग पहचान गढ़ना चाहती थीं। अपने हर फैसले के पीछे उन्हें अपने ही लोगों का विरोध झेलना पड़ता है, लेकिन हर बाधा को पार करते वे आगे बढ़ती जाती हैं— मगर एक मकाम वह भी आता है, जहां सबकुछ अचीव कर लेने के बाद उन्हें अपने भविष्य को लेकर कोई ठोस निर्णय लेना था और वे फिर एक ऐसा निर्णय लेती हैं, जो उन्हें फिर सबके निशाने पर लाने वाला था।
दूसरी कहानी ‘अधूरी’ समाज में अपनी पहचान को लेकर जूझती एक लड़की की है, जिसमें एक अधूरापन मौजूद था और जिसकी वजह से वह एक सामान्य जीवन कभी नहीं जी पाती और उसे क़दम-क़दम पर उपेक्षा और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। उसे एक उम्मीद दिखती भी है तो एक ऐसे आवारा लड़के में, जो अपने शौक और अपनी हरकतों को लेकर न सिर्फ ज़माने भर में बदनाम था, बल्कि जिसका कोई भविष्य भी नहीं था— लेकिन उसे यक़ीन था कि दुनिया में वही एक ऐसा इंसान है जो उसकी कमी को लेकर कभी उससे नफरत नहीं करेगा, कभी उसका तिरस्कार नहीं करेगा।
संग्रह की तीसरी कहानी है ‘उजले जीवन की स्याह सांझ’… यह एलीट वर्ग के उस एकाकीपन को रेखांकित करती है, जिससे अक्सर स्टेटस के पीछे पगलाए छोटे शहरों के अमीर लोगों को जूझना पड़ता है, जब उनके बच्चे तो एक कामयाब ज़िंदगी जीते किसी मेट्रो सिटी या विदेश में सेटल हो जाते हैं और उनके हिस्से जीवन के संध्याकाल में एकाकीपन आता है। यह कहानी ऐसे ही एकाकीपन के अभिशाप को भोगते एक ऐसे इंसान की है, जो अपनी नियति को बदलने की ठान लेता है और बचे हुए निरर्थक जीवन को गौरवपूर्ण ढंग से खत्म करने के लिये एक अलग ही रास्ता अख्तियार करता है।
‘अंधेरे से उजाले की ओर’ इस संग्रह की चौथी कहानी है, जो अपनी अपंगता के चलते निराशा और अवसाद में घिरे और पल-पल ख़ुद को खत्म करते, एक शख़्स के अंदर आने वाले उस बदलाव को दरशाती है— जिसकी ज़िंदगी में, अपनी ज़रूरत के मद्देनज़र, एक झूठ के सहारे घुसपैठ करने वाली लड़की ने ऐसी हलचल मचाई थी कि उसे अपने नकारात्मक विचारों से निकल कर दुनिया को सकारात्मक ढंग से जीने के लिये एक सही रास्ता मिल गया था और सही मायने में वह अपनी अपंगता को स्वीकार करके उसके साथ खुशी-खुशी जीना सीख पाया था।
‘कनेक्शन’ इस संग्रह की पांचवी कहानी है… यह कनेक्शन है इंटरनेट के सहारे जुड़े दो अजनबियों के बीच का, जो अपनी-अपनी जगह एक खालीपन से भरी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। वे उस ज़िंदगी को ठीक से स्वीकार नहीं कर पाते, उन्हें दस शिकायतें भी रहती हैं, लेकिन उनमें उसे बदलने का हौसला भी नहीं है, और वे बस ऐसे ही उसे जीते चले जाना चाहते हैं— लेकिन उनके बीच बने कनेक्शन से उन्हें अपने दर्द के साझा होने का अहसास होता है, एक दूसरे से थोड़ी प्रेरणा मिलती है उन्हें और ज़िंदगी में थोड़ा रस महसूस होता है। वे आखिर तक यह फिर भी तय नहीं कर पाते कि उनके इस जुड़ाव का भविष्य क्या है।
इस संग्रह की छठी कहानी है ‘मधुरिमा’, जो पचास साल की एक ऐसी औरत की कहानी है जिसने अपनी ज़िंदगी में बड़े दुख झेले थे, बड़ा संघर्ष किया था और हर मुश्किल से जूझते हुए अपनी सभी जिम्मेदारियां निभाने में कामयाब रही थी, लेकिन उन जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद अब वह अपनी ज़िंदगी को फिर से जीना चाहती है, अपनी दबी हुई अधूरी इच्छाओं को पूरा करना चाहती है, उन सपनों को अमली जामा पहनाना चाहती है जो उसने कभी देखे थे, और इसके लिये वह अकेली ही घर से निकल खड़ी होती है।
संग्रह की सातवीं और आखिरी कहानी है ‘मज़हबी कुफ्र’… वस्तुतः यह रूपकों के सहारे कही गई कथा है, जिसके ज़रिये एक संदेश देने की कोशिश की गई है कि असल में धर्म क्या है, इसका सार क्या है, इसे किस तरह लेना चाहिये और एक इंसान के तौर पर कैसा आचरण होना चाहिये— जो धर्म के सकारात्मक पहलू को दुनिया के सामने रखे, न कि उसे दूसरों की नज़र में एक नकारात्मक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत करे।

कहानी जंक्शन/Kahani Junction
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 21:20 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

आसेब

'आसेब' हॉरर श्रेणी की पांच अलग-अलग कहानियों का संकलन है, जिसमें लंबाई के हिसाब से कहानियों को क्रमवार रखा गया है और इस श्रेणी की कहानियों में दिलचस्पी रखने वालों के लिये सभी कहानियां एक अलग ज़ायका रखती हैं। यह उन पारंपरिक भूत-प्रेत की कहानियों से थोड़ी अलग हो सकती हैं, और थोड़ी अधूरी भी लग सकती हैं— लेकिन यह अपने आप में पूर्ण हैं। इनके अलग-अलग अंत आप अपने हिसाब से कुछ भी सोच कर मान सकते हैं— इसे पाठकों की समझ पर छोड़ा गया है।
संकलन की पहली कहानी 'खबीस' है जो एक शापित अमरत्व को ले कर है, जहां सदियों से जीता एक अनाम किरदार लगातार ज़िंदा रहने के साथ, जीवन के सभी रसों का सुख लेने के लिये, लोगों की उम्र और ज़िंदगी चुराने का एक अलग सा रास्ता चुनता है और उसके शिकार होते हैं वे समर्थ लोग— जो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में वास करते हैं, ताकि उनके सहारे वह निर्बाध विचरण करता रह सके और कभी कोई उसके इस खेल की तह तक न पहुंच सके।
'डार्क टूरिज्म' इस संकलन की दूसरी कहानी है… यह दुनिया में प्रचलित होते एक नये तरह के ट्रेंड, डार्क टूरिज्म को परिभाषित करती है कि कैसे लोग उन जगहों की तरफ़ आकर्षित होते हैं, जिनके साथ कुछ बुरी घटनाएं या पैरानार्मल एक्टिविटीज से जुड़ी कहानियां प्रचारित होती हैं— और उन जगहों पर रात गुज़ार कर ऐसा कुछ एक्सपीरियेंस करना चाहते हैं। इस कहानी में लंदन में रहने वाले एशियाई दोस्तों का एक ग्रुप ऐसे ही डार्क टूरिज्म में नये लिस्ट हुए एक हांटेड प्लेस के आकर्षण में फंस कर वहां तीन दिन रहने के लिये पहुंच जाता है, लेकिन पहली रात के शुरु होते ही उन्हें यह समझ में आ जाता है कि अपने एडवेंचर के चलते वे एक ऐसी रियलिटी में फंस चुके हैं, जहां वह सब चीज़ें वास्तविक हैं, जिन्हें वे बस अफवाह या भ्रम भर समझते थे।
संकलन की तीसरी कहानी 'नाईट वाकर' है, जो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो दसियों साल पहले किन्हीं शैतानों का शोषण सहते-सहते बेमौत मर गई थी, लेकिन जिसे कभी सुकून न नसीब हुआ और अब वह शरीर दर शरीर भटकती फिर रही थी। 'वह कौन थी' एक ऐसी लड़की की बेचैन आत्मा की कहानी है, जिसकी मौत तक अंधेरे में दफन कर दी गई थी और अगर वह ख़ुद न कोशिश करती तो यह कभी न सामने आ पाता कि उसके साथ क्या हुआ था। 'रोज़वेल मेंशन' इस संग्रह की पांचवी और आखिरी कहानी है— जो एक घर में मौजूद अलग रियलिटी की कहानी है। जहां रात गुज़ारने वाला भले शारीरिक रूप से अपनी दुनिया में ही रहता था, लेकिन दिमाग़ी तौर पर वह अलग रियलिटी में चला जाता था, जहां से कभी वापसी नहीं हो पाती।

Aaseb
Ashfaq Ahmad
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Published on October 29, 2023 21:22 Tags: books-by-ashfaq-ahmad

Lafztarash

Ashfaq  Ahmad
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