पाती आपको...ज़िक्र रिश्ते का ।।
मेरे प्रियतम,सर्वप्रथम बताना चाहूँगा कि मैँ यहाँ अत्यन्त प्रसन्न और कुशलपूर्वक हूँ और यकीं है आपकी जिन्दगी के सफर के साक्षी पलोँ मेँ भी ऐसी ही मिठास घुली हुई होगी और आशा करते हैँ हमेशा महकती फ़िजा का साया आप पर रहे । यद्यपि हर गुजरता लम्हा मुझे अपने अस्तित्व के दामन मेँ इक कमी का ऐहसास कराता है और ये शान्त दिल इक ठहराव स्वीकार कर अनायास ही जाहिर कर देता है कि यह कुछ और नही वल्कि आप ही हैँ जो इस अनोखे तार से मुझे झंकृत किये रहते हो । यही बो सब है जो मुझे किसी भी शिक़वे से अछूता रखता है क्योँकि यही रिक्ति आपके अति क़रीब होने का आभास और विश्वास दिलाती है । पागल मन मानवीय संवेदनाओँ से ओतप्रोत हो अक्सर प्रश्नोँ के उत्तर पाने की हठ करता है और शब्दोँ की फुहार मेँ भीँग जाने की पुरजोर कोशिश करता है पर आपके और मेरे एकीकरण का सागर उस हठीले और बिगडैल मन को अति संतृप्त कर देता है । हालांकि प्रकृति की अनूठी माँसपेशियोँ मेँ गुथी गाँठो का यन्त्र जिसके प्रकाशपुँजोँ से प्रकाशित होता पल पल और हर संवेदना का अनुभव कराते ज्ञानचक्षुओँ का मैँ अत्यधिक आभारी तथा शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होने आपके प्रत्येक अक्श और सिहरन का निष्कपट बखूबी संपादन किया है । आज अपने श्रवणयन्त्रोँ से अपने रब दी अथाह प्रेम की सुरीली बाँसुरी की धुन सुनते हुये अपने अस्तित्व को इसी शून्य मेँ डूब जाने को जी चाहता है ।
बात चली है...कि अब तो मंजिल मेँ मिलना तय सा लगता है... क्या हूँ मैँ, क्योँ हूँ मैँ...भूलना तय सा लगता है ।। अच्छा तो...फिर बैठेगेँ, तार जोडेगेँ कि अभी मेरे दिल के प्याले मेँ नशा बाकी बहुत है ।। आता हूँ...पर अभी चलता हूँ ... इस घुमक्कड की घुमक्कडी अभी भी बाकी बहुत है ।।
Published on January 26, 2011 02:28
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