क्या भारत और पाकिस्तान में युद्ध होने की सम्भावना है



पिछले एक महीने से दोनों देशों के नागरिकों में इस विषय पर तनाव बना हुआ है कि क्या भारत और पाकिस्तान आपस में युद्ध करेंगे.  इस प्रश्न का उत्तर केवल दोनों देशों की सेना के उच्चाधिकारियों के पास ही  है. बाकी जो बहस हो रही है, समाचार पत्र छप रहे हैं या समाचार चैनल पर चर्चाएं हो रही हैं, वह सब एक साधारण समाचार या वार्ता है. क्योंकि दो ज्ञानी आपस में लड़ने की कभी सोचते नहीं, वे एक दूसरे की समस्या पर विचार करते हैं.

छायाचित्र सौजन्य news18.com 
पिछले कईं दिनों से देश - विदेश के समाचार पत्र व चैनल्स यही सम्भावना दर्शा रहे हैं कि पाकिस्तान व भारत के बीच युद्ध होगा. सेना के जो पूर्व अधिकारी हैं वे अपना - अपना अनुभव बताते हैं. अनुभव होना बहुत अच्छी बात है, परन्तु अनुभव के साथ - साथ वर्तमान परिस्थितियों को समझना भी उतना ही आवश्यक है. भारत और पाकिस्तान की सीमा पर क्या हो रहा है, यह केवल दोनों देशों के सैनिक ही जानते हैं. वे चिंतित भी हैं तथा परिस्थिति को सम्भालने में सक्षम भी हैं  .  

कश्मीर की समस्या केवल आज की नहीं हैं. कश्मीरियों की मनोस्थिति कश्मीरी ही समझते हैं. उनकी समस्या न तो पाकिस्तान समझ रहा है और न ही भारत. इस समय तो वे केवल भारत और पाकिस्तान की खेल की गुड़िया बने हुए हैं. अरबों रुपयों का राजस्व दोनों ही देश बर्बाद कर रहे हैं जबकि भारत कश्मीर राज्य से होने वाली पर्यटन आमदनी भी खो बैठा है.
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सम्बन्ध पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जनाब नवाज़ शरीफ़ के साथ इतने मधुर थे कि श्री नरेंद्र मोदी शरीफ साहब की माताजी के पैर छूने पर अपनी पाकिस्तान यात्रा सफल मानते थे. पर अब उस मधुरता में यह ज़हर कहां से आया यह श्री नरेंद्र मोदी जी या जनाब नवाज़ शरीफ साहब ही जानते हैं.
भारत की सेना के सर्जिकल अटैक करने से चालीस से अधिक आतंकवादी मारे गए. इसके पश्चात पाकिस्तान में अक्टूबर महीने में जो सार्क सम्मेलन  होना था  वह रद्द हो गया. वह रद्द इसलिये हो गया क्योंकि कुछ देशों ने भाग लेने से मना कर दिया. इस कारण भारत की समाचार एजेंसियों ने यह समझा कि उस देश के प्रतिनिधि भारत का समर्थन कर रहे हैं. परन्तु तनावपूर्ण स्तिथि में ऐसे सम्मलेन करना उचित नहीं है, यह मानकर सम्बन्धित प्रतिनिधियों ने उसमें भाग लेना अनिवार्य नहीं समझा.
वस्तुतः सेना के किसी भी कार्य को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता और न ही उसे जीत या हार का परिणाम घोषित किया जा सकता है. सेना जो करती है उनका पहला उद्देश्य आत्मरक्षा या जान माल की सुरक्षा करना होता है. सेना का कोई भी कार्य गुप्त रखा जाता है. उसे राजनीति के माध्यम से प्रचार करने से सेना को जान - माल का नुकसान उठाना पढ़ सकता है तथा द्वेष व शत्रुत्व को बढ़ावा मिलता है. अब सेना को लेकर देश के सभी राजनीतिक दल के नेता इतने उतावले हो गए हैं कि वे क्या बोल रहे हैं और उनके बोलने से सेना की मनोवृत्ति पर क्या असर पड़ रहा होगा इसकी चिंता नहीं कर रहे हैं.
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Published on October 15, 2016 21:50
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