कर गए थे सब कुछ जो फरिशतों के आड में,
तबाह हो गई थी बहुत कुछ जो बिखरे रिशतों की बाड में,
है तो ये बस सबक इस बरसती हुई संसार का
जहां बदलते हैं मौसम पतझड के परचार का
तो कया रखा है बोलो उन भूली बिखरी सी कतलों में
जिनके जायका हमें मिलती रही इन जालिम सी फसलों में,
गरमी पैदा जो करदे यूहीं तवे पे पकते हुए,… Read the rest
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Published on August 20, 2018 18:17