पिसतौल है कोई फरश नहीं है पैरों के नीचे आती नहीं,
आती भी अगर पैरों के नीचे झाडू से पुछवाती नहीं,
झाडू आखिर तो है किसिका दिल का नजराना,
इतना ना इतराओ के जाके भरना हो जुरमाना,
पाप आखिर किए हो तुम तो धरती को बचाके,
इसकी तो धाजिया उड गई थी गंध मचाके,
अब ऐसी भी कया खुंदस है तुमहारी के पिसतौल ठिकाने लगा रहे हो,
अरे एक बार … Read the rest
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Published on August 22, 2018 10:26