उसकी हथेलियों पर छाले नहीं उभरा करते
पत्थर पर क्यूंकि पस नहीं पड़ा करती
पत्थर भी ऐसा जिनसे मूरत नहीं बना करती
मूरत पे भी जान छिडकते हैं कई लोग
उसके धुले हाथ छूने से झिझकते हैं वही लोग
उन हाथों की लकीरें मखमल नहीं, जूट से बुनी होती हैं
जूट की रस्सी पर रगड़ती हथेलियां आंसू नहीं पोंछती
सामान जुटाती रहती हैं वो, तुम्हारे और मेरे लिए
के सुकून में, हमदर्दी की बातों से हम मन्न अपना बहलाते रहे
-ऋजुता
Published on June 01, 2020 08:16