कविता और कहानी

यूँँ भी तो हो सकता है कि,

छिटककर कहानी का कोई हिस्सा,

गिरता हो ज़मीन पर, लेकिन मरता नहीं हो।


सुलगता, सहमता,

कभी पाषाण, तो कभी छलकता,

शब्दों के जाल में उलझाकर स्वयं को,

कविताओं में सांँस भरता,

जिलाने को ख़्वाब ज़िन्दगी का


-ऋजुता


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कहानियाँ होती हैं लंबी, जिम्मेदार….

जैसे निभाता हो कोई गृहस्थ….

कविताएँ होती हैं छोटी, गैर-जिम्मेदार….

जैसे हो कोई प्रेम प्रसंग….

लगभग हर कहानी में ढूंढ पाते हैं हम…

एक न एक प्रेम प्रसंग….

हाँ!

मुझे लगता है….

हर कहानी जन्म लेती है…

कविता की कोख से….. (निरंजन)

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Published on June 15, 2019 04:02
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