ब्रह्मांड निगला था जो मैंनेशुन्य है उसमें, छुपाने को मुझेऔर प्रकाश-पुंज भी, आँखें मेरी चौंधियाने को
देखती हूँ उसमें वो तारेजो टिमटिमाते कभी और कभी डबडबातेदूर-पास होते,और कभी टूट कर गिरते, सपने नये जगाने को
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