मेरा ब्रह्मांड

ब्रह्मांड निगला था जो मैंने

शुन्य है उसमें, छुपाने को मुझे

और प्रकाश-पुंज भी, आँखें मेरी चौंधियाने को


देखती हूँ उसमें वो तारे

जो टिमटिमाते कभी और कभी डबडबाते

दूर-पास होते,

और कभी टूट कर गिरते, सपने नये जगाने को

 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on December 08, 2018 10:57
No comments have been added yet.