Post # 44
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ऐसा भी एक समय था
दोस्तों से मिलते थे रोज़ाना
क्योंकि होता था रोज़ स्कूल जाना
सब चलता था, खोना-पाना..
बारिश के पानी में
काग़ज़ की नाव चलाना..
घंटों बारिश में भीग कर आना,
फिर मम्मी से डांट खाना
कभी किया हुआ होमवर्क भी
घर पर ही भूल कर,
टीचर का वो गुर्राना..
इम्तेहान में नंबर कम आने पर
पापा का भी गुस्सा हो जाना
सारी भड़ास निकालना अपने
भाई-बहनों पर और
दोस्तों को दिल की बात बताना
स्कूल की असेंबली में
साथ आना-जाना
वो गैलरी में गाने गाना..
कभी किसी को कई दिन
बाद देख कर मुस्कुराना
टीचर के सामने शांत स्माइल करना
और उन के जाते ही फिर हल्ला मचाना
किशोरावस्था में वो सब के दिल के मसले
और दोस्तों के लिए वो कोशिशें लगाना
हां भई, पढ़ाई भी होती थी
और कभी-कभी इतनी कि झल्ला ही जाना
कभी क्लास में शोर ज़्यादा करने पर
सज़ा में ग्राउंड के चक्कर लगाना
कंप्यूटर लैब में जूते-चप्पल उतार के जाना
और छोटी-सी भी एरर पर सिर घूम जाना
वो सिंगिंग डांसिंग, वो वार्षिकोत्सव
कभी-कभी स्टेज पर अपना भी नाम आना
यार! कब हम बड़े होंगे की रट लगाना
और फिर उसी बचपन में गुम हो जाना
कैसे बयां कर दूं सारे ही एहसास वो
नहीं आता इतना भी यादें जताना
बस कभी-कभी खूब याद आता है
वो समय, वो दौर, वो गुज़रा ज़माना
आने वाली पीढ़ी भी महसूस कर पाए
भगवान! ऐसा कोई जादू चलाना
अब के बच्चे खुद से निकलें तो जानें
क्या होता था दोस्तों पर जान लुटाना