मतलब, हैवानियत

मतलब कभी ढूंडा था मैंने यूहीं कांटों के रस्तों पे चलते चलते,
नाक में दम कर रखा था दिल ज़ख्मों पे नमक मलते मलते,
बोला यूहीं नहीं मिल गया तुझे सुकून उन नटखट रातों की बातों में,
और यूहीं नहीं बच गया था तू उन बातों से भरी मुलाकातों में।

अब इतना ना बौखलाते जा तू भीख के सरहदों पे रेंगते हुए,
इतना भी होता अक्कड़ तो घरवालों को ना मिलता फेंकते हुए,
फेंक के होजाता अगर तू बादशाह उन अनजाने शहरों का,
तो ना धड़कता में इतनी ज़ोर जब आया था फरमान बेहरों का।

इतने में में भी गया सटिया सा दिल के बाहों में,
बोला ये न...

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Published on October 10, 2022 23:49
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Views From The Left

Avishek Sahu
An insouciant take on life in general with a focus on seeking alternate theories to broad social factors that affect us.
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