गदर २ – द इमोशन कंटीन्यूस, जिसे आप तोड नहीं सकते।

डॉ. कौशिक चौधरी

कुछ बुनियादी रूप से सिर्फ बॉलीवुड में गलत नहीं है, यूट्यूब पर फूट पड़े समीक्षकों (reviewers) में भी कुछ बुनियादी रूप से गलत है। यह तथ्य निकलकर सामने आया है गदर २ के ज्यादातर यूट्यूब रिव्यू को सुनके। जिसने ना कभी कोई कहानी सोची है या लिखी है, वे ऐसे एक्सपर्ट की तरह यूट्यूब पर फिल्म की समीक्षा करने बैठते है जैसे कोई नकली डॉक्टर जिंदा इंसान का पोस्टमार्टम करने लगे। एक जिंदा इंसान के शरीर में से फुर्जे अलग करके न तुम उस इंसान की आत्मा देख सकते हो, न उसे समझ सकते हो। गदर की कहानी जहां पूरी हुई थी, उसके इतने वर्षों बाद अगर वही किरदार उन्ही कलाकारों के साथ आगे बढ़ते तो इससे अच्छी कहानी क्या हो सकती थी? जिस कहानी को ये समीक्षक सीधी और साधारण कह रहे है, उसमें तारा सिंह अपने उसी परिवार के साथ गदर के उन्ही यादगार गानों को गाता दिखता है, १९७१ के युद्ध में भारतीय सेना की मदद करते हुए बॉर्डर फिल्म के युद्ध सीनों की याद ताजी करा देता है। शुरू का एक घंटा और आखिर का एक घंटा अपने इमोशन्स और एक्शन से थिएटर में स्टेडियम का अहसास कराता तारा सिंह बीच में पचास मिनिट गायब हो जाता है, ताकि जवान हो चुके बेटे जीते के चरित्र से आप परिचित हो सके। यहीं पर कुछ अच्छे गाने आते है, एक लव स्टोरी और लड़की का सहारा लेकर दुश्मन देश में किया जाता एक जासूसी मिशन भी आ जाता है, जिसके आखिर में बेटा जीते पाकिस्तान में फंस जाता है।

और फिर तारा सिंह फिल्म में वापस आता है और बेटे को वापस लाने सत्रह साल बाद फिर पाकिस्तान जाता है। हेड पंप के सीन के स्थान पर रथ का पहिया और बिजली के थंभे उखाड़ लेता तारा सिंह हैंड पंप सीन के साथ पाकिस्तानियों के साथ प्रैंक कर देता है। पाकिस्तान के गजवा- ए- हिंद के जिस छुपे हुए सपने को तारिक फतहने बाहर ला दिया था, उसे यह नई गदर पाकिस्तानियों की असली सोच के रूप में बिलकुल एक्सपोज करके रख देती है। यह बेहतरीन सम्मान है पहली गदर को, और उसी फिल्म के इमोशन को उतनी ही अच्छाई से आगे ले जाती है। इतनी बड़ी बन चुकी फिल्म को छूने से हर कोई कांप जाता है। इसीलिए मुगले आजम और शोले की कोई सिक्वल नहीं बनी। पर सही मायने में गदर २ के मेकर्स ने एक सही कहानी पर भरोसा करके यह साहस किया है, और यह साहस पूरी निष्ठा से किया गया है। गदर दर्शको की फिल्म थी, और गदर २ भी दर्शको की ही फिल्म बनके रह जाती है। वे सारे आरोप की डायरेक्टर ने अपने बेटे को चमकाने के लिए सनी देओल को कम दिखाया है वह झूठ है। सनी देओल जब स्क्रीन पर नही होते तब भी सबकुछ उनके लिए ही हो रहा होता है, और बाकी के ६० % हिस्से में जब वे होते है, तब वे आपको बता देते है की असल में वे कितने बेहतरीन और गहरे एक्टर है।

धर्मेंद्रजी को कभी कोई अवॉर्ड नहीं मिला, पर सनी देओल फिल्म फेयर के साथ दो बार नेशनल एवोर्ड भी क्यों जीत चुके है, यह जवाब इस फ़िल्म में सनी देओल को देखकर समझ में आ जाता है। उस आदमी की गहराई, अच्छाई और सहजता एक बहुत ही विकसित स्तर पर है। राज कपूर के बाद यह पहला एक्टर है जिसे देखकर आप को दिल और आत्मा की गहराई से एक आराम मिलता है। आप हमेशा उन्हें स्क्रीन पर मौजूद देखना चाहते है, क्योंकि वे आप से किसी गर्भनाल के समान भीतरी चेतना से जुड़े हुए नजर आते है। उत्कर्ष शर्मा जीते के रूप में बिलकुल सटीक कास्टिंग है, और उसकी एक्टिंग की निंदा एक अपरिपक्व दिमाग की हरकत है। वह अभिषेक बच्चन, और सनी देओल के अभी लॉन्च हुए बेटे से अच्छा एक्टर है। राजकुमार राव, विजय वर्मा, सिद्धार्थ मल्होत्रा – किसको लेना चाहते थे वहां, वो भी जरा बताओ। वे सब इतने सहज और निर्दोष नहीं लगते। किसी भी जाने माने चहेरे के सामने आते ही जीते का वो केरेक्टर दब जाता। उत्कर्ष शर्मा ने कहीं पर भी ज्यादा करने की कोशिश नही की, और ना ही वो कम दिखा है। वह वही चार साल का बच्चा जीते दिखा है जो अब जवान हो चुका है।

किसी फिल्म को हिस्सो मे बांटकर नहीं देख सकते। फिल्म एक इंसान की तरह शरीर और आत्मा के साथ एक पूरी कहानी होती है। वह आप को क्या अहसास कराती है, उसीसे उसका मूल्यांकन होता है। और यह फिल्म शुरुआत के रीकैप से आखरी सीन तक गदर की कहानी को, उसके अगाढ़ इमोशन को आपके अंदर जीवित करके चलती है। बाइस साल बाद भी आप उसी इमोशन को फिर से जीते है, उससे थोड़े बड़े स्केल के एक्शन को देखते है, पर आगे की कहानी में। फिल्म से फरियाद सिर्फ एक दो सीन में बंदूक पकड़े खड़े हुए पाकिस्तानी सैनिकों का सनी देओल के साथ हाथापाई करना, और पाकिस्तान दिखाने में प्रोडक्शन में दिखती कमजोरी को लेकर जरूर है। पहली फरियाद पहली गदर में भी थी, पर वहां पाकिस्तान बहुत सटीक दिखा था। क्लाइमेक्स के एक्शन में मुझे गदर के ट्रेन सिक्वन्स से ज्यादा इस फिल्म में टैंक पर से हो रही बमबारी ज्यादा पसंद आई। कुल मिलाकर गदर २ एक बेहतरीन फिल्म है। जो भी इसे देखेगा वह फिल्म के किसी एक्टर या डायरेक्टर को नही, पर सिर्फ बीस – पच्चीस साल की उम्र में एक्सपर्ट बन चुके इन यूट्यूब समीक्षकों को ही कोसेगा। अनुभवी और सम्मानीय समीक्षक तरन आदर्श के रिव्यू से में शब्दशः सहमत हूं। यह थिएटर में देखने पर 4.5/5 स्टार फिल्म है।

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Published on August 12, 2023 12:28
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