जात जाकी सरफिरे में।

छिड़ी धार थी बर्फी आकार में पान प्यार मोड़ा हथ्यार का,
भिड़ी पार थी चरसी बहार में दान उधार जोड़ा फरार का,
इक्का तुक्का हुआ बादशाह डटा रहा सोना हुकुम जब बेग़म ग़ुलाम रोई दस पे,
सिक्का लुक्का हुआ हताशा बटा सहा जो ना जुलुम सब रहम नीलाम सोई रस पे,
इतने में हार जगा सलामी नीलामी से जीत रेत का खेत प्रमाण जब मिर्ची तिरछी सटके ठाट पे,
जितने में चार सगा ग़ुलामी हरामी से मीत बेत का समेत निर्माण गजब खर्ची पर्छी मटके घाट पे,

घाटी हां घाटी नाम विद्यालय मोहर से जाैहर बिका कालिक था मान बात डगमगाई तो,
माटी जहां मा...

 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on May 21, 2024 03:54
No comments have been added yet.


Views From The Left

Avishek Sahu
An insouciant take on life in general with a focus on seeking alternate theories to broad social factors that affect us.
Follow Avishek Sahu's blog with rss.