खटक भूक भटकाई होगी इस सेंक पे।

मानव आकार में मानव दिखा छल पुरानी बात नूरानी सा,
दानव बहार में दानव बिका बल हैवानी लात जवानी सा,
जवान मोहब्बत गुमशुदे के दबदबे पे पहचाना कौन गुम हुए दुम को,
हैवान हकीकत सजदे के मरहबे पे ठिकाना मौन तुम हुए कुमकुम को,
लाल थी कभी जाल भी महाकाल हुई तो सरक गई उसकी चाल ताज़ी खोली पे,
हाल थी सभी शकाल भी गुलाल हुई तो भड़क गई खिसकी माल बाज़ी गोली पे,
गोली अधूरा था बिजली दम ट्रिगर फिसल गई तो छाप निकला उसका गरम ब्रह्म भ्रष्ट हुआ,
मोली सवेरा था पतली हम जिगर मसल गई तो ताप फिसला जिसका नरम दम कष्ट हुआ,

कष्ट कि...

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Published on May 21, 2024 23:54
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Avishek Sahu
An insouciant take on life in general with a focus on seeking alternate theories to broad social factors that affect us.
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