मतलब कभी ढूंडा था मैंने यूहीं कांटों के रस्तों पे चलते चलते,
नाक में दम कर रखा था दिल ज़ख्मों पे नमक मलते मलते,
बोला यूहीं नहीं मिल गया तुझे सुकून उन नटखट रातों की बातों में,
और यूहीं नहीं बच गया था तू उन बातों से भरी मुलाकातों में।
अब इतना ना बौखलाते जा तू भीख के सरहदों पे रेंगते हुए,
इतना भी होता अक्कड़ तो घरवालों को ना मिलता फेंकते हुए,
फेंक के होजाता अगर तू बादशाह उन अनजाने शहरों का,
ना धड़कता में इतनी ज़ोर जब आया था फरमान सुन बेहरों का।
इतने में में भी गया सटिया सा दिल के बाहों में,
बोला ये ...
Published on May 23, 2024 06:27