बस चल रहा हूँ मैं





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तुझे न देखना चाहूँ मैं

तू ही तो है बस ... मैं खैर हूँ ही कहाँ

कहानियों का दौर नहीं जानता मैं

फ़िक्र भी नहीं मुझको तेरी महकती फ़िज़ाओं की

इश्क़-ए-हक़ीक़ी का समंदर आ मिला है मुझसे

अब तो बस चल रहा है वो

और हाँ ...

बस चल रहा हूँ मैं  !!





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Published on August 27, 2012 22:33
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